टिप्पणी
राज्य सरकार के निर्देश पर बुधवार को श्रीगंगानगर के नवीन मास्टर प्लान 2017-2035 का प्रारूप प्रकाशन कर दिया गया। अब शहरवासियों को इस पर आपत्तियां और सुझाव देने होंगे। इसके लिए एक माह का समय दिया गया है। इसके बाद यह मास्टर प्लान लागू कर दिया जाएगा। नए मास्टर प्लान में यातायात व्यवस्था को दुरुस्त करने, ट्रक टर्मिनल बनाने और रीको में बड़ा पार्क बनाने का निर्णय किया गया है। साथ ही श्रीगंगानगर से लगते 52 गांवों को यूआइटी में शामिल किया गया है।
सुनने में यह बातें अच्छी लगती हैं लेकिन यह तय सीमा में धरातल पर उतर पाएंगी इसमें संशय है। यह इसलिए क्योंकि 2001-2023 के मास्टर प्लान जो योजनाएं और काम शामिल थे उन पर 18 साल बाद भी विचार नहीं हुआ। पुराने मास्टर प्लान में भी श्रीगंगानगर शहर से लगते 29 राजस्व गांवों को शामिल किया गया था। उन गांवों की तस्वीर आज तक नहीं बदली। विडम्बना यह है कि यूआइटी के क्षेत्राधिकार में आने के बाद संबंधित गांवों में हाउस टैक्स लगा दिया जाता है। बिजली बिलों में उपकर जोड़ दिया जाता है। बिजली व पानी सभी का बिल शहरी दर से वसूला जाता है।
सबसे बड़ी बात ग्राम पंचायत जमीन के पट्टे नि:शुल्क जारी करती है लेकिन यूआइटी के क्षेत्राधिकार में आने के बाद पट्टे बनाने का सशुल्क होता है। कुछ इसी तरह का दंश पुराने मास्टर प्लान में आए गांवों के लोग भोग रहे हैं। वहां न तो सडक़ें बनी हैं और न ही रोडलाइट लगी हैं। उन गांवों के लोगों की पीड़ा भी यही है कि जब सुविधाएं ही नहीं तो टैक्स किस बात का। एेसे शहरीकरण से तो उनका गांव ही अच्छा है। गांवों वालों का तर्क यह भी है कि गांवों को शहर से जोडऩा ही है तो क्यों न नगर परिषद का दायरा बढ़ाया जाए। खैर, मास्टर प्लान की योजनाएं धरातल पर उतरें तभी उसका फायदा है वरना यह किसी सब्जबाग से कम नहीं हैं। जिला प्रशासन ने भले ही नए मास्टर प्लान के लिए आपत्तियां व सुझाव मांगें हो लेकिन जब हाथ में है पहले वहां तो काम हों। नए की चिंता करनी भी चाहिए लेकिन उसकी सार्थकता तभी है जब पुराने मास्टर प्लान से संबंधित कोई योजनाएं अधूरी नहीं रहे। बेपटरी और बदहाल यातायात व्यवस्था को व्यवस्थित करने की बात 18 साल पहले भी की गई थी। इन 18 साल में हालात बद से बदतर होते गए। कई अधिकारी आए और गए लेकिन यह काम पटरी पर नहीं आया। नए मास्टर प्लान में तो आवश्यकता के हिसाब से फुटओवर ब्रिज व अंडर ब्रिज बनाने का जिक्र भी है। इतना ही नहीं बस स्टैंड को सूरतगढ़ रोड पर ले जाने का काम भी नहीं हो पाया। बहरहाल, पुराने अनुभव इतने कड़वे हैं कि नए मास्टर प्लान की योजनाओं के लिए निर्धारित की गई समय सीमा में क्रियान्वयन होने पर सहसा यकीन होता भी नहीं। कार्ययोजना बनाने का फायदा भी तभी है जब उसका क्रियान्वयन तय समय सीमा में हो। उम्मीद की जानी चाहिए पहले पुराने मास्टर प्लान के लंबित कामों पर प्राथमिकता से विचार हो। अन्यथा यही लंबित काम बार-बार नए स्वरूप में नए मास्टर प्लान में जगह पाते रहेंगे।
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राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर संस्करण में 13 दिसंबर 19 के अंक में प्रकाशित।
