Friday, November 29, 2013

इस बार रोचक होगा दुर्ग का दंगल


दुर्ग विधानसभा

दुर्ग शहर के दंगल में इस बार भी भाजपा व कांग्रेस के परम्परागत दिग्गज ही दिखाई देंगे। इस विधानसभा क्षेत्र में अब तक हुए 13 मुकाबलों में नौ में जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस को पिछले तीन चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। यह भी संयोग है कि 1993 से हेमचंद यादव व अरुण वोरा चुनाव लड़ते आ रहे हैं। इस चुनाव में वोरा के पक्ष में माहौल है। इस क्षेत्र से कांग्रेस कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा पांच बार विधायक रहे हैं। इसके बाद उनकी विरासत उनके पुत्र अरुण वोरा ने सम्भाली, लेकिन वे केवल एक बार ही जीत दर्ज कर पाए।
भाजपा के हेमचंद यादव यहां से तीन बार जीत चुके हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भिलाई में चुनावी सभा को संबोधित कर माहौल पक्ष करने में प्रयास तो भाजपा के नरेन्द्र मोदी भी दुर्ग सभा कर मतदाताओं को रिझाने की कोशिश की। राजबब्बर भी अरुण वोरा के समर्थन में सभा कर चुके हैं। इसके अलावा घर-घर दस्तक देने व जनसम्पर्क करने का काम भी गति पकड़ चुका है।
नाम वापसी के बाद मैदान में कुल 18 प्रत्याशी डटे हुए हैं। यहां से बसपा, सपा, एनपीपी एवं शिवसेना ने भी प्रत्याशी खड़े किए हैं, लेकिन इनमें कोई मुकाबले में दिखाई नहीं दे रहा है। इधर, महापौर के चुनाव में करीबी मुकाबले में हारे छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच के राजेन्द्र साहू भी मैदान में हैं। ऐसे में मुकाबला रोचक एवं त्रिकोणीय होने के आसार बन गए हैं। हार-जीत को लेकर सभी के अपने-अपने दावे हैं, लेकिन फिलहाल तस्वीर साफ नहीं है। पिछली बार हार-जीत का अंतर करीबी होने के कारण मुकाबला दिलचस्प होना तय माना जा रहा है। क्षेत्र में साहू, कुर्मी, अल्पसंख्यक एवं मारवाड़ी मतदाताओं की बहुलता है।
विकास बनाम भ्रष्टाचार
चुनाव में फिलहाल विकास बनाम भ्रष्टाचार की प्रमुख मुद्दा बना हुआ है। भाजपा प्रत्याशी जहां विकास के नाम पर वोट मांग रहे हैं और कांग्रेस व भाजपा शासन की तुलना कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस प्रत्याशी भाजपा सरकार के कार्यकाल में हुए कार्यों की गुणवत्ता पर सवाल उठा रहे हैं। वे शहर की कानून व्यवस्था व भ्रष्टाचार को ही अपना हथियार बनाए हुए हैं। वैसे कांग्रेस प्रत्याशी सड़क, बिजली, पानी जैसी बुनियादी समस्याओं को लेकर क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहे हैं। इधर मंच प्रत्याशी भी कई जन आंदोलनों से जुड़े रहे हैं।
मुद्दे दिखाएंगे असर
भाजपा प्रत्याशी भले की विकास का दावा करें, लेकिन हकीकत इससे उलट ही दिखाई देती है। निगम में भी भाजपा के महापौर होने के बावजूद कई जगह तो दुर्ग शहर की हालात ग्रामीण क्षेत्रों से भी बदतर है। बदहाल सड़कों की हालत में सुधार नहीं हुआ। पेयजल आपूर्ति हर दूसरे तीसरे दिन प्रभावित होती रही। कभी पाइपलाइन फूटने के नाम पर तो कभी लाइन बदलने के नाम पर। शहर में बढ़ते अपराधों पर कारगर अंकुश नहीं लग पाया। नशे का कारोबार भी बेखौफ चलता रहा।
थाह लेना मुश्किल
दुर्ग में मतदान का प्रतिशत 60-65 के बीच ही रहता आया है, लेकिन दुर्ग का चुनाव जरूर चर्चा में रहता है। इस बार भी परम्परागत चेहरे मैदान में हैं, लिहाजा मतदाताओं में वैसा उत्साह नहीं दिख रहा है। हालांकि मंच की उपस्थिति से मुकाबला रोचक होना तय है और इसी वजह से लोग खुलकर कुछ नहीं बोल पा रहे हैं। ऐसे में उनकी थाह लेना या मानस टटोलना टेढ़ी खीर है। अपनी पसंद व नापंसद को वे सीधे तौर पर जाहिर भी नहीं कर रहे हैं। मतदाताओं की यह खामोशी क्या गुल खिलाएगी यह तो समय के गर्भ में है, लेकिन दुर्ग के दंगल में इस बार घमासान जोरदार होगा।

