स्मृति शेष
मेरे स्कूली जीवन के पहले गुरु श्री रामजीलाल जी नहीं रहे। लंबी बीमारी के बाद दो रोज पूर्व मंगलवार को उनका निधन हो गया। गांव के ही राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में पहली व दूसरी क्लास में वो मेरे कक्षा अध्यापक रहे। छात्रों के प्रति उनका लगाव, जुड़ाव व प्रभाव साफ तौर पर देखा जा सकता था। मैंने उनको कड़क मास्टर के रूप में कभी नहीं देखा। मैंने उनके हाथ में डंडा जरूर देखा लेकिन इसका उपयोग उन्होंने शायद ही कभी किया हो। वो गुरु होने के साथ-साथ अभिभावक भी थे। उनकी सबसे बड़ी खासियत यह थी कि वो विद्यार्थियों के अभिभावकों के सतत संपर्क में रहते थे तथा उनसे फीडबैक लेने व देने का काम बखूबी करते थे। कोई विद्यार्थी अगर पढ़ाई में ध्यान नहीं देता था गुरुजी चलकर उसके घर जाते थे और अभिभावकों को उलाहना देकर आते थे। आठवीं कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद मैं दूसरे स्कूल में चला गया लेकिन गुरुजी से मेरा संपर्क बना रहा। मुझे याद है गुरुजी कई बार कुर्सी पर बैठे-बैठे ही झपकी ले लेते थे। यह काम वो इतना बखूबी करते थे हमको कानोंकान खबर तक नहीं होती। स्कूल में तब रामजीलाल जी व गुमानसिंह जी मास्टरजी की जोड़ी खासी चर्चित थी। इन दोनों गुरुओं को मैंने स्कूल में खाली वक्त के दौरान तथा स्कूल से बाहर भी अक्सर साथ-साथ ही देखा। खैर, उनका नश्वर शरीर इस दुनिया में नहीं है लेकिन उनसे शिक्षित-दीक्षित उनके शिष्य देश व प्रदेश के विभिन्न कोनों में किसी न किसी क्षेत्र में परचम फहरा रहे हैं। एक अध्यापक के लिए यही तो जमा पूंजी होती है। गुरुजी को मेरा प्रणाम। भगवान उनको अपने श्री चरणों में स्थान दे तथा परिजनों व हम सब शिष्यों को यह अपार दुख सहन करने का संबल प्रदान करे।
मेरे स्कूली जीवन के पहले गुरु श्री रामजीलाल जी नहीं रहे। लंबी बीमारी के बाद दो रोज पूर्व मंगलवार को उनका निधन हो गया। गांव के ही राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में पहली व दूसरी क्लास में वो मेरे कक्षा अध्यापक रहे। छात्रों के प्रति उनका लगाव, जुड़ाव व प्रभाव साफ तौर पर देखा जा सकता था। मैंने उनको कड़क मास्टर के रूप में कभी नहीं देखा। मैंने उनके हाथ में डंडा जरूर देखा लेकिन इसका उपयोग उन्होंने शायद ही कभी किया हो। वो गुरु होने के साथ-साथ अभिभावक भी थे। उनकी सबसे बड़ी खासियत यह थी कि वो विद्यार्थियों के अभिभावकों के सतत संपर्क में रहते थे तथा उनसे फीडबैक लेने व देने का काम बखूबी करते थे। कोई विद्यार्थी अगर पढ़ाई में ध्यान नहीं देता था गुरुजी चलकर उसके घर जाते थे और अभिभावकों को उलाहना देकर आते थे। आठवीं कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद मैं दूसरे स्कूल में चला गया लेकिन गुरुजी से मेरा संपर्क बना रहा। मुझे याद है गुरुजी कई बार कुर्सी पर बैठे-बैठे ही झपकी ले लेते थे। यह काम वो इतना बखूबी करते थे हमको कानोंकान खबर तक नहीं होती। स्कूल में तब रामजीलाल जी व गुमानसिंह जी मास्टरजी की जोड़ी खासी चर्चित थी। इन दोनों गुरुओं को मैंने स्कूल में खाली वक्त के दौरान तथा स्कूल से बाहर भी अक्सर साथ-साथ ही देखा। खैर, उनका नश्वर शरीर इस दुनिया में नहीं है लेकिन उनसे शिक्षित-दीक्षित उनके शिष्य देश व प्रदेश के विभिन्न कोनों में किसी न किसी क्षेत्र में परचम फहरा रहे हैं। एक अध्यापक के लिए यही तो जमा पूंजी होती है। गुरुजी को मेरा प्रणाम। भगवान उनको अपने श्री चरणों में स्थान दे तथा परिजनों व हम सब शिष्यों को यह अपार दुख सहन करने का संबल प्रदान करे।
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