Wednesday, December 18, 2019

कथनी और करनी!



टिप्पणी
नगर परिषद में सोमवार को नवनिर्वाचित सभापति व उपसभापति ने कार्यभार ग्रहण किया। इस दौरान एक सम्मान समारोह भी रखा गया था। इसी समारोह में नवनिर्वाचित सभापति व उपसभापति ने साफ-सफाई व स्वच्छता रखने का संकल्प लिया। साथ ही विधायक राजकुमार गौड़ व नवनिर्वाचित सभापति सहित सभी वक्ताओं ने शहर की सुंदरता को बढ़ाने तथा साफ-सफाई पर विशेष ध्यान देने की बात कही। खैर, सम्मान समारोह में जब सफाई व स्वच्छता की बातें की जा रही थी, संकल्प लिए जा रहे थे, ठीक उसी वक्त नगर परिषद प्रांगण सहित शहर के कमोबेश सभी चौक चौराहे बदरंग हो चले थे। हर जगह पोस्टर व होर्डिंग्स ही नजर आ रहे थे। शहर विधायक को जन्मदिन की बधाई तथा सभापति को निर्वाचित होने पर बधाई दी गई थी। शहर में इस तरह चौक चौराहों को बदरंग करने की परिपाटी बन गई है। कोई भी आयोजन हो, हर कोई मनमर्जी से पोस्टर टांग देता है। इस काम में नगर परिषद व नगर विकास न्यास व उनके नुमाइंदे भी समान रूप से दोषी हैं, क्योंकि इनकी तरफ से शहर के सौन्दर्य को बिगाडऩे वालों के खिलाफ कभी कार्रवाई नहीं की जाती। वैसे भी जनप्रतिनिधियों की ओर से साफ-सफाई व स्वच्छता की दुहाई देना तथा चौक चौराहों की बदरंगता की तरफ आंख मूंद लेना कथनी और करनी के भेद को साफ-साफ उजागर करता है।
एक खास बात और जो सम्मान समारोह में नजर आई। लगभग सभी वक्ताओं ने शहर की बदहाली के लिए नगर परिषद के प्रबंधन की बजाय राज्य की भाजपा सरकार की कथित उपेक्षा को दोषी माना। वक्ताओं की बात पर कुछ देर के लिए यकीन कर भी लिया जाए लेकिन शहर की बदरंगता को दूर करने में भी क्या भाजपा सरकार की उपेक्षा आड़े आई? चौक चौराहों पर टंगे पोस्टर व होर्डिंग्स हटाने के लिए भी क्या राज्य सरकार ने मना किया? दरअसल, इस तरह की पोलपट्टी, इस तरह की अव्यवस्था, इस तरह की मनमर्जी स्थानीय स्तर पर ही होती है। और इन सबके के लिए स्थानीय जनप्रतिनिधि व अधिकारी ही जिम्मेदार हैं।
बहरहाल, विधायक व नवनिर्वाचित सभापित दोनों से यह अपेक्षा की जाती है कि वो सबसे पहले चौक चौराहों का सौन्दर्य बहाल करवाएं। इस काम के लिए किसी बजट की आवश्यकता नहीं होती। इस काम के लिए राज्य सरकार से किसी सहयोग की भी आवश्यकता नहीं होती। जरूरत है तो केवल जनप्रतिनिधियों को इच्छा शक्ति दिखलाने की। अगर जनप्रतिनिधियों की ही इस काम में कहीं न कहीं हां तो फिर तो किसी से भी उम्मीद करना भी बेमानी है। देखने की बात है कि विधायक व सभापति पुरानी परिपाटी को तोड़ते हैं या वे भी उसी का हिस्सा बने रहेंगे 
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 03 दिसंबर के अंक में प्रकाशित

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