 साभार : पत्रिका छत्तीसगढ़ में 18 नवम्बर 13 के अंक में प्रकाशित।

पुराने प्रतिद्वंद्वियों के बीच कांटे की टक्कर

साजा विधानसभा


कृ षि प्रधान क्षेत्र साजा में इस बार भी मुकाबला उन्हीं प्रतिद्वंद्वियों के बीच है, जो पिछले चुनाव में आमने-सामने थे। पिछले चुनाव में हार का अंतर कम होने के कारण भाजपा ने बजाय कोई नया प्रयोग करने की उसी प्रत्याशी को मैदान में उतार दिया है। भाजपा प्रत्याशी लाभचंद बाफना को मुख्यमंत्री का नजदीकी होने के कारण चुनाव को प्रतिष्ठा की लड़ाई से जोड़ कर देखा जा रहा है। तभी तो इस क्षेत्र में मुख्यमंत्री सहित भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वेकैंया नायडू, फिल्म अभिनेत्री हेमा मालिनी, मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती आदि चुनावी सभाएं कर चुके हैं, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी फिलहाल अकेले की प्रचार की कमान संभाले हुए हैं। उनके समर्थन में पार्टी का कोई बड़़ा नेता नही आया है।
चुनाव प्रचार में इस प्रकार का अंतर इसलिए भी है, क्योंकि कांग्रेस प्रत्याशी रविन्द्र चौबे यहां से लगातार छह बार जीत दर्ज कर चुके हैं, जबकि भाजपा को यहां खाता खुलने का इंतजार है। यह बात दीगर है कि 1977 में साजा विधानसभा क्षेत्र जब अस्तित्व में आया, उस वक्त पहले विधायक जनता पार्टी के बने थे। इसके बाद से इस सीट पर लगातार कांग्रेस ही जीतती आई है। यह भी संयोग है कि अब तक जितने भी प्रत्याशी यहां से जीते हैं, सभी एक ही परिवार से संबंधित हैं। कांग्रेस के रविन्द्र चौबे ने सबसे बड़ी जीत 1998 में दर्ज की थी, जब वे 24 हजार 318 मतों से विजयी रहे थे। सबसे कम अंतर की जीत पिछले चुनाव में थी, जब वे महज 5055 मतों से जीत पाए।
भाजपा के बढ़े वोट
भाजपा के लिए राहत की बात यह है कि पिछले दो चुनाव में उसके प्रत्याशी हारे जरूर हैं, लेकिन कुल वोट हासिल करने का ग्राफ बढ़ा है। 