गरीब की जोरू
एक कहावत है गरीब की जोरू, सबकी भौजाई। इस कहावत का आशय है कि कमजोर आदमी से कोई डरता नहीं है। अपने यहां यह कहावत नगर विकास न्यास व नगर परिषद पर एकदम सटीक बैठती है। शहर में अवैध होर्डिंस लगाने वाले के प्रति यूआईटी व परिषद की भूमिका गरीब की जोरू जैसी है। यह विभाग न तो होर्डिंग्स हटाते हैं और न ही लगाने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई करते हैं। शहर में चौक चौराहों पर होर्डिंग्स टांगने का शगल ऐसा है कि हर कोई ऐरा-गैरा-नत्थू खैरा जहां मर्जी को वहां होर्डिंग्स टांग देता हैं। अब यह तो यूआईटी व परिषद के अधिकारियों को तय करना है कि वे इसी तरह की छवि को बरकरार रखना चाहते हैं या फिर कोई कारगर कार्रवाई कर पहल करेंगे?
वाह री पुलिस
खाकी चाहे तो क्या नहीं हो सकता। अपराधियों की धरपकड़ के लिए परिजनों को उठाने का तरीका तो काफी समय से प्रचलन से है। इधर परिजन को हिरासत में लिया और उधर आरोपित सरेंडर कर देता है। लेकिन कई बार खाकी मुंह देखकर टीका निकालने लग जाती है तो खुद ही सवालों के घेरे में आ जाती है। अब एक कार की टक्कर से छह जनों की मौत के बाद भी आरोपित पुलिस की पकड़ से बाहर हैं। जब खाकी को कार के मालिक का पता है तो गिरफ्तारी में इतनी ढील की कुछ तो वजह है। प्रशासन ने तो पीडि़त परिवारों को पचास-पचास हजार दे दिए हैं लेकिन पुलिस अभी तक यह कहने की स्थिति में नहीं है कि कार चला कौन रहा था? कार में कितने लोग सवार थे? थानाधिकारी का बिना नाम पते जल्द गिरफ्तारी का कहना तो और भी बचकाना बयान है।
इतिहास बनेगा या दोहराया जाएगा!
श्रीगंगानगर में मेडिकल कॉलेज को लेकर और कुछ हो या न हो लेकिन राजनीति जमकर हो रही है। और इस राजनीति में जनता चक्करघिन्नी बनी है। वह तय नहीं कर पा रही है कि किसकी बात पर यकीन किया जाए। कौन सच्चा है और कौन सियासी चालें चल रहा है। खास बात तो यह है कि इस मामले में हर पक्ष के पास अपनी-अपनी दलीलें हैं। और सब यह साबित करना चाहते हैं कि उनके स्तर पर कोई गड़बड़ नहीं है। सोचा जा सकता है जब गड़बड़ ही नहीं है तो फिर काम क्यों रुका हुआ है। जैसे जैसे चुनाव व एमओयू की तिथि नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे सभी के सुर बदले-बदले नजर आ रहे हैं। कल सुबह मंत्री जी कुछ बोले और शाम होते-होते धरातल पर कुछ और दिखाया दिया। इस समूचे घटनाक्रम से यह तो साबित हो रहा है कि कुछ तो है? भले ही सकारात्मक हो या नकारात्मक। आज शाम को जयपुर से खबर आ गई कि मेडिकल कॉलेज बनने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। अब सरकार और दानदाता दोनों ही एकमत हैं लेकिन चुनावी साल में मेडिकल कॉलेज बनकर इतिहास बनाएगा या पिछले चार साल के इतिहास को दोहराएगा, यह समय ही बताएगा!
