Wednesday, December 26, 2018

पर जीने की वजह बदल गई

बस यूं ही 
जीने की कोई न कोई वजह तो होती है, वजह ही न हो तो फिर जीवन कैसा? हां वजह सदा एक जैसी नहीं रहती, यह अक्सर बदल जाया करती हैं। कभी परिस्थितिवश तो कभी मजबूरी में। वजह सुखद और दुखद भी होती है। खैर, वजह कैसी भी हो, इस पर इंसान का बस नहीं चलता। इंसान वजह के द्वंद्व में जीवन भर फंसा रहता है। मैं भी इन दिनों कुछ ऐसे ही द्वंद्व में फंसा हूं। मां के जाने के बाद जीवन की दशा व दिशा अचानक से बदल गई। रोजमर्रा की जो दिनचर्या भी वह प्रभावित हो गई। ' मां', यह एक ऐसा शब्द है, जिसके बोलने भर से ही मुंह भर जाता है। सुखद अनुभूति होती है। खुद के बच्चे बने रहने का एहसास होता है। यह शब्द अब केवल बातों में रह गया है। और जब भी इस शब्द का जिक्र या ख्याल आता है तो आंखें नम हो उठती हैं। वैसे ख्याल का कोई समय निश्चित नहीं होता। वह रात या दिन नहीं देखता है। करीब डेढ़ माह में ऐसा कोई दिन नहीं बीता जब मां की याद में आंखें नम न हुई हों। कभी फूट-फूट के भी रोया हूं। यह शाश्वत सच है। यह कड़वी हकीकत है कि मां सदा सदा के लिए चली गई लेकिन उसकी यादें रह-रहकर कचोटती हैं। खुद को व्यस्त रखने का खूब प्रयत्न करता हूं पर कुछ अच्छा नहीं लगता। लाख कोशिश करता हूं चित को एकाग्र रखने की लेकिन मन उचट जाता है। पता नहीं यह कैसी अवस्था है और कब तक ऐसा होगा। सच यह कि इन दिनों मन कहीं नहीं लगता। खुशी जैसे रुठ गई है। खाली-खाली सा लगता है। यह हालात घर, आफिस, बाहर, बाजार सब जगह कमोबेश एक जैसे हैं। व्यवहार में हास , परिहास, उमंग आदि की जगह नैराश्य हावी हो गया है। उमंग, उल्लास व उत्साह पर नीरसता ने जैसे जबरन कब्जा कर लिया है। एक अजीब सी खामोशी। अंदर ही अंदर डरा देने वाला सन्नाटा और इस तरह के हालात के बीच बेहद गमगीन व गुमशुम पापा को देखकर सच में बेहद व्यथित व विचलित हो उठता हूं। सिर्फ डेढ़ माह में क्या से क्या हो गया। खुशी की जगह खामोशी तो उमंग की जगह उदासी का आलम हो गया। इस तरह के हालात मुझे डराते हैं। चिंतित करते हैं। सवाल और जवाब का दौर खुद से ही होता है। जेहन में विचारों का आवेग बड़ी तीव्र गति से होकर गुजरता है। यकीनन इस आवेग के गुजरने के बाद अक्सर अफसोस, अवसाद व आशंकाएं ही हाथ आती हैं। अपने इस बदलाव से हालांकि मैं हतप्रभ हूं, इससे उबरने की मन ही मन सोचता भी हूं लेकिन फिर कोई ख्याल आकर उसी अवस्था में फिर ले जाता है। पता नहीं यह क्यों हो रहा है और कब तक होगा?

जीत और हार के फेर में सोशल मीडिया अकाउंट को भूले 'नेताजी'