2003 में भाजपा प्रत्याशी को 40 हजार 831, जबकि 2008 में 58 हजार 720 मत मिले। इधर कांग्रेस प्रत्याशी ने 2003 में 58 हजार 573 तथा 2008 में 63 हजार 775 मत मिले। इस प्रकार भाजपा ने जहां अपने कुल मतों में 17 हजार 889 मतों की वृद्धि की, जबकि कांग्रेस ने 5 हजार 202 वोट बढ़ाए। साजा से इस बार आठ प्रत्याशी मैदान में हैं। छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच ने रामकुमार साहू को मैदान में उतारा है, जबकि कांग्रेस के पूर्व विधायक किशनलाल कुर्रे भी इस बार बतौर निर्दलीय साजा से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। फिर भी मुख्य मुकाबला भाजपा एवं कांग्रेस के बीच ही माना जा रहा है। साजा में लोधी एवं साहू समाज की बाहुल्यता है। इनके मत ही हमेशा निर्णायक रहते आए हैं।
वास्तविक मुद्दे गौण
साजा कृषि प्रधान क्षेत्र है। धान, सोयाबीन, चना, अरहर, टमाटर एवं हरी सब्जियों के उत्पादन में यह क्षेत्र अग्रणी है। यहां कृषि रकबा भी प्रदेश में अव्वल है। इतना कुछ होने के बाद भी दोनों दलों की ओर से कृषि आधारित शिक्षा एवं उद्योग के लिए कोई पहल नहीं की गई है। सिंचाई का पानी भी इस क्षेत्र में बड़ा संकट है। सूतियापाट-नरोधा डेम का पानी इस इलाके में लाने के लिए बनी योजना भी समय के साथ दफन हो गई। इसके अलावा क्षेत्र में कई जगह पेयजल संकट भी है। सूरही नदी का पानी रोकने के लिए कई जगह स्टॉप डेम बनाए गए, लेकिन यहां पानी रुकता नहीं है, इस कारण किसानों को उतना लाभ नहीं मिल पाता। हालांकि पानी को रोकने के लिए दर्जनभर स्टॉप डेम बनाए गए हैं, लेकिन वे ऐसी जगह बने हैं जहां पानी रुकता नहीं है। क्षेत्र में चिकित्सा एवं उच्च शिक्षा की व्यवस्था भी संतोषजनक नहीं है। इतने सारे मुद्दे होने के बावजूद इस संबंध में दोनों दलों की तरफ से कोई ठोस घोषणा नहींं की गई है।
आरोप-प्रत्यारोप का दौर
साजा विधानसभा में फिलहाल मुद्दे गौण हैं। आरोप-प्रत्यारोप का दौर जरूर चल रहा है। एक-दूसरे को जनता का हितैषी एवं सच्चा सेवक बताकर मतदाताओं को लुभाने का प्रयास किया जा रहा है। भाजपा प्रत्याशी लाभचंद बाफना मतदाताओं के समक्ष खुद को जनता का सेवक होने तथा पांच साल के लिए सेवा का मौका देने के नाम पर वोट मांग रहे हैं, जबकि चौबे इसको पंूजीपति बनाम किसान की लड़ाई करार देते हुए मैदान में डटे हैं। चौबे कह रहे हैं कि वे स्वयं किसान हैं, इस कारण किसानों के दुख-दर्द बेहतर तरीके से समझते हैं।

