Wednesday, February 28, 2018

चम्मच/ चमचा पुराण-2

बस यूं ही
तीन दिन लैपटाप से दूर रहा, इस कारण लेखन का काम नहीं हो पाया। आज लैपटाप पर हूं तो लिखना तो बनता ही है। हां तो चार रोज पूर्व चम्मच/चमचा पुराण की बात हो रही थी। इसी दौरान इस विषय पर और लिखने की भी बात हुई। चमचा वैसे तो चम्मच की प्रजाति का ही है लेकिन यह उपमाओं में कब शामिल हुआ यह जांच का विषय है। गूगल विकिपीडिया के अनुसार चमचा भारतीय खाना बनाने में इस्तेमाल होनेवाला बर्तन है। इसमें एक लंबी छड़ के अंत में एक कटोरीनुमा भाग होता है, जो कि तरल खाद्य को प्रयोग में लाने के लिए होता है। यह धातु, लकड़ी आदि का होता है। विकिपीडिया में यह भी बताया गया है कि, बड़े चमचे को चमचा ही कहा जाता है। यह खाना बनाने के काम आता है जबकि छोटे चमचे को चम्मच कहा जाता है। यह खाना खाने के काम आता है। अब इस परिभाषा में एक बात देा तय हो गई कि चमचा दो प्रकार का होता है। छोटा और बडा। खैर, चमचा शब्द विशेष प्रजाति के आदमी से कैसे जुड़ा। यह शब्द प्रचलन में आया कैसा। खोजबीन शुरू की तो वरिष्ठ पत्रकार अजित वेडनेरकर के ब्लॉग में काफी मैटर मिला। लेख जानकारीपरक लगा लिहाजा बिना कांट छांट के मूल स्वरूप में साभार साझा कर रहा हूं।
(चमचा शब्द का इस्तेमाल हिन्दी में दो तरह से होता है। एक तो चापलूस, चाटूखोर के अर्थ में और दूसरा चम्मच के अर्थ में। भोजन परोसने या ग्रहण करने की क्रिया को सुविधाजनक बनानेवाला एक उपकरण जो कलछी से छोटा होता है, चम्मच कहलाता है। पतले मुंह वाले बर्तन में भरी वस्तु निकालने में इसका प्रयोग होता है। इसके अलावा भोज्य सामग्री को हाथ न लगाते हुए भोजन ग्रहण करने की सुविधा भी यह उपकरण देता है। एक पतली सींख के सिरे पर छोटी कटोरी जैसा आकार होता है जिसमें आमतौर पर द्रव या गाढ़ा पदार्थ भर कर उसे चुसका जाता है। चम्मच या चमचा शब्द इंडो-ईरानी भाषा परिवार का है। इसकी हिन्दी में आमद आमतौर पर तुर्की से मानी जाती है मगर लगता है यह मूल रूप से संस्कृत की पृष्ठभूमि से निकलकर अपभ्रंश से होते हुए हिन्दी में विकसित हुआ, अलबत्ता चम्मच में चापलूस या खुशामदी व्यक्ति का भाव मुस्लिमदौर की देन हो सकती है। चम्मच के तुर्की मूल का होने के ठोस प्रमाण भाषाशास्त्री भी नहीं देते हैं। विभिन्न कोश भी इसकी व्युत्पत्ति के बारे में अलग अलग जानकारी देते हैं मगर हिन्दी के कोश निश्चयात्मक तौर पर इसे संस्कृत मूल का नहीं बताते हुए फारसी या तुर्की का बताते हैं। इसके विपरीत कृ.पा. कुलकर्णी के मराठी व्युत्पत्तिकोश में इस शब्द का मूल संस्कृत ही बताया गया है। संभव है किन्हीं संदर्भो और च-म-च जैसे ध्वनियों की वजह से इसे तुर्की का माना गया हो क्योंकि तुर्की शब्दावली में इन ध्वनियों की अधिकता है। संसकृत धातु चम् से चम्मच की व्युत्पत्ति तार्किक लगती है।