कई मंत्रियों व विधायकों के फेसबुक पेज व टवीटर अकाउंट नहीं हुए अपडेट, चल रहा है पुराना पदनाम
श्रीगंगानगर। विधानसभा चुनाव परिणाम आए सप्ताह भर होने को है लेकिन कुछ प्रत्याशियों पर जीत का जोश छाया हुआ है तो कुछ हार के गम में सब कुछ भूल गए हैं। जीत व हार के फेर में उलझे नेताओं की हालत का अंदाजा सोशल मीडिया पर उनकी गतिविधियों से आसानी से लगाया जा सकता है। आलम यह है कि सरकार बदलने के बावजूद कई पूर्व मंत्रियों व विधायकों ने अपने फेसबुक अकाउंट/ पेज व ट्वीटर अकाउंट अपडेट ही नहीं किए हैं। रविवार शाम तक कुछ मंत्रियों व विधायकों को पेज व अकाउंट टटोले तो कुछ इसी तरह के हालात मिले। हालांकि मुख्यमंत्री का पेज जरूर अपडेट कर दिया गया है, जिस पर एक्स चीफ मिनिस्टर लिखा हुआ आ रहा है।
स्वास्थ्य व चिकित्सा मंत्री कालीचरण सर्राफ का फेसबुक अकाउंट अभी भी उनको मंत्री ही दिखा रहा है। इसी तरह पंचायत राज मंत्री राजेन्द्र राठौड़ का पेज भी अपडेट नहीं किया है। हालांकि सर्राफ व राठौड़ खुद चुनाव जीत चुके हैं लेकिन पेज पर मंत्री पद कायम है। इतना ही नहीं ट्रांसपोर्ट व पीडब्ल्यूडी मंत्री यूनुस खान टोंक से चुनाव हार चुके हैं लेकिन उनका पेज उनको अभी भी मंत्री बनाए हुए हैं। केबिनेट मंत्री गजेन्द्रसिंह खींवसर व डा. रामप्रताप दोनों ही चुनाव हार चुके हैं लेकिन दोनों के पेज पर उनका मंत्री पद बरकरार है। कुछ यही हाल संसदीय सचिव रहे डा. विश्वनाथ का है। वे खाजूवाला से चुनाव हार गए हैं लेकिन अपने पेज पर वह भी एमएलए बने हुए हैं।
जमींदारा पार्टी से पाला बदलकर कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ी और जमानत जब्त करवाने वाली सोनादेवी को उनका टवीटर अकाउंट अभी भी रायसिंहनगर विधायक दिखा रहा है। इसी तरह शिमलादेवी बावरी का पेज भी उनको अनूपगढ़ विधायक बता रहा है जबकि वो इस बार चुनाव मैदान में ही नहीं थी। समूचे राजस्थान में सर्वाधिक धनवान तथा पूर्व मंत्री राधेश्याम को बड़े अंतर से पराजित करने वाली जमींदारा पार्टी की कामिनी जिंदल इस बार न केवल चुनाव हारी बल्कि उनकी जमानत भी जब्त हो गई लेकिन उनका अकाउंट उनको भी विधायक दर्शा रहा है। कमोबेश एेसा ही हाल नोहर से अभिषेक मटोरिया व भादरा से संजीव बेनीवाल का है। यह दोनों नेता भाजपा की टिकट से मैदान में थे और हार गए लेकिन दोनों पेजों पर अभी भी एमएलए बने हुए हैं।

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 राजस्थान पत्रिका के  17 दिसंबर 18 के अंक में प्रकाशित।

हार गए पर भर गए सरकारी खजाना

श्रीगंगानगर. विधानसभा चुनाव मैदान में जमानत जब्त करवाने वाले उम्मीदवारों ने सरकारी खजाना भरने का काम जरूर किया है। श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिलों में जमानत जब्त करवाकर हारने वालों के कारण सरकारी खजाने में लाखों रुपए जमा हुए हैं। दरअसल, सभी प्रत्याशियों को चुनाव लडऩे के लिए जमानत के रूप में चुनाव आयोग के पास एक निश्चित रकम जमा करनी होती है। जब प्रत्याशी निश्चित प्रतिशत मत हासिल नहीं कर पाता, तो उसकी जमानत जब्त हो जाती है यानी यह राशि आयोग की हो जाती है। श्रीगंगानगर जिले में 69 तो हनुमानगढ़ जिले में 42 प्रत्याशियों की जमानत राशि जब्त हुई है। सामान्य व्यक्ति के लिए जमानत राशि दस हजार है तो एससी/ एसटी के उम्मीदवारों के लिए पांच हजार रुपए होती है। लोकसभा चुनाव में सामान्य के लिए 25 हजार तो एससी/ एसटी के लिए 12 हजार पांच सौ रुपए है। 
इस तरह जब्त होती है जमानत
ऐसे हारे हुए प्रत्याशी की जमानत जब्त हो जाती है, जो अपने निर्वाचन क्षेत्र में डाले गए कुल विधि सम्मत मतों की संख्या के छठे भाग से ज्यादा मत प्राप्त नहीं कर पाता। उदाहरण के लिए अगर किसी विधानसभा सीट पर यदि एक लाख वोटिंग हुई तो जमानत बचाने के लिए प्रत्येक प्रत्याशी को छठे भाग से अधिक यानि करीब 16 हजार 666 वोटों से अधिक वोट प्राप्त करने होंगे। इससे कम पाने वालों की जमानत जब्त हो जाती है।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ संस्करण में 14 दिसंबर 18 के अंक में प्रकाशित।