 साभार : पत्रिका छत्तीसगढ़ में 16 नवम्बर 13 के अंक में प्रकाशित।

प्रचार से अब तक मुद्दे गायब

पाटन विधानसभा

दुर्ग जिले की पाटन विधानसभा में एक बार फिर मुख्य मुकाबला दोनों रिश्तेदारों एवं परम्परागत प्रतिद्वंद्वियों के बीच ही माना जा रहा है। कहने को यहां बसपा एवं स्वाभिमान मंच ने भी प्रत्याशी उतारे हैं, लेकिन वे अभी तक मुकाबले में दिखाई नहीं देते हैं। नामांकन वापसी के बाद यहां से कुल 11 प्रत्याशी मैदान में हैं। भाजपा प्रत्याशी विजय बघेल यहां से तीसरी बार, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी भूपेश बघेल पांचवीं बार मैदान में हैं। विजय बघेल यहां से एक बार जबकि भूपेश बघेल तीन जीत चुके हैं। सन 1977 में अस्तित्व में आए इस विधानसभा क्षेत्र में अब तक आठ मुकाबलों में छह में बाजी कांग्रेस के हाथ लगी है, जबकि दो बार भाजपा ने जीत हासिल की है। पाटन विधानसभा क्षेत्र में मुकाबले हमेशा रोचक ही रहे हैं और हार-जीत का अंतर हमेशा आठ हजार मतों से कम ही रहता है। मजे की बात तो यह है कि यहां सबसे बड़ी जीत 1980 में 7983 मतों से कांग्रेस प्रत्याशी के नाम दर्ज है, तो सबसे कम अंतर 1985 में 2934 मत की जीत का सेहरा भी कांग्रेस के सिर पर ही बंधा है।
कुर्मी एवं साहू समाज निर्णायक
पाटन विधानसभा क्षेत्र में कुर्मी एवं साहू समाज की भूमिका हर बार निर्णायक रहती हैं, क्योंकि क्षेत्र में दोनों समाज की बहुलता है। इसके अलावा अनुसूचित जाति के रूप में सतनामी समाज की भी यहां अच्छी खासी दखल है। पिछले चुनाव में भाजपा का समर्थन करने वाले साहू समाज ने इस बार टिकट वितरण के दौरान भाजपा प्रत्याशी के प्रति नाराजगी जाहिर करते हुए टिकट मांगा था। अगर यह नाराजगी मतदान तक कायम रही तो फिर विजय बघेल के लिए खतरा हो सकता है। भाजपा एवं कांग्रेस दोनों के प्रत्याशी कुर्मी जाति से हैं, ऐसे में छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच ने यहां दीनू साहू को टिकट थमाया है, लेकिन उससे नुकसान कांग्रेस के मुकाबले भाजपा को ज्यादा होने के आसार हैं।
लगातार बढ़ रहा है जीत का अंतर
एक रोचक तथ्य यह भी जुड़ा है कि 1985 के बाद से लगातार जीत का अंतर बढ़ रहा है, जो पिछले चुनाव में 7842 था। बुनियादी सुविधाओं में पिछड़ा होने के बावजूद पाटन विधानसभा क्षेत्र के लोग मतदान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। पिछले विधानसभा में यहां 79 प्रतिशत मतदान हुआ था। बहरहाल, चुनावी शतरंज पर पुराने खिलाड़ी होने की वजह से मतदाताओं में खास उत्साह दिखाई नहीं देता है। भाजपा प्रत्याशी के जहां अपने कार्यकाल की 'उपलब्धियों एवं 'विकास के नाम पर मतदाताओं के बीच वोट मांग रहे हैं, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी अपने कार्यकाल की तुलना करते हुए जनता के बीच हैं, लेकिन 'विकास के शोर में क्षेत्र के प्रमुख मुद्दे गौण हो गए हैं।
अधूरी घोषणाएं पड़ सकती हैं भारी
पाटन विधानसभा क्षेत्र के लोग प्रत्याशियों के मुंह से विकास के दावे सुनकर हैरान हैं। वे समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर विकास कहां हुआ है। देखा जाए तो मतदाताओं की यह हैरानी जायज भी है। क्षेत्र में बुनियादी सुविधाएं भी लोगों को ठीक से मयस्सर नहीं हैं। क्षेत्र में कई प्रमुख मुद्दे हैं, जो इस बार चुनाव में रंग दिखा सकते हैं। उपकोषालय के यहां के लोगों को दुर्ग जाना पड़ता है। ग्रामीणों की मानें तो मुख्यमंत्री ने यहां छह माह में उपकोषालय की घोषणा की थी, लेकिन वह घोषणा अमल में नहीं आई। आईटीआई भी पाटन में न खुलकर दरबारमुखली में खुल गई, लेकिन वहां भी उसमें संसाधनों का अभाव है। पाटन में महिला महाविद्यालय की मांग भी अधूरी ही रह गई। इसके अलावा नल योजना व वृहद पेयजल योजना भी यहां के प्रमुख मु्द्दे हैं। क्षेत्र की टूटी-फूटी सड़कें भी इस बार चुनाव में प्रभावी भूमिका निभाएंगी। इतना ही नहीं हाल में करोड़ों रुपए के बजट से बनाई गई सड़कें तो दो माह भी नहीं चल पाई। सड़क निर्माण में हुई अनियमितता के चलते लोगों में आक्रोश है।

2008 में मतदाता  155806
2013 में मतदाता 170581
मतदाता बढ़े 14775
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 साभार : पत्रिका छत्तीसगढ़ में 15 नवम्बर 13 के अंक में प्रकाशित।

