बस यूं ही
आफिस से घर पहुंचते-पहुंचते डेढ़ बज चुका था। अचानक ख्याल आया कि एकलव्य (मेरा छोटा बेटा, जो केजी टू में पढ़ता है) की स्कूल बस आने का समय हो गया है। बस रोजाना डेढ़ और पौने दो बजे के बीच ही आती है लेकिन वह घर तक नहीं आती है। इसलिए एकलव्य को लेने के लिए सड़क तक जाना पड़ता है। रायपुर-नागपुर मार्ग होने के कारण इस पर वाहनों की आवाजाही भी खूब रहती है। एकलव्य को लेकर घर पहुंचा तब तक श्रीमती ने खाने की तैयारी लगभग पूरी कर ली थी। चाहे गर्मी हो या सर्दी अपनी आदत के अनुसार मैं गर्मागर्म एक-एक चपाती ही खाता हूं। खाने की स्पीड भी इतनी तेज है कि जब तक दूसरी आए तब तक पहली वाली साफ हो चुकी होती है। खाने की स्पीड उस वक्त तो और भी बढ़ जाती है जब कहीं जाना होता है।
दरअसल मैं जल्दबाजी इसलिए दिखा रहा था कि मुझे कांग्रेस पार्टी के दुर्ग में आयोजित घेराव कार्यक्रम को देखने जाना था। करीब आधा घंटे कार्यक्रम देखने के बाद मैंने ऑटो पकड़ा और भिलाई के लिए रवाना हो गया। रास्ते में मेरे ऑटो के आगे एक लोडिंग ऑटो चल रहा था। उसके पीछे की साइड में लिखा था, जल्दबाज ड्राइवर कभी बूढा नहीं होता है। यह स्लोगन मैंने पढ़ लिया और इसका मर्म समझ कर मन ही मन मुस्कुरा भी लिया। ऑटो चालक की बगल में ही उसका साथी बैठा था। चेहरे के हावभाव देखकर मुझे उनके बालिग होने में संदेह लगा। दोनों बच्चे ही थे। उन दोनों ने भी वह स्लोगन पढ़ा और इसके बाद तो बार-बार पढ़ने लगे। दोनों की हालत देखकर मुझे लगा कि शायद दोनों को स्लोगन के पीछे छिपा मर्म समझ में नहीं आ रहा है। मैंने जिज्ञासावश दोनों को टोकते हुए पूछ लिया कि इस स्लोगन से आप क्या समझते हैं। जवाब भी वैसा ही आया जैसा मैं सोच कर चल रहा था। दोनों ने असहमति में सिर हिलाया। मैंने उनको कहा कि जो ड्राइवर गाड़ी तेज चलाता है वह कभी बूढा नहीं होता है। चूंकि मैं पीछे बैठा था लिहाजा दोनों ने मेरी बात को गंभीरता से सुना, लेकिन किसी तरह की प्रतिक्रिया ना होती देख मैंने फिर पूछा समझे कि नहीं, इस पर उन्होंने असहमति स्वरूप अपना सिर हिला दिया। मैंने उनको बताया कि जो वाहन तेज चलाता है वह इसलिए बूढा नहीं होता है क्योंकि वह असमय ही ऊपर मतलब भगवान के घर चला जाता है। वे फिर भी नहीं समझे और पूछने लगे कि कैसे। मैंने बताया कि जब तेज चलेगा तो हादसा होगा और हादसा होगा तो जान जाने की आशंका रहती है। मेरी बात एक युवक को समझ में आ गई। उसने तत्काल अपने साथी को अपने हिसाब से समझाया तो दोनों ठहाका लगाना लगे। फिर तो एक युवक ने बिलकुल विशेषज्ञ की तरह मुझसे कहा, भाईसाहब सिगरेट पीने वालों के लिए भी ऐसा ही कहा जाता है ना। इसी दौरान दूसरा बोल उठा सिर्फ सिगरेट ही नहीं कोई नशा करने वाला कभी बूढ़ा नहीं होता। ऑटो अपनी गति से दौड़ा जा रहा था। नशे की बात पर इतनी गंभीर बातें करने वाले युवकों को गुटखा चबाते व पीक थूकते देख मैं सोच में इस कदर डूबा कि मेरा स्टैण्ड कब आया पता ही नहीं चला। उतरते वक्त मैंने गुटखे के लिए दोनों को टोका तो उलटे मेरे को ही नसीहत देने लगे, बोले भाईसाहब कैन्सर तो उनके भी होता है जो नशा नहीं करते। मैं उन नासमझों की बातों पर बिना कोई टिप्पणी किए किराये के दस रुपए थमा कर चुपचाप कार्यालय लौट आया।