संस्कृत धातु चम् से चम्मच की व्युत्पत्ति ज्यादा तार्किक लगती है, क्योंकि अन्य कोई आधार इतने मज़बूत हैं नहीं। चम् धातु में पीना, कण्ठ में उतारना, गटकना, एक सांस में चढ़ाना, चाटना, पी जाना, सोखना जैसे भाव हैं। चम् धातु में अदृष्य तौर पर पीने के पात्र का भाव भी छुपा है जिसकी वजह से इससे चम्मच की व्युत्पत्ति हुई। चम् धातु से बने कुछ अन्य शब्दों पर गौर करें जो हिन्दी में प्रचलित हैं। चमत्कार का अर्थ बतौर आश्चर्यजनक खेल तमाशा खूब होता है। इसे जादू भी कहते हैं और विस्मयकारी घटना भी। गौर करें कि जादू के तौर पर सर्वाधिक जो क्रिया मनुष्य को प्रभावित करती है वह है लुप्त होना, गायब होना। किसी वस्तु की निकट वर्तमान तक सिद्ध अस्तित्व का अचानक लोप होना। चम् धातु में निहित गटागट पीने, निगलने, कण्ठ में उतारने के भाव पर गौर करें। इसमें पदार्थ के अन्तर्धान होने का ही भाव है। चम् से ही बना है चमत्कार। बच्चों को दवा पीने के लिए यही कहा जाता है कि इसे फटाफट खत्म कर दो। जाहिर है, खत्म करने में पदाथज़् के लोप का ही भाव है। यही भाव चम् से बने चमत्कार ने ग्रहण किया। पूजाविधियों में शुद्धजल को ग्रहण करने की क्रिया आचमन कहलाती है, जिसका अर्थ भी पीना या ग्रहण करना है। गौर करें, यह इसी चम् धातु से बनी है। आजकल आचमन का अर्थ मदिरा के संदर्भ में भी होने लगा है।
चम् से बना संस्कृत का चमस् जिसका प्राचीन अर्थ हुआ सोमपान करने के काम आनेवाला चम्मच के आकार का एक चषक। याद रहे, प्राचीनकाल में श्रेष्ठिवर्ग में सार्वजनिक रूप में मद्यपान करने का एक ढंग यह भी था। आज के दौर की तरह सबके हाथों में मद्यपात्र न होकर एक बड़े पात्र में मदिरा होती थी और एक निर्धारित मात्रा या मानक वाले चम्मच से उसे सभी लोग ग्रहण करते थे। प्राचीन यूनान और ग्रीस में भी यह तरीका कुलीन घरानों में प्रचलित था। संभव है यह तरीका भारत में ग्रीक या यूनानियों के जरिये आया हो क्योंकि दो हजार साल पहले तक गांधार क्षेत्र में यूनानी उपनिवेश कायम थे। चमस् का अगला रूप हुआ चमस्य। प्राकृत में यह हुआ चमस्स। संभव है चमस्स से ही किन्हीं अपभ्रंशों में यह चमच, चम्मच या चमचा का रूप ले चुका हो, मगर अभी स्पष्ट नहीं है। फारसी में चमस् का रूप चम्च: हुआ और फिर हिन्दी में यह चम्मच या चमचा के रूप में दाखिल हुआ। भारत में इतिहास को दर्ज करने की वैसी परम्परा नहीं रही जैसी पश्चिमी सभ्यता में रही है इसलिए सभ्यता, संस्कृति, भाषा के क्षेत्र में कई बार अनुमानों से काम चलाना पड़ता है क्योंकि बीच की कडय़िां गायब होती हैं। चमस् का फारसी रूप चम्च: हुआ। पर यह पता नहीं चलता कि चम्मचनुमा एक उपकरण जब भारत में मौजूद था तब उसे चमचा बनने में फारसी संस्कार की ज़रूरत क्यों पड़ी। जाहिर है चमस् का लोकभाषा में भी कुछ न कुछ रूप रहा होगा, मगर वह दर्ज नहीं हो सका। फिर भी बरास्ता फारसी चम्च: की आमद हिन्दी में हुई यह मान लेने से भी हमारे निष्कर्षों पर कोई अंतर नहीं पड़ता है।