नई बिसात, पुराने मोहरे

भिलाईनगर विधानसभा

प्रदेश के सर्वाधिक साक्षर एवं जागरूक विधानसभा क्षेत्र भिलाईनगर के साथ यह विडम्बना जुड़ी है कि इस बार चुनावी बिसात में भी वो ही चेहरे आमने-सामने हैं, जो न केवल पिछले चुनाव बल्कि बीस साल से एक-दूसरे के खिलाफ जोर आजमाइश करते आए हैं। आचार संहिता की सख्ती एवं मतदाताओं की चुप्पी ने प्रत्याशियों के समक्ष दुविधा खड़ी कर दी है। तभी तो राजनीति के खांटी खिलाड़ी एवं परम्परागत प्रतिद्वंद्वियों को इस बार जीत के लिए खूब पसीना बहाना पड़ रहा है। मतदान में मात्र सप्ताहभर का समय शेष होने के बाद भी कोई भी जीत के प्रति आश्वत दिखाई नहीं दे रहा है। इतना ही नहीं प्रत्याशियों के समर्थकों में भी बेचैनी कुछ कम नहीं। वे भी कुछ भी हो सकता है, मान कर चल रहे हैं। इन सब को देखते हुए भिलाईनगर का चुनाव इस बार बेहद दिलचस्प एवं कांटे की टक्कर वाला होने की उम्मीद लगाई जा रही है। भाजपा के प्रेमप्रकाश पाण्डेय लगातार छठी बार भाग्य आजमा रहे हैं तो कांग्रेस के बदरुद्दीन कुरैशी भी लगातार पांचवीं बार मैदान में हैं। पाण्डेय तीन बार जीत चुके हैं, जबकि कुरैशी दो बार। नामांकन वापसी के बाद भिलाईनगर से कुल १८ प्रत्याशी मैदान में हैं। पिछले चुनाव में यहां से 12 प्रत्याशी मैदान में हैं। निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्या में वृद्धि होने के भी राजनीतिक गलियारों में कई तरह के अर्थ लगाए जा रहे हैं। सांसद सरोज पाण्डेय की भाजपा प्रत्याशी के समर्थन में सभाओं को लेकर भी लोग कई तरह के कयास लगा रहे हैं।
कोई नया मुद्दा नहीं
जागरूक विधानसभा क्षेत्र के लिए प्रत्याशियों के पास कोई नया मुद्दा नहीं है। भाजपा के प्रेमप्रकाश पाण्डेय अपने पुराने कार्यकाल में किए गए कार्यों के सहारे की चुनावी वैतरणी पार करवाने के प्रयास में जुटे हैं तो कांग्रेस प्रत्याशी कुरैशी भी श्रमिकों के सम्मान और गांधी जयंती पर प्रतिभावान विद्यार्थियों को पुरस्कृत करने को ही अपनी उपलब्धि मानते हुए इससे भुनाने का उपक्रम कर रहे हैं।
जमने लगी है चुनावी रंगत
नामांकन वापसी तथा दीपोत्सव व छठ पर्व के बाद भिलाईनगर विधानसभा क्षेत्र में चुनावी रंगत रफ्ता-रफ्ता जमने लगी है। मतदान की तिथि नजदीक आने के साथ ही प्रत्याशियों के जनसम्पर्क अभियान में यकायक गति आ गई है। नुक्कड़ नाटकों एवं गली-गली में जनसम्पर्क का सिलसिला भी परवान पर है। प्रत्याशियों के परिजनों ने भी मोर्चा संभाल लिया है। वैसे चुनाव का ज्यादा असर पटरीपार के खुर्सीपार इलाके में ज्यादा देखने को मिल रहा है। घर-घर भाजपा-कांग्रेस के झंडे टंगे हुए हैं। टाउनशिप में इस प्रकार का माहौल नहीं है, लेकिन प्रमुख रास्तों पर लगाए गए होर्डिंग्स आने-जाने वालों का ध्यान जरूर खींचते हैं। भाजपा प्रत्याशी की कार्ययोजना में भिलाई को विकास की दौड़ में सबसे आगे खड़ा करना और टाउनशिप को फिर से पुराना स्वरूप देने का की है, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी भिलाई को शांति और अमन की राह पर ले जाने तथा गुण्डागर्दी खत्म कर लोगों में एकता स्थापित करने का सपना लिए चुनावी समर में डटे हैं।
मंच ने उतारा प्रत्याशी
चुनावों की घोषणा होने तक चुप्पी साधने के बाद छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच ने यहां से अपना प्रत्याशी मैदान में उतार दिया है। भाजपा प्रत्याशी के खेमे में इस बात को लेकर खुशी व्यक्त की जा रही है। दरअसल ऐसा इसलिए हो रहा है कि पिछले चुनाव में मंच ने भाजपा के प्रत्याशी के खिलाफ प्रचार कर अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस प्रत्याशी की मदद की थी। भाजपा समर्थक मानते हैं कि इस बार मंच का उम्मीदवार खड़ा होने से नुकसान कांग्रेस को होगा। भाजपा प्रत्याशी के समर्थक इस बात को गाहे-बगाहे भुना भी रहे हैं। इधर, कांग्रेस समर्थकों का मानना है कि मंच ने भले ही उम्मीदवार खड़ा कर दिया, लेकिन वह कांग्रेस को नुकसान पहुंचाएगा इस बात के आसार कम हैं।
बदरुद्दीन कुरैशी 52848
प्रेमप्रकाश पाण्डे 43985
जीत का अंतर 8863

