टिप्पणी
सीमित संसाधनों में बेहतर व्यवस्था बनाने और आशातीत परिणाम हासिल करने के उदाहरण कम ही मिलते हैं। अमूनन देखा गया है कि पर्याप्त संसाधन होने के बावजूद न तो परिणाम आशानुकूल आते हैं और न ही व्यवस्था ठीक प्रकार से हो पाती है। रविवार को हुई शिक्षक पात्रता परीक्षा को भी इसी संदर्भ में देखा जा सकता है। बिलासपुर जिला मुख्यालय पर सभी तरह की सुविधाएं मौजूद हैं, लेकिन परीक्षार्थियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। प्रशासनिक स्तर पर की गई तमाम व्यवस्थाएं ऊंट के मुंह में जीरे के समान साबित हुई। दूरदराज इलाकों से आए परीक्षार्थी शनिवार शाम को ही बिलासपुर पहुंच गए थे, लेकिन ठहरने के लिए माकूल बंदोबस्त न होने के कारण वे इधर-उधर भटकते रहे। कइयों की रात तो आंखों में गुजरी। सर्दी में ठिठुरते परीक्षार्थियों पर न तो प्रशासनिक अधिकारियों का दिल पसीजा और न ही समाज सेवा का दंभ भरने वाले तथाकथित संगठन दिखाई दिए। वैसे भी बिलासपुर में परीक्षा को प्रशासनिक अधिकारियों ने गंभीरता से लिया ही नहीं वरना ऐसे हालात पैदा ही नहीं होते। राज्य के दूसरे जिलों में बिलासपुर के मुकाबले बेहतर व्यवस्था कैसे हो गई। जाहिर है वहां सुनियोजित तरीके से कार्ययोजना बनाकर काम किया गया, जिसके परिणाम भी सकारात्मक आए। बिलासपुर की प्रशासनिक व्यवस्था एवं तथाकथित स्वयंसेवी संगठनों से लाख गुना बेहतर तो पेण्ड्रा-बिल्हा जैसे छोटे-छोटे कस्बों का प्रशासन, वहां की स्वयंसेवी संस्थाएं हैं तथा वहां पुरुषार्थी लोग हैं, जिन्होंने पराये दर्द को अपना समझा।
हाल में बने नए जिले मुंगेली के लोगों ने भी परीक्षार्थियों की पीड़ा कम करने का प्रयास किया। सेवाभावी लोगों ने परीक्षार्थियों की अपने सामर्थ्य के अनुसार खुले दिल से मदद की। किसी ने भटकते परीक्षार्थी को सेंटर बताने का काम किया तो किसी ने सर्दी में ठिठुरतों के लिए रात को अलाव के लिए लकड़ियों की व्यवस्था की। इतना ही नहीं कइयों ने परीक्षार्थियों को अपने घर में भोजन कराया तो कुछ ऐसे भी जिन्होंने सामूहिक भोजन की व्यवस्था की।
भौतिकवादी युग की भागदौड़ एवं तनावभरी जिंदगी में जब रिश्ते नाते तार-तार हो रहे हैं। अपने ही अपनों के दुश्मन हो रहे हैं। दिलों से अपनापन गायब हो रहा है। लोग खुद तक सीमित हो गए हैं। ऐसे हालात में पेण्ड्रा, बिल्हा एवं मुंगेली के लोगों ने वाकई सराहनीय एवं अनुकरणीय काम कर दिखाया है। ऐसे समाजसेवी-सेवाभावी संगठन एवं लोग वाकई बधाई के पात्र हैं। इन सेवाभावी लोगों ने साबित कर दिखाया हैकि आदमी ठान ले तो मुश्किल कुछ भी नहीं, बस सोच बड़ी होनी चाहिए। निसंदेह इन लोगों ने समाजसेवा एवं इंसानियत की नई इबारत लिखी है, जो लम्बे समय तक आने वाली पीढ़ी को प्रेरणा देने का काम करेगी। बहरहाल, पिछली बार भी हुई शिक्षाकर्मी भर्ती परीक्षा में बिलासपुर पहुंचे परीक्षार्थियों को कुछ इसी की तरह परेशानी का सामना करना पड़ा लेकिन प्रशासन ने उससे सबक नहीं लिया। छोटे कस्बों के लोगों ने जिस तरह जिंदादिली दिखाते हुए पुरुषार्थ एवं परोपकार का काम किया उससे न केवल बिलासपुर के प्रशासनिक अधिकारियों बल्कि तथाकथित संगठनों को भी सीख लेनी चाहिए।
साभार : बिलासपुर पत्रिका के 09जनवरी 12 के अंक में प्रकाशित।