चम्मच शब्द का प्रयोग खुशामदी के अर्थ में कब कैसे शुरू हुआ यह कहना कुछ कठिन है, पर अनुमान लगाया जा सकता है। चाटुकार शब्द का प्रयोग संस्कृत से लेकर अपभ्रंश में भी होता आया है। संस्कृत शब्द चटु: में कृपा तथा झूठी प्रशंसा का भाव है। चटु: बना है चट् धातु से। है। मूलत: यह ध्वनि-अनुकरण पर बनी धातु है। टहनी, लकड़ी के चटकने, फटने की ध्वनि के आधार पर प्राचीनकाल में चट् धातु का जन्म हुआ होगा। कालांतर में इसमें तोडऩा, छिटकना, हटाना, मिटाना आदि अर्थ भी स्थापित हुए। हिन्दी में सब कुछ खा-पीकर साफ करने के अर्थ में भी चट् या चट्ट जैसा शब्द बना और चट् कर जाना मुहावरा भी सामने आया। समझा जा सकता है कि तड़कने, टूटने के बाद वस्तु अपने मूल स्वरूप में नहीं रहती। इसी लिए इससे बने शब्दों में चाटना, साफ कर जाना जैसे भाव आए। इसमें मूल स्वरूप के लुप्त होने का ही अभिप्राय है। इसी मूल से उपजा है चाटु: या चाटु शब्द जिसका अर्थविस्तार हुआ और इसमें प्रिय तथा मधुर वचन, ठकुरसुहाती, मीठी बातें, लल्लो-चप्पो जैसे भाव शामिल हुए। समझा जा सकता है कि किसी को खिलाने-पिलाने की क्रिया के तौर पर जब चट् धातु से चटाने, चाटने जैसे शब्द बने वही भाव प्रक्रिया प्राचीनकाल में प्राकृत-संस्कृत में भी रही होगी। किसी को जबरदस्ती नहीं खिलाया जा सकता। जाहिर है इसके लिए प्रेमप्रदर्शन या मीठा बोलना ज़रूरी है। जाहिर है चाटु: शब्द में दिखावे की बोली का भाव स्थिर हुआ। चाटु: में कार प्रत्यय लगने से बना चाटुकार जिसका अर्थ हुआ खुशामदी, चापलूस अथवा झूठी प्रशंसा करनेवाला।
चट् धातु से चाटुकार जैसी अर्थवत्ता वाला शब्द बनने जैसी ही यात्रा चमस से चम्च: से गुजरते हुए चम्मच के दूसरे अर्थ यानी चमचा में हुई। चम्च: से बने चम्मच ने पहले चमचा का रूप लिया और फिर इसमें फारसी का मशहूर गीरी प्रत्यय लगने से बना चमचागीरी यानी चटाना, खिलाना, गले से उतारना। भाव हुआ खुशामद करना, चापलूसी करना, मीठी बोली बोलना या आगे-पीछे डोलना। एक बच्चे को कुछ खिलाने के लिए जिस तरह से मां उसके आगे पीछे डोलती है, मनुहार करती है, ठीक वही भाव अगर वरिष्ठ व्यक्ति के लिए उसके कनिष्ठ करें तो इसे भी चम्च:गीरी कहा गया अर्थात खुशामद करना। आज लोहे-पीतल-स्टील के चम्मचों की बजाय हाड़-मांस के चमचों की चर्चा ज्यादा होती है। चम्मच बनाने वाली किसी बहुराष्ट्रीय या राष्ट्रीय कम्पनी का नाम आप नहीं बता सकते। पर असली चमचे समाज में अपने आप बन जाते हैं। बिना ब्रांडवाले, खाने-खिलाने की क्रिया से जुड़े चम्मच हमेशा टिकाऊ होते हैं इसी तरह चमचे भी हमेशा टिकाऊ होते हैं, पर खुद के लिए। आज जिसे खिलाते हैं, कल वो उल्टी करता नजऱ आता है।)
क्रमश:

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