 साभार : पत्रिका छत्तीसगढ़ में 12 नवम्बर 13 के अंक में प्रकाशित।

इस बार चौंकाने वाला होगा परिणाम

वैशालीनगर विधानसभा

वैशालीनगर विधानसभा सीट से भाजपा-कांग्रेस ने भले ही प्रत्याशी फाइनल करने में वक्त लगाया हो, लेकिन यहां इस बार मुकाबला दिलचस्प होता दिख रहा है। आलम यह है कि वैशालीनगर की नस-नस से वाकिफ दोनों प्रत्याशियों के बीच कांटे की टक्कर होने के पूरे-पूरे आसार दिखाई दे रहे हैं। क्षेत्र में फिलहाल न कोई मुद्दा है और न ही किसी तरह की लहर। ऐसे में चुनावी परिणाम चौंकाने वाला ही होगा। दोनों दलों के प्रत्याशियों के नाम फाइनल होने के बाद मतदाताओं में फिलहाल चर्चा पर जरूर विराम लगा है, लेकिन जेहन में यह सवाल जरूर उठ रहा है कि आखिरकार लम्बे इंतजार एवं इतनी देरी के बाद प्रत्याशी घोषित करने के पीछे वजह क्या है? यह बात दीगर है कि दोनों ही प्रत्याशी देरी से टिकट मिलने के पीछे कोई बड़ा कारण नहीं मानते।
अजब संयोग से वास्ता
संयोग ही है कि प्रत्याशी घोषणा करने के मामले में दोनों ही दलों ने अपने पत्ते देर से खोले, लेकिन नाम की घोषणा एक ही दिन मंगलवार को हुई। दोनों ही दलों के प्रत्याशी पंजाबी समुदाय से संबंधित हैं और दोनों वैशालीनगर के स्थानीय वाशिंदे हैं। इतना ही नहीं है दोनों न तो वैशालीनगर के लिए अनजान हैं और न ही वैशालीनगर के लिए दोनों अजनबी। दोनों जाने-पहचाने एवं परखे हुए चेहरे हैं। कांग्रेस प्रत्याशी जहां साडा अध्यक्ष रहने के साथ वर्तमान में विधायक हैं, वहीं भाजपा प्रत्याशी भिलाई निगम के महापौर रह चुके हैं। दोनों ही प्रत्याशियों के बंगले आलीशान हैं। वैशालीनगर के साथ यह भी संयोग है कि परिसीमन के बाद दो चुनाव में एक में भाजपा व एक में कांग्रेस के हाथ जीत लगी है।
अब कार्यकर्ताओं पर दारोमदार
बुधवार सुबह 11 बजे के करीब का समय। पूर्व महापौर विद्यारतन भसीन के आवास के बाहर अन्य दिनों के मुकाबले ज्यादा चहल-पहल नजर आ रही है। वाहनों की आवाजाही भी निरंतर बनी हुई है। भसीन के बंगले में बना गैरेज अब मिनी कार्यालय में तब्दील हो चुका है। अंदर कुर्सियों लगा दी गई हैं। बैठने वालों को गर्मी न लगे, इसलिए पंखे भी लगाए जा रहे हैं। समर्थकों से घिरे भसीन के मोबाइल की घंटी थमने का नहीं ले रही है। वे मोबाइल पर न केवल समर्थकों की बधाई स्वीकार कर रहे हैं, लगे हाथ उनसे सहयोग और चुनाव में जुट जाने की अपील भी कर रहे हैं। कार्यालय में एक मेज पर फूलों की माला रखी है, तो ऊपर एक थाली में मिठाई रखी है। समर्थकों के आने का क्रम जारी है। कोई चरण-स्पर्श करता है तो कोई हाथ मिलाता है। खुशी से सराबोर कार्यकर्ता कहते हैं रतन भैया, पार्टी ने भले ही देर से घोषणा की, लेकिन फैसला अच्छा किया है। पलटकर भसीन जवाब देते हैं अब सारा दारोमदार आप पर ही है। पार्टी ने तो फैसला कर दिया अब उसको परिणाम में बदलने का दायित्व आप सभी का है।
होई वही जो राम रुचि राखा
बुधवार सुबह 11.45 बजे। भजनसिंह निरंकारी अपने आवास में बनाए गए अपने कार्यालय में अपने पांच समर्थकों के साथ बैठे हैं। सभी खामोश हैं। अचानक खामोशी टूटती है। एक समर्थक सवाल पूछता है 'टिकट मिलने में इतनी देरी कैसे हो गई? सवाल सुनकर निरंकारी मुस्कुराते हैं, थोड़ा रुकने के बाद कहते हैं 'देरी, कहां? सब कुछ समयानुसार ही होता है। फिर कहते हैं 'होई वही जो राम रुचि राखा..। ऊपर वाले के घर न देर है न अंधेर है। सब कुछ निश्चित है, वैसे भी टिकट तो तय ही था। इतना कहकर वे समर्थकों की तरफ देखते हैं, और सभी लोग 'हां, यह बात तो है कहकर निरंकारी का समर्थन करते हैं। फिर खामोशी छा जाती है। फिर सवाल एक उठता है 'भाजपा ने तो भसीन जी को टिकट दी है। निरंकारी थोड़े दार्शनिक होते हुए कहते हैं 'मैं किसी से मुकाबला नहीं करता है। मैं सिर्फ अपनी लाइन पर भरोसा करता हूं। इसी बीच दो समर्थक और आते हैं। निरंकारी को बधाई देते हैं। इतने में चाय आती है, साथ में मिठाई थी। निरंकारी समर्थकों को कहते हैं, 'फार्म भरने से संबंधित तैयारी पूरी कर के रखो।

