शहंशाहे गजल के नाम से विख्यात मेहदी हसन की हालत नाजुक है और वे आईसीयू में भर्ती है। हसन पिछले 12 साल से फेफड़ों में संक्रमण से जूझ रहे हैं लेकिन उनके समाचार कभी-कभार ही आते हैं। करीब साढ़े तीन साल पहले जुलाई 2008 में भी उनकी तबीयत बिगड़ने की खबर समाचार-पत्रों की सुर्खियां बनी थी। हसन इलाज के लिए भारत आना चाहते हैं, लेकिन सफर में उनका स्वास्थ्य बिगड़ने का खतरा है, लिहाजा, चिकित्सकों ने उनको कहीं आने-जाने पर रोक लगा रखी है। पिछले ढाई साल से तो हसन ट्यूब की जरिये ही खा पी रहे हैं। एक माह से तो वे बोल भी नहीं पा रहे हैं।
दरअसल, हसन के भारत आने का मकसद अकेला इलाज ही नहीं है बल्कि मातृभूमि का प्रेम भी है। जैसा कि अक्सर होता है व्यक्ति को जीवन के अंतिम पड़ाव में मातृभूमि की याद जरूर आती है। यह मातृभूमि से लगाव का ही परिणाम है कि हसन विभाजन के बाद भारत के बाद पाकिस्तान चले गए लेकिन वे अपनी जड़ों से दूर नहीं हुए। वे करीब तीन-चार बार अपने पुश्तैनी गांव आए। राजस्थान के झुंझुनूं जिले के लूणा गांव में 18 जुलाई 1927 को जन्मे मेहदी हसन के परिवार को गाने-बजाने का शौक विरासत में मिला। झुंझुनूं जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हसन का गांव आजादी से पहले मंडावा ठिकाने के अधीन था। विभाजन के दौरान हसन के परिजन एवं रिश्तेदार पाकिस्तान चले गए। उनके साथ हसन ने भी भारत छोड़ दिया। दूसरे देश जाने के बाद भी हसन अपनों से दूर नहीं हुए।
लूणा में हसन के परिवार का अब कोई नहीं रहता है। पुश्तैनी मकान का भी कोई अता-पता नहीं है। गांव के स्कूल के बगल में बनी हसन के परिजनों की दो मजार उनकी यादगार के रूप में जरूर मौजूद है। इन मजारों के साथ हसन की याद, इसलिए जुड़ी है क्योंकि इनका निर्माण स्वयं हसन ने ही करवाया था। गांव में मजारों की सार-संभाल करने वाला अब कोई नहीं है। रखरखाव के अभाव में इनके चारों तरफ घास उग आया है। गांव तक पक्की सड़क बनने का श्रेय भी हसन को ही जाता है। वे जब लूणा आए तो उनके सम्मान में गांव तक पक्की सड़क बनी थी। यह भी विडम्बना है कि लूणा के लोग इस शख्सियत पर फक्र तो करते हैं, लेकिन हसन के बारे में उनको ज्यादा जानकारी नहीं है। एक-दो बुजुर्गों की बात छोड़ दें तो वर्तमान में हसन के बारे में विस्तार से बताने वाला भी लूणा में कोई नहीं है।
बहरहाल, मेहदी हसन की बीमारी के साथ एक संयोग भी जुड़ा है। हसन के जब-जब भी बीमार हुए तब-तब उनके कद्रदानों ने उनकी सलामती के लिए दुआ की। उनके हजारों-लाखों दीवाने आज भी उनके स्वस्थ होने की कामना कर रहे हैं। हसन की गजलों का मुरीद हर कोई है। तभी तो उनके स्वस्थ जीवन की कामना के लिए एक तरफ प्रार्थनाओं का दौर है तो दुआ मांगने वालों की संख्या भी लाखों में है। छोटे से गांव से निकलकर इस फनकार ने प्रसिद्धि के उस फलक को छुआ जिस पर मादरे वतन के साथ जन्मभूमि के लोगों को गर्व की अनुभूति होती है।
दरअसल, हसन के भारत आने का मकसद अकेला इलाज ही नहीं है बल्कि मातृभूमि का प्रेम भी है। जैसा कि अक्सर होता है व्यक्ति को जीवन के अंतिम पड़ाव में मातृभूमि की याद जरूर आती है। यह मातृभूमि से लगाव का ही परिणाम है कि हसन विभाजन के बाद भारत के बाद पाकिस्तान चले गए लेकिन वे अपनी जड़ों से दूर नहीं हुए। वे करीब तीन-चार बार अपने पुश्तैनी गांव आए। राजस्थान के झुंझुनूं जिले के लूणा गांव में 18 जुलाई 1927 को जन्मे मेहदी हसन के परिवार को गाने-बजाने का शौक विरासत में मिला। झुंझुनूं जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हसन का गांव आजादी से पहले मंडावा ठिकाने के अधीन था। विभाजन के दौरान हसन के परिजन एवं रिश्तेदार पाकिस्तान चले गए। उनके साथ हसन ने भी भारत छोड़ दिया। दूसरे देश जाने के बाद भी हसन अपनों से दूर नहीं हुए।
लूणा में हसन के परिवार का अब कोई नहीं रहता है। पुश्तैनी मकान का भी कोई अता-पता नहीं है। गांव के स्कूल के बगल में बनी हसन के परिजनों की दो मजार उनकी यादगार के रूप में जरूर मौजूद है। इन मजारों के साथ हसन की याद, इसलिए जुड़ी है क्योंकि इनका निर्माण स्वयं हसन ने ही करवाया था। गांव में मजारों की सार-संभाल करने वाला अब कोई नहीं है। रखरखाव के अभाव में इनके चारों तरफ घास उग आया है। गांव तक पक्की सड़क बनने का श्रेय भी हसन को ही जाता है। वे जब लूणा आए तो उनके सम्मान में गांव तक पक्की सड़क बनी थी। यह भी विडम्बना है कि लूणा के लोग इस शख्सियत पर फक्र तो करते हैं, लेकिन हसन के बारे में उनको ज्यादा जानकारी नहीं है। एक-दो बुजुर्गों की बात छोड़ दें तो वर्तमान में हसन के बारे में विस्तार से बताने वाला भी लूणा में कोई नहीं है।
बहरहाल, मेहदी हसन की बीमारी के साथ एक संयोग भी जुड़ा है। हसन के जब-जब भी बीमार हुए तब-तब उनके कद्रदानों ने उनकी सलामती के लिए दुआ की। उनके हजारों-लाखों दीवाने आज भी उनके स्वस्थ होने की कामना कर रहे हैं। हसन की गजलों का मुरीद हर कोई है। तभी तो उनके स्वस्थ जीवन की कामना के लिए एक तरफ प्रार्थनाओं का दौर है तो दुआ मांगने वालों की संख्या भी लाखों में है। छोटे से गांव से निकलकर इस फनकार ने प्रसिद्धि के उस फलक को छुआ जिस पर मादरे वतन के साथ जन्मभूमि के लोगों को गर्व की अनुभूति होती है।