श्रीगंगानगर में 69, हनुमानगढ़ में 42 की जमानत जब्त

दोनों जिलों की 11 सीटों पर थे 139 उम्मीदवार 
श्रीगंगानगर. 15वीं विधानसभा के लिए चुनाव में श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिले से चुनाव मैदान में डटे 139 प्रत्याशियों में से मात्र 28 ही जमानत बचाने में सफल हुए हैं, शेष 111 की जमानत राशि जब्त हो गई। 
श्रीगंगानगर जिले में सर्वाधिक प्रत्याशी गंगानगर विधानसभा से थे जबकि सबसे कम अनूपगढ़ विधानसभा से थे। श्रीगंगानगर की छह विधानसभाओं में 86 प्रत्याशी मैदान में थे तो हनुमानगढ़ की पांचों विधानसभाओं में 53 उम्मीदवारों ने भाग्य आजमाया। दोनों जिलों की 11 सीटों में से पांच सीटों पर विजयी उम्मीदवार के अलावा दूसरे नंबर पर रहे प्रत्याशियों ने जमानत बचाई जबकि सात सीटों पर विजयी उम्मीदवारों के अलावा दो-दो उम्मीदवार जमानत बचाने में सफल हो गए। इसी तरह दोनों जिले में 11 विजयी प्रत्याशियों के अलावा 17 उम्मीदवारों ने जमानत राशि बचाने में सफलता हासिल की।
श्रीगंगानगर जिला 
विधानसभा कुल जमानत
उम्मीदवार जब्त
श्रीगंगानगर 22 19
अनूपगढ़ 7 5
श्रीकरणपुर 16 13
रायसिंहनगर 15 12 
सादुलशहर 11 8
सूरतगढ़ 15 12 
हनुमानगढ़ जिला
हनुमानगढ़ 14 12
भादरा 12 9
संगरिया 9 7
नोहर 9 7
पीलीबंगा 9 7
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ संस्करण में 14 दिसंबर 18 के अंक में प्रकाशित।

डाक मत पत्रों में भी हुआ नोटा का इस्तेमाल

श्रीगंगागनगर. नोटा का उपयोग न केवल इवीएम बल्कि डाक मत पत्रों में भी हुआ है। श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ जिले की सभी 11 विधानसभाओं में डाक मत पत्रों के जरिए मतदान करने वाले मतदाताओं ने भी नोटा का इस्तेमाल किया है। डाक मतों में सर्वाधिक नोटा का इस्तेमाल श्रीगंगानगर विधानसभा में हुआ है जबकि हनुमानगढ़ विधानसभा दूसरे नंबर पर है। डाक मत पत्रों में नोटा का सबसे कम इस्तेमाल भादरा विधानसभा में हुआ है। श्रीगंगानगर की छह सीटों पर कुल 73 डाक मत पत्रों में नोटा का इस्तेमाल हुआ है जबकि हनुमानगढ़ जिले की पांचों विधानसभाओं में यह आंकड़ा 51 है। 
कहां कितना इस्तेमाल 
विधानसभा कुल नोटा 
पोस्टल पर
मत
अनूपगढ़ 925 13 
सूरतगढ़ 1443 8
रायसिंहनगर 1483 6
श्रीकरणपुर 1688 10
गंगानगर 2198 22
सादुलशहर 1747 14
हनुमानगढ़ 1760 21
संगरिया 1530 13
नोहर 1916 4
भादरा 2178 3
पीलीबंगा 1415 10
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ संस्करण में 14 दिसंबर 18 के अंक में प्रकाशित।

सजग मतदाताओं में हनुमानगढ़ सबसे आगे

अनूपगढ़ का रहा दूसरा स्थान
श्रीगंगानगर. विधानसभा चुनाव में वैसे तो हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर जिले के मतदाताओं ने उत्साहपूवज़्क भाग लिया लेकिन डाक मत पत्रों में सजगता बरतने के मामले में हनुमानगढ़ विधानसभा के मतदाता सबसे आगे रहे। डाक मतों में सबसे कम वोट निरस्त हनुमानगढ़ विधानसभा में हुए हैं। इसके बाद अनूपगढ़ में हुए हैं। सवाज़्धिक डाक मत पत्र निरस्त संगरिया विधानसभा में हुए हैं, कमोबेश इतने ही श्रीगंगानगर विधानसभा में हुए हैं। श्रीगंगानगर की छह विधानसभा में कुल 9484 डाक मत प्राप्त हुए इनमें 965 मत निरस्त हो गए। इसी प्रकार हनुमानगढ़ जिले की पांचों विधानसभाओं में 8799 डाक मत पत्र आए, इनमें से 919 निरस्त हो गए। सर्वाधिक डाक मत पत्र श्रीगंगानगर विधानसभा में आए जबकि सबसे कम अनूपगढ़ विधानसभा में आए। विदित रहे कि सरकारी कर्मचारी सेना या अर्द्धसैनिक बलों में कार्यरत लोग आदि डाक मत पत्र के माध्यम से मतदान करते हैं। 
श्रीगंगानगर जिला
विधानसभा कुल निरस्त
डाक मत
मत
अनूपगढ़ 925 74
श्रीगंगानगर 2198 255
श्रीकरणपुर 1688 163
रायसिंहनगर 1483 151
सादुलशहर 1747 217
सूरतगढ़ 1443 116
हनुमानगढ़ जिला
विधानसभा कुल निरस्त
डाक मत
मत
हनुमानगढ़ 1760 30
भादरा 2178 258
संगरिया 1916 249
पीलीबंगा 1530 128
नोहर 1415 154
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ संस्करण में 14 दिसंबर 18 के अंक में प्रकाशित।