फैक्ट फाइल
2008 में मतदाता- 2,05,504
2013 में मतदाता- 2,31,457

मतदाता बढ़े- 25,953

2008 के विधानसभा चुनाव में

कांग्रेस के बृजमोहन सिंह को मिले थे - 41,811

भाजपा की सरोज पाण्डे को मिले थे - 63,078

जीत का अंतर - 21,267

2009 के विधानसभा उपचुनाव में

कांग्रेस के भजन सिंह निरंकारी को मिले थे- 47,225

भाजपा के जागेश्वर साहू को मिले थे- 42,997

जीत का अंतर- 1228

निष्कर्ष
वैशालीनगर विधानसभा क्षेत्र परिसीमन के बाद 2008 में पहली बार अस्तित्व में आया, लिहाजा यह किसी दल की परम्परागत सीट नहीं रही है। दोनों की प्रत्याशियों के मुकाबला इसलिए आसान नहीं, क्योंकि भितरघात एवं गुटबाजी का फैक्टर दोनों जगह है, जो इस से पार पाने में सफल रहेगा उसकी राह उतनी ही आसान होगी। स्वाभिमान मंच के भिलाई निगम में पार्षद जांनिसार अख्तर ने भी यहां से अपनी दावेदारी पेश की है। अख्तर अल्पसंख्यक समुदाय के मतों से आस लगाए हुए हैं। अगर ऐसा हुआ तो नुकसान कांग्रेस को ही ज्यादा होने के आसार हैं, क्योंकि अल्पसंख्यक कांग्रेस के परम्परागत मतदाता रहे हैं। लब्बोलुआब यह है कि वैशालीनगर का मुकाबला बेहद करीब एवं रोचक रहने की उम्मीद की जा रही है।

साभार : पत्रिका छत्तीसगढ़ में 1 नवम्बर 13 के अंक में प्रकाशित।