आफिस से घर पहुंचते-पहुंचते डेढ़ बज चुका था। अचानक ख्याल आया कि एकलव्य (मेरा छोटा बेटा, जो केजी टू में पढ़ता है) की स्कूल बस आने का समय हो गया है। बस रोजाना डेढ़ और पौने दो बजे के बीच ही आती है लेकिन वह घर तक नहीं आती है। इसलिए एकलव्य को लेने के लिए सड़क तक जाना पड़ता है। रायपुर-नागपुर मार्ग होने के कारण इस पर वाहनों की आवाजाही भी खूब रहती है। एकलव्य को लेकर घर पहुंचा तब तक श्रीमती ने खाने की तैयारी लगभग पूरी कर ली थी। चाहे गर्मी हो या सर्दी अपनी आदत के अनुसार मैं गर्मागर्म एक-एक चपाती ही खाता हूं। खाने की स्पीड भी इतनी तेज है कि जब तक दूसरी आए तब तक पहली वाली साफ हो चुकी होती है। खाने की स्पीड उस वक्त तो और भी बढ़ जाती है जब कहीं जाना होता है।
दरअसल मैं जल्दबाजी इसलिए दिखा रहा था कि मुझे कांग्रेस पार्टी के दुर्ग में आयोजित घेराव कार्यक्रम को देखने जाना था। करीब आधा घंटे कार्यक्रम देखने के बाद मैंने ऑटो पकड़ा और भिलाई के लिए रवाना हो गया। रास्ते में मेरे ऑटो के आगे एक लोडिंग ऑटो चल रहा था। उसके पीछे की साइड में लिखा था, जल्दबाज ड्राइवर कभी बूढा नहीं होता है। यह स्लोगन मैंने पढ़ लिया और इसका मर्म समझ कर मन ही मन मुस्कुरा भी लिया। ऑटो चालक की बगल में ही उसका साथी बैठा था। चेहरे के हावभाव देखकर मुझे उनके बालिग होने में संदेह लगा। दोनों बच्चे ही थे। उन दोनों ने भी वह स्लोगन पढ़ा और इसके बाद तो बार-बार पढ़ने लगे। दोनों की हालत देखकर मुझे लगा कि शायद दोनों को स्लोगन के पीछे छिपा मर्म समझ में नहीं आ रहा है। मैंने जिज्ञासावश दोनों को टोकते हुए पूछ लिया कि इस स्लोगन से आप क्या समझते हैं। जवाब भी वैसा ही आया जैसा मैं सोच कर चल रहा था। दोनों ने असहमति में सिर हिलाया। मैंने उनको कहा कि जो ड्राइवर गाड़ी तेज चलाता है वह कभी बूढा नहीं होता है। चूंकि मैं पीछे बैठा था लिहाजा दोनों ने मेरी बात को गंभीरता से सुना, लेकिन किसी तरह की प्रतिक्रिया ना होती देख मैंने फिर पूछा समझे कि नहीं, इस पर उन्होंने असहमति स्वरूप अपना सिर हिला दिया। मैंने उनको बताया कि जो वाहन तेज चलाता है वह इसलिए बूढा नहीं होता है क्योंकि वह असमय ही ऊपर मतलब भगवान के घर चला जाता है। वे फिर भी नहीं समझे और पूछने लगे कि कैसे। मैंने बताया कि जब तेज चलेगा तो हादसा होगा और हादसा होगा तो जान जाने की आशंका रहती है। मेरी बात एक युवक को समझ में आ गई। उसने तत्काल अपने साथी को अपने हिसाब से समझाया तो दोनों ठहाका लगाना लगे। फिर तो एक युवक ने बिलकुल विशेषज्ञ की तरह मुझसे कहा, भाईसाहब सिगरेट पीने वालों के लिए भी ऐसा ही कहा जाता है ना। इसी दौरान दूसरा बोल उठा सिर्फ सिगरेट ही नहीं कोई नशा करने वाला कभी बूढ़ा नहीं होता। ऑटो अपनी गति से दौड़ा जा रहा था। नशे की बात पर इतनी गंभीर बातें करने वाले युवकों को गुटखा चबाते व पीक थूकते देख मैं सोच में इस कदर डूबा कि मेरा स्टैण्ड कब आया पता ही नहीं चला। उतरते वक्त मैंने गुटखे के लिए दोनों को टोका तो उलटे मेरे को ही नसीहत देने लगे, बोले भाईसाहब कैन्सर तो उनके भी होता है जो नशा नहीं करते। मैं उन नासमझों की बातों पर बिना कोई टिप्पणी किए किराये के दस रुपए थमा कर चुपचाप कार्यालय लौट आया।