कांग्रेस ने दस तो भाजपा ने सात क्षेत्रों में जनाधार बढ़ाया

वोट बैंक बढऩे से भाजपा को नुकसान तो कांग्रेस को फायदा
श्रीगंगानगर. 15वीं विधानसभा के लिए हुए चुनाव में दोनों ही दलों ने पिछले चुनाव के मुकाबले अपना जनाधार बढ़ाया। श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ की 11 सीटों में से कांग्रेस ने दस तो भाजपा का सात सीटों पर जनाधार बढ़ा है। वोट बैंक बढऩे से भाजपा को जहां चार सीटों का नुकसान हुआ है, वहीं कांग्रेस को चार सीटों का फायदा हो गया। खास बात यह है कि सूरतगढ़, अनूपगढ़, श्रीगंगानगर, संगरिया, भादरा, पीलीबंगा विधानसभा सीट पर कांग्रेस हार गई लेकिन गत चुनाव के मुकाबले उसका वोट बैंक बढ़ा है। सूरतगढ़ में वह पिछले चुनाव में तीसरे स्थान पर थी, इस बार वह दूसरे नंबर पर रही। इसी तरह श्रीगंगानगर में भी तीसरे से दूसरे स्थान पर पहुंचने में सफल रही। भादरा और अनूपगढ़ में भी कांग्रेस ने वोट बैंक बढ़ाने के साथ प्रदशज़्न में भी सुधार किया है। पिछले चुनाव में अनूपगढ़ में कांग्रेस चौथे स्थान पर व भादरा में पांचवें स्थान पर थी। इस बार क्रमश: वह दूसरे व तीसरे स्थान पर रही है। पीलीबंगा और संगरिया में कांग्रेस हार गई लेकिन पिछले चुनाव के मुकाबले वोट बैंक बढ़ाया है। रायसिंहनगर में जरूर कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी। यहां पार्टी प्रत्याशी अपनी जमानत नहीं बचा पाई और चौथे स्थान पर रही। पिछली बार कांग्रेस यहां तीसरे स्थान पर थी।
पिछले चुनाव के मुकाबले चार सीटों का नुकसान उठाने वाली भाजपा को जहां हार हुई हैं वहां तो कम मत मिले हैं लेकिन सादुलशहर व हनुमानगढ़ में भाजपा प्रत्याशियों ने पिछले चुनाव के मुकाबले ज्यादा मत हासिल किए फिर भी जीत नहीं सके। श्रीगंगानगर और श्रीकरणपुर में भाजपा का प्रदशज़्न कमजोर रहा। श्रीगंगानगर में पाटीज़् पिछले चुनाव जैसा प्रदर्शन नहीं कर पाई और दूसरे से तीसरे स्थान पर खिसक गई। इसी तरह श्रीकरणपुर में पा़र्टी प्रत्याशी न केवल हारा बल्कि तीसरे स्थान पर खिसक गया। जिन पांच सीटों पर भाजपा जीती है, वहां उसको गत चुनाव के मुकाबले ज्यादा मत मिले हैं।
श्रीगंगानगर जिले में कांग्रेस का प्रदर्शन
विस 2013 2018 अंतर
सादुलशहर 42376 73153 +30777
श्रीकरणपुर 66294 73896 +7602
रायसिंहनगर 44229 31294 -12935
गंगानगर 22915 35818 +12903
सूरतगढ़ 34173 58797 +24624
अनूपगढ 12305 58259 +45954
श्रीगंगानगर जिले में भाजपा का प्रदर्शन
विस 2013 2018 अंतर
सादुलशहर 47184 63087 +15903
श्रीकरणपुर 70147 44099 -26048
रायसिंहनगर 44544 76935 +32391
गंगानगर 40792 29686 -11106
सूरतगढ़ 66766 69032 +2266
अनूपगढ 51145 79383 +28238
हनुमानगढ़ जिले में कांग्रेस का प्रदर्शन
विस 2013 2018 अंतर
हनुमानगढ 57380 111207 +53827
संगरिया 44034 92526 +48492
पीलीबंगा 53647 106136 +52489
नोहर 69686 93851 +24165
भादरा 11680 37574 +25894
हनुमानगढ़ जिले में भाजपा का प्रदर्शन
विस 2013 2018 अंतर
हनुमानगढ़ 87475 95685 +8210
संगरिया 55635 99064 +43429
पीलीबंगा 63845 106414 +42569
नोहर 96637 80124 -16513
भादरा 65040 59051 -5989
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ संस्करण में 14 दिसंबर 18 के अंक में प्रकाशित।