पांच सौ में प्रचार
चुनाव नजदीक आने के साथ कई मौसमी नेता भी पैदा हो जाते हैं और इसी के साथ शुरू हो जाता है प्रचार-प्रसार का काम। भले ही चुनावी वैतरणी पार लगे या न लगे, यह अलग बात है परंतु नाम चर्चा में जरूर आ जाता है। यह एक तरह से होर्डिंग्स का तोड़ है। इसमें किसी तरह की कार्रवाई का खतरा भी नहीं है। श्रीगंगानगर में अपना पद व कद बड़ा करने के लिए प्रयासरत नेताजी इन दिनों इसी तरह के प्रचार को प्रमुखता दे रहे हैं। बताया जा रहा है कि यह गाड़ी के पीछे नेताजी का नाम लिखने पर एक माह के पांच सौ रुपए मिल रहे हैं। पांच सौ में प्रचार के इस तरीके को कई लोग अपना रहे हैं। इस प्रचार में कार वालों को फायदा है। एक तो पैसे मिल रहे हैं। दूसरा फायदा यह है कि नेताजी का नाम लिखा देखकर पुलिस/ प्रशासन संबंधी कार्रवाई का भय भी खत्म हो जाता है।
वाह री पुलिस
खाकी चाहे तो क्या नहीं हो सकता। अपराधियों की धरपकड़ के लिए परिजनों को उठाने का तरीका तो काफी समय से प्रचलन से है। इधर परिजन को हिरासत में लिया और उधर आरोपित सरेंडर कर देता है। लेकिन कई बार खाकी मुंह देखकर टीका निकालने लग जाती है तो खुद ही सवालों के घेरे में आ जाती है। अब एक कार की टक्कर से छह जनों की मौत के बाद भी आरोपित पुलिस की पकड़ से बाहर हैं। जब खाकी को कार के मालिक का पता है तो गिरफ्तारी में इतनी ढील की कुछ तो वजह है। प्रशासन ने तो पीडि़त परिवारों को पचास-पचास हजार दे दिए हैं लेकिन पुलिस अभी तक यह कहने की स्थिति में नहीं है कि कार चला कौन रहा था? कार में कितने लोग सवार थे? थानाधिकारी का बिना नाम पते जल्द गिरफ्तारी का कहना तो और भी बचकाना बयान है।
इतिहास बनेगा या दोहराया जाएगा!
श्रीगंगानगर में मेडिकल कॉलेज को लेकर और कुछ हो या न हो लेकिन राजनीति जमकर हो रही है। और इस राजनीति में जनता चक्करघिन्नी बनी है। वह तय नहीं कर पा रही है कि किसकी बात पर यकीन किया जाए। कौन सच्चा है और कौन सियासी चालें चल रहा है। खास बात तो यह है कि इस मामले में हर पक्ष के पास अपनी-अपनी दलीलें हैं। और सब यह साबित करना चाहते हैं कि उनके स्तर पर कोई गड़बड़ नहीं है। सोचा जा सकता है जब गड़बड़ ही नहीं है तो फिर काम क्यों रुका हुआ है। जैसे जैसे चुनाव व एमओयू की तिथि नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे सभी के सुर बदले-बदले नजर आ रहे हैं। कल सुबह मंत्री जी कुछ बोले और शाम होते-होते धरातल पर कुछ और दिखाया दिया। इस समूचे घटनाक्रम से यह तो साबित हो रहा है कि कुछ तो है? भले ही सकारात्मक हो या नकारात्मक। आज शाम को जयपुर से खबर आ गई कि मेडिकल कॉलेज बनने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। अब सरकार और दानदाता दोनों ही एकमत हैं लेकिन चुनावी साल में मेडिकल कॉलेज बनकर इतिहास बनाएगा या पिछले चार साल के इतिहास को दोहराएगा, यह समय ही बताएगा!
पांच सौ में प्रचार
चुनाव नजदीक आने के साथ कई मौसमी नेता भी पैदा हो जाते हैं और इसी के साथ शुरू हो जाता है प्रचार-प्रसार का काम। भले ही चुनावी वैतरणी पार लगे या न लगे, यह अलग बात है परंतु नाम चर्चा में जरूर आ जाता है। यह एक तरह से होर्डिंग्स का तोड़ है। इसमें किसी तरह की कार्रवाई का खतरा भी नहीं है। श्रीगंगानगर में अपना पद व कद बड़ा करने के लिए प्रयासरत नेताजी इन दिनों इसी तरह के प्रचार को प्रमुखता दे रहे हैं। बताया जा रहा है कि यह गाड़ी के पीछे नेताजी का नाम लिखने पर एक माह के पांच सौ रुपए मिल रहे हैं। पांच सौ में प्रचार के इस तरीके को कई लोग अपना रहे हैं। इस प्रचार में कार वालों को फायदा है। एक तो पैसे मिल रहे हैं। दूसरा फायदा यह है कि नेताजी का नाम लिखा देखकर पुलिस/ प्रशासन संबंधी कार्रवाई का भय भी खत्म हो जाता है।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 15 फरवरी 18 के अंक में प्रकाशित।
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