राज्य सरकार के निर्देश पर बुधवार को श्रीगंगानगर के नवीन मास्टर प्लान 2017-2035 का प्रारूप प्रकाशन कर दिया गया। अब शहरवासियों को इस पर आपत्तियां और सुझाव देने होंगे। इसके लिए एक माह का समय दिया गया है। इसके बाद यह मास्टर प्लान लागू कर दिया जाएगा। नए मास्टर प्लान में यातायात व्यवस्था को दुरुस्त करने, ट्रक टर्मिनल बनाने और रीको में बड़ा पार्क बनाने का निर्णय किया गया है। साथ ही श्रीगंगानगर से लगते 52 गांवों को यूआइटी में शामिल किया गया है।
सुनने में यह बातें अच्छी लगती हैं लेकिन यह तय सीमा में धरातल पर उतर पाएंगी इसमें संशय है। यह इसलिए क्योंकि 2001-2023 के मास्टर प्लान जो योजनाएं और काम शामिल थे उन पर 18 साल बाद भी विचार नहीं हुआ। पुराने मास्टर प्लान में भी श्रीगंगानगर शहर से लगते 29 राजस्व गांवों को शामिल किया गया था। उन गांवों की तस्वीर आज तक नहीं बदली। विडम्बना यह है कि यूआइटी के क्षेत्राधिकार में आने के बाद संबंधित गांवों में हाउस टैक्स लगा दिया जाता है। बिजली बिलों में उपकर जोड़ दिया जाता है। बिजली व पानी सभी का बिल शहरी दर से वसूला जाता है।
सबसे बड़ी बात ग्राम पंचायत जमीन के पट्टे नि:शुल्क जारी करती है लेकिन यूआइटी के क्षेत्राधिकार में आने के बाद पट्टे बनाने का सशुल्क होता है। कुछ इसी तरह का दंश पुराने मास्टर प्लान में आए गांवों के लोग भोग रहे हैं। वहां न तो सडक़ें बनी हैं और न ही रोडलाइट लगी हैं। उन गांवों के लोगों की पीड़ा भी यही है कि जब सुविधाएं ही नहीं तो टैक्स किस बात का। एेसे शहरीकरण से तो उनका गांव ही अच्छा है। गांवों वालों का तर्क यह भी है कि गांवों को शहर से जोडऩा ही है तो क्यों न नगर परिषद का दायरा बढ़ाया जाए। खैर, मास्टर प्लान की योजनाएं धरातल पर उतरें तभी उसका फायदा है वरना यह किसी सब्जबाग से कम नहीं हैं। जिला प्रशासन ने भले ही नए मास्टर प्लान के लिए आपत्तियां व सुझाव मांगें हो लेकिन जब हाथ में है पहले वहां तो काम हों। नए की चिंता करनी भी चाहिए लेकिन उसकी सार्थकता तभी है जब पुराने मास्टर प्लान से संबंधित कोई योजनाएं अधूरी नहीं रहे। बेपटरी और बदहाल यातायात व्यवस्था को व्यवस्थित करने की बात 18 साल पहले भी की गई थी। इन 18 साल में हालात बद से बदतर होते गए। कई अधिकारी आए और गए लेकिन यह काम पटरी पर नहीं आया। नए मास्टर प्लान में तो आवश्यकता के हिसाब से फुटओवर ब्रिज व अंडर ब्रिज बनाने का जिक्र भी है। इतना ही नहीं बस स्टैंड को सूरतगढ़ रोड पर ले जाने का काम भी नहीं हो पाया। बहरहाल, पुराने अनुभव इतने कड़वे हैं कि नए मास्टर प्लान की योजनाओं के लिए निर्धारित की गई समय सीमा में क्रियान्वयन होने पर सहसा यकीन होता भी नहीं। कार्ययोजना बनाने का फायदा भी तभी है जब उसका क्रियान्वयन तय समय सीमा में हो। उम्मीद की जानी चाहिए पहले पुराने मास्टर प्लान के लंबित कामों पर प्राथमिकता से विचार हो। अन्यथा यही लंबित काम बार-बार नए स्वरूप में नए मास्टर प्लान में जगह पाते रहेंगे।
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राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर संस्करण में 13 दिसंबर 19 के अंक में प्रकाशित।
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