अर्श से फर्श पर आई जमींदारा पार्टी

श्रीगंगानगर. कहते हैं जो जिस गति से ऊपर उठता है उससे कहीं ज्यादा गति से नीचे भी गिर जाता है। कुछ ऐसा ही हश्र जमींदारा पार्टी का हुआ। मेडिकल कॉलेज सहित कई लोकलुभावन वादों के दम पर इस पार्टी ने 2013 के चुनाव में दमदार प्रदर्शन कर सबको चौंका दिया था। पार्टी ने श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ की सभी 11 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए और दो जगह श्रीगंगानगर व रायसिंहनगर में जीत भी दर्ज की। अनूपगढ़ में वह दूसरे स्थान रही। सादुलशहर, श्रीकरणपुर व सूरतगढ़ में जमींदारा पार्टी के प्रत्याशियों ने अच्छे खासे वोट लेकर अपनी शक्ति का एहसास करवाया। पड़ोसी जिले हनुमानगढ़ में भी जमींदारा पार्टी ने संगरिया व पीलीबंगा में अच्छा प्रदर्शन किया। मात्र पांच साल में यह पार्टी मतदाताओं की नजर से उतर गई। इतना ही नहीं पार्टी को श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ जिले में प्रत्याशी ही नहीं मिले। इससे भी शर्मनाक स्थिति तो पार्टी के दोनों विधायकों की हुई। रायसिंहनगर विधानसभा में पिछले चुनाव में जमींदारा की सोनादेवी ने 65 हजार 782 मत लेकर जीत दर्ज की लेकिन सोना देवी ने कार्यकाल के अंतिम समय में जमींदारा पार्टी छोडकऱ कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली। पार्टी ने इस बार यहां राजेश सिकरवाल को प्रत्याशी बनाया लेकिन वे केवल 1036 मत प्राप्त कर सके। हालत यह थी कि उनको नोटा से भी कम मत मिले। कुछ ऐसा ही हश्र जमींदारा पार्टी की टिकट पर श्रीगंगानगर विधानसभा से 77,860 मत प्राप्त कर बड़ी जीत दर्ज करने वाली कामिनी जिंदल का हुआ। कामिनी प्रदेश में सबसे युवा व सबसे अधिक चल-अचल संपत्ति के मामले में चर्चा में रहीं। कामिनी ने इस चुनाव में भी भाग्य आजमाया लेकिन उनका जादू नहीं चला। उनको महज 4887 मत ही मिले। वे छठे स्थान पर रहीं।
जमींदारा पार्टी का प्रदर्शन
विधानसभा 2013 में प्राप्त मत 2018 में प्राप्त मत
श्रीगंगानगर 77860 4887
रायसिंहनगर 65782 1036
श्रीकरणपुर 18275 इस बार प्रत्याशी नहीं
अनूपगढ़ 39999 इस बार प्रत्याशी नहीं
सादुलशहर 28022 इस बार प्रत्याशी नहीं
सूरतगढ़ 18275 इस बार प्रत्याशी नहीं
हनुमानगढ़ 8132 इस बार प्रत्याशी नहीं
संगरिया 18067 इस बार प्रत्याशी नहीं
नोहर 2463 इस बार प्रत्याशी नहीं
पीलीबंगा 22850 इस बार प्रत्याशी नहीं
भादरा 904 इस बार प्रत्याशी नहीं
इनका कहना है
- प्रदेश में पार्टी ने आठ प्रत्याशी उतारे थे। सभी जगह पार्टी की विचारधारा के प्रत्याशी नहीं मिले थे। दोनों बड़े दलों के नेता नहीं चाहते थे कि थर्ड फ्रंट तैयार हो जाए। इसलिए मेडिकल कॉलेज व ग्वार के भाव आदि को लेकर लोगों में अफवाह फैला दी थी, जिससे पार्टी को इस हार का सामना करना पड़ा है।
उदयलपाल झाझडिय़ा, प्रदेशाध्यक्ष जमींदारा पार्टी श्रीगंगानगर
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राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर संस्करण में 13 दिसंबर 18 के अंक में प्रकाशित....

