Wednesday, January 4, 2012

सब गोलमाल


टिप्पणी

सीवरेज परियोजना भले ही पूर्ण होने के बाद (जैसा कि दावा किया जा रहा है) राहत दे, लेकिन वर्तमान में बिलासपुर के लिए इससे बड़ी समस्या और कोई नहीं है। दावों पर भी यकीन इसलिए नहीं किया जा सकता, क्योंकि योजना की सफलता एवं परिणामों पर अभी से सवाल उठाए जा रहे हैं। स्वयं महापौर तक यह कह चुकी हैं कि परियोजना के बेहतर परिणाम नहीं आएंगे। खैर, परिणाम एवं सफलता तो भविष्य के गर्भ में हैं लेकिन मौजूदा समय में शहर का हाल गांव से भी बदतर है। जिधर देखो उधर रास्ते खुदे हुए हैं। सड़कों का तो नामोनिशान तक मिट चुका है। प्रमुख मागोर्ं पर पसरे कीचड़ एवं दलदल ने तो शहर की तस्वीर बिगाड़ रखी है। वाहनों की छोड़िए पैदल निकलना भी टेढी खीर है। कई जगह तो आवाजाही तक बंद हो गई है। घटिया निर्माण सामग्री से बनी सड़कें बारिश के बाद 'सच' बयान कर रही हैं। आलम देखिए हफ्तेभर पहले बनी हुई सड़कें भी धंस रही हैं। घटिया निर्माण सामग्री को लेकर बीच-बीच में हो हल्ला भी मचा लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात रहा। हल्ला मचाने वाले पता नहीं किस दवाब या प्रलोभन के चलते लम्बे समय तक 'रहस्यमयी चुप्पी' साध लेते हैं या फिर यकायक'अज्ञातवास' पर चले जाते हैं। तभी तो घटिया निर्माण सामग्री लगाकर सड़कें बनाने वाले, जगह-जगह गड्‌ढ़े खोदकर लोगों की जान से खेलने वालों के हौसले बुलंद हैं। उनको किसी का डर या भय तक नहीं है। यही कारण है कि उनका काम बदस्तूर जारी है।
शहरवासियों के लिए तोहफे के रूप में प्रचारित यह परियोजना देखा जाए तो किसी धोखे से कम नहीं है। जन के साथ माल की हानि हो रही है लेकिन जिम्मेदार अफसर एवं जनप्रतिनिधि गलत को गलत कहने की हिम्मत तक नहीं जुटा पा रहे हैं। खुले में जिनको डांटा जा रहा है, पर्दे के पीछे उनको गले लगाया जा रहा है। सियासी दांवपेच एवं वोट बैंक बनाने-बिगाड़ने के चक्कर में विकास की रफ्तार थम गई है। हिन्दी साहित्य के श्लेष अलंकार 'नारी बीच सारी है कि सारी बीच नारी है...' की तर्ज पर पक्ष-विपक्ष और निगम-सिम्पलेक्स (सीवरेज परियोजना पर काम रही कंपनी) के बीच इतना घालमेल और तालमेल है कि आम आदमी के समझ से बाहर है।
हालात यह हैं कि आम आदमी के दुख-दर्द के बजाय कहां, कब, कैसे  व क्यों  विरोध करना है, इसका खाका पहले से तैयार हो जाता है। विरोध प्रदर्शन से होने वाले नफा-नुकसान का आकलन भी कर लिया जाता है। तभी तो कई बार विरोध प्रदर्शन भी प्रायोजित नजर आता है।  इसी खेल के चलते शहरवासियों की पीड़ा पर्वत सी बनी हुई है।  खैर, सीवरेज परियोजना का काम पूर्ण होने की न केवल निर्धारित अवधि पूर्ण हो चुकी है बल्कि अतिरिक्त समय भी गुजर गया है। परियोजना की लागत भी 250 करोड़ से बढ़कर तीन सौ करोड़ रुपए तक पहुंच गई है जबकि इस परियोजना का अभी तक 40 फीसदी ही काम हुआ है।
बहरहाल, लागत मूल्य बढ़ने तथा अतिरिक्त समय निकलने के बाद इतना तो तय है कि सीवरेज परियोजना के काम में तेजी आएगी। ऐसे में शहरवासियों की भूमिका बेहद महत्त्वपूर्ण होगी। वे दूसरों के भरोसे न बैठें तथा सीवरेज के काम पर कड़ी नजर रखें। अगर आज शहरवासियों ने चुप्पी साध ली तो कालांतर में उनको इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। अभी ज्यादा देर नहीं हुई है। जागो तभी सवेरा की तर्ज पर सीवरेज परियोजना के कामों पर कड़ी नजर रखी जा सकती है, ताकि कोई आपकी आंखों में धूल ना झोंक सके। देखा गया है कि जल्दबाजी के चलते अक्सर गुणवत्ता से समझौता कर लिया जाता है।

साभार : बिलासपुर पत्रिका के 04 जनवरी 12  के अंक में प्रकाशित।