Wednesday, December 18, 2019

सवा दो सौ शहीदों का हुआ था एक साथ अंतिम संस्कार

श्रीगंगानगर. भारत-पाक के बीच 1971 के युद्ध में भारतीय सेना की शानदार जीत के उपलक्ष्य हर साल 16 दिसम्बर को विजय दिवस मनाया जाता है लेकिन ऐतिहासिक जीत के पीछे सैकड़ों जवानों की शहादत भी छिपी है। राजस्थान की सीमा से नब्बे किमी दूर पंजाब के फाजिल्का सेक्टर में भारत-पाक सेना के मध्य जबरदस्त टक्कर हुई थी। भारतीय जवानों ने पाक के फाजिल्का पर कब्जा करने के मंसूबों पर पानी फेर दिया था। इस युद्ध मेंं भारतीय सेना के 225 जवान शहीद हुए थे। आसफवाला व फाजिल्का के लोगों ने सामूहिक रूप से शहीदों के शवों को एकत्रित किया था।इन सभी 225 शहीदों का अंतिम संस्कार सामूहिक रूप से तैयार की गई 90 फीट लंबी तथा 55 चौड़ी चिता पर किया गया था। इन सभी शहीदों को फाजिल्का के रक्षक के रूप में मान्यता दी गई। यहां पर साढ़े चार सौ के करीब जवान घायल हो गए हुए थे। यहां शहीदों की याद में स्मारक बनाया गया। वर्तमान में आसफवाला के युद्ध स्मारक की गिनती पंजाब के सर्वश्रेष्ठ युद्ध स्मारकों में होती है। यहां हर साल विजय दिवस के उपलक्ष्य में भारतीय सेना व आम लोगों के सहयोग से मेला लगता है।
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विजय दिवस के उपलक्ष्य में आज 16 दिसंबर 19 को राजस्थान पत्रिका के राज्य के तमाम संस्करणों में प्रकाशित 

पहले पुराने काम तो हो जाएं

टिप्पणी
राज्य सरकार के निर्देश पर बुधवार को श्रीगंगानगर के नवीन मास्टर प्लान 2017-2035 का प्रारूप प्रकाशन कर दिया गया। अब शहरवासियों को इस पर आपत्तियां और सुझाव देने होंगे। इसके लिए एक माह का समय दिया गया है। इसके बाद यह मास्टर प्लान लागू कर दिया जाएगा। नए मास्टर प्लान में यातायात व्यवस्था को दुरुस्त करने, ट्रक टर्मिनल बनाने और रीको में बड़ा पार्क बनाने का निर्णय किया गया है। साथ ही श्रीगंगानगर से लगते 52 गांवों को यूआइटी में शामिल किया गया है।
सुनने में यह बातें अच्छी लगती हैं लेकिन यह तय सीमा में धरातल पर उतर पाएंगी इसमें संशय है। यह इसलिए क्योंकि 2001-2023 के मास्टर प्लान जो योजनाएं और काम शामिल थे उन पर 18 साल बाद भी विचार नहीं हुआ। पुराने मास्टर प्लान में भी श्रीगंगानगर शहर से लगते 29 राजस्व गांवों को शामिल किया गया था। उन गांवों की तस्वीर आज तक नहीं बदली। विडम्बना यह है कि यूआइटी के क्षेत्राधिकार में आने के बाद संबंधित गांवों में हाउस टैक्स लगा दिया जाता है। बिजली बिलों में उपकर जोड़ दिया जाता है। बिजली व पानी सभी का बिल शहरी दर से वसूला जाता है।
सबसे बड़ी बात ग्राम पंचायत जमीन के पट्टे नि:शुल्क जारी करती है लेकिन यूआइटी के क्षेत्राधिकार में आने के बाद पट्टे बनाने का सशुल्क होता है। कुछ इसी तरह का दंश पुराने मास्टर प्लान में आए गांवों के लोग भोग रहे हैं। वहां न तो सडक़ें बनी हैं और न ही रोडलाइट लगी हैं। उन गांवों के लोगों की पीड़ा भी यही है कि जब सुविधाएं ही नहीं तो टैक्स किस बात का। एेसे शहरीकरण से तो उनका गांव ही अच्छा है। गांवों वालों का तर्क यह भी है कि गांवों को शहर से जोडऩा ही है तो क्यों न नगर परिषद का दायरा बढ़ाया जाए। खैर, मास्टर प्लान की योजनाएं धरातल पर उतरें तभी उसका फायदा है वरना यह किसी सब्जबाग से कम नहीं हैं। जिला प्रशासन ने भले ही नए मास्टर प्लान के लिए आपत्तियां व सुझाव मांगें हो लेकिन जब हाथ में है पहले वहां तो काम हों। नए की चिंता करनी भी चाहिए लेकिन उसकी सार्थकता तभी है जब पुराने मास्टर प्लान से संबंधित कोई योजनाएं अधूरी नहीं रहे। बेपटरी और बदहाल यातायात व्यवस्था को व्यवस्थित करने की बात 18 साल पहले भी की गई थी। इन 18 साल में हालात बद से बदतर होते गए। कई अधिकारी आए और गए लेकिन यह काम पटरी पर नहीं आया। नए मास्टर प्लान में तो आवश्यकता के हिसाब से फुटओवर ब्रिज व अंडर ब्रिज बनाने का जिक्र भी है। इतना ही नहीं बस स्टैंड को सूरतगढ़ रोड पर ले जाने का काम भी नहीं हो पाया। बहरहाल, पुराने अनुभव इतने कड़वे हैं कि नए मास्टर प्लान की योजनाओं के लिए निर्धारित की गई समय सीमा में क्रियान्वयन होने पर सहसा यकीन होता भी नहीं। कार्ययोजना बनाने का फायदा भी तभी है जब उसका क्रियान्वयन तय समय सीमा में हो। उम्मीद की जानी चाहिए पहले पुराने मास्टर प्लान के लंबित कामों पर प्राथमिकता से विचार हो। अन्यथा यही लंबित काम बार-बार नए स्वरूप में नए मास्टर प्लान में जगह पाते रहेंगे।