श्रीगंगानगर व भादरा में चौथी बार भी नहीं जीत पाई कांग्रेस

श्रीगंगानगर. राजस्थान में भले ही कांग्रेस ने सर्वाधिक सीट जीतने में कामयाब हासिल की हो लेकिन श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ जिले की दो सीटें ऐसी हैं, जहां कांग्रेस लगातार चार बार हार चुकी है। एक सीट पर कांग्रेस ने तीन चुनाव हारने के बाद जीत दर्ज की है। लगातार चार हारने वाली सीटों में एक श्रीगंगानगर विधानसभा सीट है जबकि दूसरी भादरा विधानसभा सीट। श्रीगंगानगर से 1998 में कांग्रेस से राधेश्याम से जीते थे लेकिन इसके बाद पार्टी यहां से जीत दर्ज नहीं कर पाई। हालांकि, राधेश्याम पाला बदलकर 2008 में भाजपा की टिकट से जरूर जीते लेकिन कांग्रेस को यहां जीत का इंतजार है। इसी तरह भादरा से 1998 में कांग्रेस से संजीव बेनीवाल जीते। इसके बाद वहां किसी एक दल का प्रभाव नहीं रहा। हालांकि पाला बदलकर संजीव बेनीवाल 2013 में भाजपा की टिकट से जीते लेकिन कांग्रेस अभी जीत की आस लगाए बैठी है। इधर, नोहर में 2003, 2008 व 2013 के चुनाव हारने के बाद कांग्रेस ने वापसी की है। परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई अनूपगढ़ सीट पर अब तक तीन चुनाव हो चुके हैं लेकिन कांगे्रस का यहां अभी तक खाता नहीं खुला। अनूपगढ़, सूरतगढ़, संगरिया, पीलीबंगा में भाजपा लगातार दूसरी बार जीतने में सफल रही है जबकि श्रीकरणपुर, सादुलशहर, रायसिंहनगर, हनुमानगढ़ में जीत के बाद हार का क्रम बना हुआ है।
कांग्रेस कहां से कब से वंचित है
विधानसभा 2003 2008 2013 2015
भादरा निर्दलीय निर्दलीय भाजपा सीपीएम
श्रीगंगानगर भाजपा भाजपा जमींदारा निर्दलीय
अनूपगढ़ ------ सीपीएम भाजपा भाजपा
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राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर संस्करण में 13 दिसंबर 18 के अंक में प्रकाशित

चार पूर्व विधायक तो छह मौजूदा विधायक हारे हारने वालों में दो मंत्री भी

श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ जिले की चुनावी तस्वीर
श्रीगंगानगर. विधानसभा चुनाव परिणाम से एक रोचक जानकारी निकल कर आई है। इस चुनाव में चार पूर्व विधायक तो छह मौजूदा विधायक चुनाव हार गए। इन छह में दो तो मंत्री भी थे। श्रीगंगानगर विधानसभा से पिछले चुनाव में रेकार्ड मतों से जीत दर्ज करने वाली जमींदारा पार्टी की कामिनी जिंदल की शर्मनाक हार हुई है। उनकी जमानत भी जब्त हो गई। वो छठे स्थान पर रहीं। इसी तरहए रासिंहनगर से जमींदारा पार्टी से जीतकर विधायक बनने वाली सोनादेवी भी इस बार हार गई। सोनादेवी इस बार कांग्रेस की टिकट पर चुनाव मैदान में थी लेकिन जमानत जब्त करवा बैठीं। वो चौथे स्थान पर रहीं। मौजूदा विधायक व मंत्री सुरेन्द्रपाल सिंह टीटी भी लगातार चुनाव नहीं जीत पाए। पार्टी ने दुबारा उनमें ही विश्वास जताया लेकिन हार गए। टीटी तीसरे स्थान पर रहे। हनुमानगढ़ जिले में तीन मौजूदा विधायक भी चुनाव हारे हैं। इनमें भादरा से संजीव बेनीवाल, नोहर से अभिषेक मटोरिया तथा हनुमानगढ़ से डॉ. रामप्रताप हैं। रामप्रताप मंत्री भी थे।
ये हैं चार पूर्व विधायक
चुनाव हारने वालों में चार विधायक भी हैं। इनमें सबसे बड़ा नाम कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे तथा बाद में भाजपा का दामन थामने वाले राधेश्याम
गंगानगर का है। राधेश्याम इस बार निर्दलीय मैदान में थे लेकिन हार गए। राधेश्याम को मात्र 2318 मत मिले। इसी तरह रायसिंनगर से पूर्व विधायक सोहन नायक इस बार निर्दलीय मैदान में थे लेकिन जीत नहीं पाए। हालांकि वो कांग्रेस प्रत्याशी सोनादेवी से ज्यादा वोट लेने
तथा जमानत बचाने में सफल रहे। हारने वाले पूर्व विधायकों में तीसरा नाम माकपा के पवन दुग्गल का है। उनका
मतदान प्रतिशत भी लगातार गिर रहा है। इस बार वह चौथे स्थान पर रहे। इसी तरह, भादरा विधानसभा से पूर्व विधायक
डॉ. सुरेश चौधरी इस कांग्रेस की टिकट पर मैदान में थे लेकिन हार गए।
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राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर संस्करण में 13 दिसंबर 18 के अंक में प्रकाशित...

