दो सौ ज्यादा शहीदों की समाधि है दर्शनीय स्थल
श्रीगंगानगर. यह मंदिर शहादत की कथा सुनाता है। यह मंदिर शौर्य के किस्से बयां करता हैं। यह मंदिर शहीद सैनिकों की शौर्य गाथा का सजीव प्रतीक है। यहां कोई एक-दो नहीं बल्कि दो सौ से ऊपर शहीदों की सामूहिक अन्तेष्टि की गई थी। सन 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान फाजिल्का सेक्टर में सर्वाधिक भयानक लड़ाई हुई थी। इसमें टैंक, तोप व बंदूकों के माध्यम से भारत-पाक सैनिकों के बीच मुकाबला हुआ था। बताते हैं कि तब पाक सेना ने फाजिल्का शहर को हथियाने का निश्चय किया हुआ था। इसके लिए पाक सेना भारतीय क्षेत्र में आगे भी बढ़ गई थी लेकिन भारतीय सेना की जाबांज शूरवीरों ने न केवल पाकिस्तानी सैनिकों को पीछे धकेला अपितु स्वयं एक अभेद्य चट्टान की भांति डटे रहकर दुश्मन के दांत खट्टे किए थे। इस आमने-सामने की लड़ाई में इस जगह पर 225 वीर सैनिक शहीद हुए थे। इनमें चार जाट रेजीमेंट, आसाम रेजीमेंट, राजपूत रेजीमेंट, बीएसएफ, होमगार्ड के जवान शामिल थे। इस दौरान 450 सैनिक गंभीर रूप से घायल हुए इनमें से कुछ सैनिक स्थायी रूप से अपंग हो गए।
17 दिसंबर 1971 को युद्ध विराम के बाद फाजिल्का सेक्टर में प्राणोत्सर्ग करने वाले बहादुर सैनिकों का प्रमुख नागरिकों और ग्रामीणों ने सामूहिक रूप से अंतिम संस्कार किया था। सामूहिक अंतिम संस्कार के लिए 90 फीट लंबी तथा 55 फीट चौड़ी चिता तैयार की गई थी। सर्वधर्म सभा के माध्यम से दिवंगत सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। मुख्य समाधि के गर्भ गृह में इन शहीदों की पावन अस्थियों के अंशों का समावेश किया किया। फाजिल्का क्षेत्र के लोगों ने इन शहीद सैनिकों को फाजिल्का के रक्षक के रूप में मान्यता दी है। शहीदों के संस्कार के बाद अल्प समय में ही एक स्मारक का निर्माण किया है जो अब बेहद बड़ा स्वरूप ले चुका है। भारत-पाक सीमा पर सादगी पोस्ट पर पर रिट्रीट सेरेमनी देखने जाने वाले इस शौर्य मंदिर को देखने जरूर आते हैं तथा वीर सैनिकों की शहादत को याद करके शीश नवाते हैं।
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पत्रिका डॉट कॉम पर 28 फरवरी 18 को प्रकाशित
श्रीगंगानगर. यह मंदिर शहादत की कथा सुनाता है। यह मंदिर शौर्य के किस्से बयां करता हैं। यह मंदिर शहीद सैनिकों की शौर्य गाथा का सजीव प्रतीक है। यहां कोई एक-दो नहीं बल्कि दो सौ से ऊपर शहीदों की सामूहिक अन्तेष्टि की गई थी। सन 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान फाजिल्का सेक्टर में सर्वाधिक भयानक लड़ाई हुई थी। इसमें टैंक, तोप व बंदूकों के माध्यम से भारत-पाक सैनिकों के बीच मुकाबला हुआ था। बताते हैं कि तब पाक सेना ने फाजिल्का शहर को हथियाने का निश्चय किया हुआ था। इसके लिए पाक सेना भारतीय क्षेत्र में आगे भी बढ़ गई थी लेकिन भारतीय सेना की जाबांज शूरवीरों ने न केवल पाकिस्तानी सैनिकों को पीछे धकेला अपितु स्वयं एक अभेद्य चट्टान की भांति डटे रहकर दुश्मन के दांत खट्टे किए थे। इस आमने-सामने की लड़ाई में इस जगह पर 225 वीर सैनिक शहीद हुए थे। इनमें चार जाट रेजीमेंट, आसाम रेजीमेंट, राजपूत रेजीमेंट, बीएसएफ, होमगार्ड के जवान शामिल थे। इस दौरान 450 सैनिक गंभीर रूप से घायल हुए इनमें से कुछ सैनिक स्थायी रूप से अपंग हो गए।
17 दिसंबर 1971 को युद्ध विराम के बाद फाजिल्का सेक्टर में प्राणोत्सर्ग करने वाले बहादुर सैनिकों का प्रमुख नागरिकों और ग्रामीणों ने सामूहिक रूप से अंतिम संस्कार किया था। सामूहिक अंतिम संस्कार के लिए 90 फीट लंबी तथा 55 फीट चौड़ी चिता तैयार की गई थी। सर्वधर्म सभा के माध्यम से दिवंगत सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। मुख्य समाधि के गर्भ गृह में इन शहीदों की पावन अस्थियों के अंशों का समावेश किया किया। फाजिल्का क्षेत्र के लोगों ने इन शहीद सैनिकों को फाजिल्का के रक्षक के रूप में मान्यता दी है। शहीदों के संस्कार के बाद अल्प समय में ही एक स्मारक का निर्माण किया है जो अब बेहद बड़ा स्वरूप ले चुका है। भारत-पाक सीमा पर सादगी पोस्ट पर पर रिट्रीट सेरेमनी देखने जाने वाले इस शौर्य मंदिर को देखने जरूर आते हैं तथा वीर सैनिकों की शहादत को याद करके शीश नवाते हैं।
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पत्रिका डॉट कॉम पर 28 फरवरी 18 को प्रकाशित
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