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राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर संस्करण में 13 दिसंबर 19 के अंक में प्रकाशित

कथनी और करनी!



टिप्पणी
नगर परिषद में सोमवार को नवनिर्वाचित सभापति व उपसभापति ने कार्यभार ग्रहण किया। इस दौरान एक सम्मान समारोह भी रखा गया था। इसी समारोह में नवनिर्वाचित सभापति व उपसभापति ने साफ-सफाई व स्वच्छता रखने का संकल्प लिया। साथ ही विधायक राजकुमार गौड़ व नवनिर्वाचित सभापति सहित सभी वक्ताओं ने शहर की सुंदरता को बढ़ाने तथा साफ-सफाई पर विशेष ध्यान देने की बात कही। खैर, सम्मान समारोह में जब सफाई व स्वच्छता की बातें की जा रही थी, संकल्प लिए जा रहे थे, ठीक उसी वक्त नगर परिषद प्रांगण सहित शहर के कमोबेश सभी चौक चौराहे बदरंग हो चले थे। हर जगह पोस्टर व होर्डिंग्स ही नजर आ रहे थे। शहर विधायक को जन्मदिन की बधाई तथा सभापति को निर्वाचित होने पर बधाई दी गई थी। शहर में इस तरह चौक चौराहों को बदरंग करने की परिपाटी बन गई है। कोई भी आयोजन हो, हर कोई मनमर्जी से पोस्टर टांग देता है। इस काम में नगर परिषद व नगर विकास न्यास व उनके नुमाइंदे भी समान रूप से दोषी हैं, क्योंकि इनकी तरफ से शहर के सौन्दर्य को बिगाडऩे वालों के खिलाफ कभी कार्रवाई नहीं की जाती। वैसे भी जनप्रतिनिधियों की ओर से साफ-सफाई व स्वच्छता की दुहाई देना तथा चौक चौराहों की बदरंगता की तरफ आंख मूंद लेना कथनी और करनी के भेद को साफ-साफ उजागर करता है।
एक खास बात और जो सम्मान समारोह में नजर आई। लगभग सभी वक्ताओं ने शहर की बदहाली के लिए नगर परिषद के प्रबंधन की बजाय राज्य की भाजपा सरकार की कथित उपेक्षा को दोषी माना। वक्ताओं की बात पर कुछ देर के लिए यकीन कर भी लिया जाए लेकिन शहर की बदरंगता को दूर करने में भी क्या भाजपा सरकार की उपेक्षा आड़े आई? चौक चौराहों पर टंगे पोस्टर व होर्डिंग्स हटाने के लिए भी क्या राज्य सरकार ने मना किया? दरअसल, इस तरह की पोलपट्टी, इस तरह की अव्यवस्था, इस तरह की मनमर्जी स्थानीय स्तर पर ही होती है। और इन सबके के लिए स्थानीय जनप्रतिनिधि व अधिकारी ही जिम्मेदार हैं।
बहरहाल, विधायक व नवनिर्वाचित सभापित दोनों से यह अपेक्षा की जाती है कि वो सबसे पहले चौक चौराहों का सौन्दर्य बहाल करवाएं। इस काम के लिए किसी बजट की आवश्यकता नहीं होती। इस काम के लिए राज्य सरकार से किसी सहयोग की भी आवश्यकता नहीं होती। जरूरत है तो केवल जनप्रतिनिधियों को इच्छा शक्ति दिखलाने की। अगर जनप्रतिनिधियों की ही इस काम में कहीं न कहीं हां तो फिर तो किसी से भी उम्मीद करना भी बेमानी है। देखने की बात है कि विधायक व सभापति पुरानी परिपाटी को तोड़ते हैं या वे भी उसी का हिस्सा बने रहेंगे 
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 03 दिसंबर के अंक में प्रकाशित