पहले हारे लेकिन इस बार जीतने में हुए कामयाब

श्रीगंगानगर. चुनावी रण में हार-जीत होती रहती है। जो हारता है वह कभी जीत भी जाता है। श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ जिले में दोनों ही दलों में ऐसे प्रत्याशी हैं, जो पिछला चुनाव हारे लेकिन इस बार जीतने में सफल रहे। रायसिंहनगर से पिछला चुनाव हारने वाले भाजपा के बलवीर लूथरा इस बार चुनाव जीत गए। वहीं, सादुलशहर से कांग्रेस प्रत्याशी जगदीश जांगिड़ भी जीतने में सफल रहे। वे पिछला चुनाव हार गए थे। इसी तरह, 2008 के चुनाव में कांग्रेस की टिकट से श्रीगंगानगर से चुनाव लडऩे वाले राजकुमार गौड़ इस बार निर्दलीय लड़े और जीतने में कामयाब हुए। हनुमानगढ़ जिले की संगरिया विधानसभा से भाजपा के टिकट पर जीते गुरदीपसिंह शाहपीनी भी दो बार बतौर निर्दलीय भाग्य आजमा चुके हैं लेकिन सफलता इस बार हाथ लगी। इसी तरह, भादरा से सीपीएम प्रत्याशी बलवान पूनिया पिछले चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे लेकिन इस बार जीत का सेहरा उनके सिर बंधा। धर्मेन्द्र मोची वैसे तो दूसरी बार विधायक बने हैं लेकिन पीलीबंगा से पहली बार बने हैं। पिछले दो चुनाव वे यहां से हार गए थे।
पहली बार ही चुनाव लड़ा और जीत गए
हनुमानगढ़ व श्रीगंगानगर में दो ऐसे चेहरे हैं, जिन्होंने पहली बार चुनाव लड़ा और जीतने में सफल रहे। अनूपगढ़ से संतोष बावरी पहली बार भाजपा की टिकट से खड़ी हुई और जीतने में सफल हो गई। इसी तरह, हनुमानगढ़ जिले की नोहर विधानसभा से कांग्रेस के अमित चाचाण पहली बार खड़े हुए और जीत गए।
लगातार दूसरी बार हारे
श्रीगंगानगर में लगातार दूसरी बार हारने वालों में सूरतगढ़ से बसपा के डूंगरराम गेदर हैं। पिछले चुनाव में वह दूसरे स्थान पर रहे जबकि इस बार वे तीसरे स्थान पर खिसक गए। रायसिंहनगर से सोहन नायक ने पिछला चुनाव कांग्रेस की टिकट पर लड़ा और तीसरे स्थान पर रहे थे। वे इस बार निर्दलीय मैदान में थे, लेकिन चुनाव हार गए। हालांकि, नायक जमानत बचाने में सफल रहे। अनूपगढ़ विधानसभा से 2008 में पहली बार विधायक बने माकपा के पवन दुग्गल भी लगातार दूसरा चुनाव हार गए। श्रीगंगानगर से पिछला चुनाव भाजपा की टिकट पर लडऩे वाले राधेश्याम गंगानगर इस बार निर्दलीय मैदान में थे। उनको भी लगातार दूसरी बार हार का सामना करना पड़ा। हनुमानगढ़ जिले की संगरिया सीट से कांग्रेस प्रत्याशी शबनम गोदारा लगातार दूसरी बार हार गईं। पीलीबंगा से कांग्रेस प्रत्याशी विनोद कुमार भी लगातार दूसरी बार चुनाव हारे हैं।
यह पहले भी जीते
दोनों जिले के 11 विधायकों में ऐसे भी हैं जो पहले भी जीत चुके हैं। सूरतगढ़ से भाजपा की टिकट पर जीते रामप्रताप कासनिया पीलीबंगा से विधायक रह चुके हैं। 2008 में परिसीमन के बाद पीलीबंगा की सीट सुरक्षित हो गई। इस कारण उन्होंने इस बार सूरतगढ़ से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। श्रीकरणपुर से जीते कांग्रेस के गुरमीत कुन्नर इससे पहले 1998 व 2008 में भी जीत चुके हैं। वे तीसरी बार विधायक बने हैं। पीलीबंगा से जीते धर्मेन्द्र मोची दूसरी बार विधायक बने हैं। वे 2003 में टिब्बी से विधायक बने थे लेकिन बाद में परिसीमन के कारण टिब्बी विधानसभा खत्म हो गई। मोची को लगातार दो चुनाव में हार के बाद तीसरे चुनाव में सफलता मिली है। इसी तरह हनुमानगढ़ से जीते कांग्रेस के विनोद कुमार ने चौथी बार जीत दर्ज की है।
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राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर संस्करण के 13 दिसंबर 18 के अंक में प्रकाशित।

टिकटों की रणनीति : कितनी सफल कितनी विफल

श्रीगंगानगर. विधानसभा चुनाव में मौजूदा विधायकों के टिकट काटना तथा हारे हुए प्रत्याशियों पर फिर से विश्वास जताना दलों के लिए मिला-जुला सौदा रहा। भाजपा ने अनूपगढ़ में मौजूदा विधायक शिमला बावरी की टिकट काट इस बार नए चेहरे संतोष बावरी पर यकीन जताया। पार्टी की यह रणनीति कामयाब रही और संतोष जीत गईं। इसी तरह सूरतगढ़ से मौजूदा विधायक राजेन्द्र भादू का टिकट काट कर पूर्व मंत्री रामप्रताप कासनिया को टिकट देना भाजपा के लिए फायदे का सौदा रहा। इधर, सादुलशहर में मौजूदा विधायक गुरजंट सिंह बराड़ के बदले उनके पोते को उतारने का फैसला सही साबित नहीं हुआ जबकि पिछले चुनाव में रायसिंहनगर में हारे हुए प्रत्याशी पर फिर से दांव खेलना कारगर रहा।
श्रीकरणपुर में खान मंत्री सुरेन्द्रपाल सिंह को टिकट का फैसला फिट नहीं बैठा। यहां न केवल टीटी हारे बल्कि तीसरे स्थान पर रहे। श्रीगंगानगर में भाजपा ने इस बार नए चेहरे को मौका देकर चौंकाया लेकिन यहां भी जीत हासिल नहीं हुई। इस तरह जिले की छह सीटों में चार पर प्रत्याशी बदले जिनमें दो में जीत और दो पर हार का सामना करना पड़ा। खास बात यह है कि चार में तीन तो नए चेहरे थे। इसी तरह कांग्रेस ने भी इस बार टिकटों में बदलाव किया। अनूपगढ़ में उसने इस बार फिर से कुलदीप इंदौरा को मौका दिया। इंदौरा को 2008 में भी टिकट मिली थी लेकिन वो तब नहीं जीत पाए और इस बार भी हार गए। सूरतगढ़ में कांग्रेस ने पिछले बार गंगाजल मील को मौका दिया था, लेकिन सफलता नहीं मिली। इस बार कांग्रेस ने मील परिवार के ही लेकिन नए चेहरे हनुमान मील को टिकट दिया लेकिन वह रामप्रताप कासनिया के सामने उन्नीस ही साबित हुए।
रायसिंहनगर में जमींदारा पार्टी से जीत कर विधायक बनी सोनादेवी ने चुनाव से कुछ समय पहले कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की थी। कांग्रेस ने इस सीट पर अपने पुराने नेताओं का टिकट काटकर सोना देवी को टिकट थमाई लेकिन उनकी जमानत जब्त हो गई।
श्रीकरणपुर में कांग्रेस ने अपने परम्परागत चेहरे गुरमीत सिंह कुन्नर पर विश्वास जताया और वो जीतने में सफल रहे। श्रीगंगानगर में भी कांग्रेस ने अशोक चांडक को टिकट थमाई। चांडक भी ऐसे प्रत्याशी थे, जिन्होंने कुछ समय पहले ही कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की थी। कांग्रेस के लिए यह संतोष की बात रही है पिछले चुनाव में उसका प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहा जबकि इस बार दूसरे स्थान पाने में कामयाब रहे। सादुलशहर में कांग्रेस ने पिछला चुनाव हारे जगदीशचंद्र पर ही विश्वास जताया और पार्टी का फैसला सही साबित हुआ। इस तरह कांगे्रस ने भी छह में चार जगह चेहरे बदले लेकिन चारों जगह ही हार का सामना करना पड़ा। यही हाल पड़ोसी जिले हनुमानगढ़ का रहा, हालांकि भाजपा ने यहां पांच में से दो जगह ही चेहरे बदले और सफलता मिली लेकिन जहां पुराने चेहरों पर विश्वास किया। वहां पार्टी के हाथ निराशा हाथ लगी। संगरिया व पीलीबंगा में मौजूदा विधायकों का टिकट काटना भाजपा के लिए फायदेमंद रहा लेकिन भादरा, नोहर व हनुमानगढ़ में उसने पुराने विधायकों में विश्वास जताया लेकिन वे विश्वास पर खरा नहीं उतर पए। नोहर से अभिषेक मटोरिया, भादरा से संजीव बेनीवाल व हनुमानगढ़ से डॉ.रामप्रताप अपनी सफलता बरकरार नहीं रख सके जबकि पिछला चुनाव निर्दलीय लडऩे वाले धर्मेन्द्र मोची इस बार टिकट मिलने पर भाजपा के लिए जीतने में सफल हो गए। इसी तरह पिछला चुनाव निर्दलीय लडकऱ दूसरे स्थान पर रहने वाले गुरदीप सिंह शाहपीनी भी टिकट मिलने पर जीतने में कामयाब हो गए। कांग्रेस ने इस बार तीन जगह भादरा, नोहर व पीलीबंगा में चेहरे बदले लेकिन सफलता नोहर में हाथ लगी जहां अमित चाचाण ने जीत दर्ज की।
भादरा से डॉ.सुरेश चौधरी और पीलीबंगा से विनोद गोठवाल पार्टी को जीत नहीं दिला सके। संगरिया में कांग्रेस ने पुराने प्रत्याशी पर ही भरोसा किया लेकिन वहां भी जीत नसीब नहीं हुई। हनुमानगढ़ में कांग्रेस के परम्परागत प्रत्याशी विनोद कुमार इस बार जीतने में सफल रहे।
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राजस्थान.पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 12 दिसंबर 18 के अंक में प्रकाशित 
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