Friday, November 29, 2013

इस बार रोचक होगा दुर्ग का दंगल


दुर्ग विधानसभा

दुर्ग शहर के दंगल में इस बार भी भाजपा व कांग्रेस के परम्परागत दिग्गज ही दिखाई देंगे। इस विधानसभा क्षेत्र में अब तक हुए 13 मुकाबलों में नौ में जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस को पिछले तीन चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। यह भी संयोग है कि 1993 से हेमचंद यादव व अरुण वोरा चुनाव लड़ते आ रहे हैं। इस चुनाव में वोरा के पक्ष में माहौल है। इस क्षेत्र से कांग्रेस कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा पांच बार विधायक रहे हैं। इसके बाद उनकी विरासत उनके पुत्र अरुण वोरा ने सम्भाली, लेकिन वे केवल एक बार ही जीत दर्ज कर पाए।
भाजपा के हेमचंद यादव यहां से तीन बार जीत चुके हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भिलाई में चुनावी सभा को संबोधित कर माहौल पक्ष करने में प्रयास तो भाजपा के नरेन्द्र मोदी भी दुर्ग सभा कर मतदाताओं को रिझाने की कोशिश की। राजबब्बर भी अरुण वोरा के समर्थन में सभा कर चुके हैं। इसके अलावा घर-घर दस्तक देने व जनसम्पर्क करने का काम भी गति पकड़ चुका है।
नाम वापसी के बाद मैदान में कुल 18 प्रत्याशी डटे हुए हैं। यहां से बसपा, सपा, एनपीपी एवं शिवसेना ने भी प्रत्याशी खड़े किए हैं, लेकिन इनमें कोई मुकाबले में दिखाई नहीं दे रहा है। इधर, महापौर के चुनाव में करीबी मुकाबले में हारे छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच के राजेन्द्र साहू भी मैदान में हैं। ऐसे में मुकाबला रोचक एवं त्रिकोणीय होने के आसार बन गए हैं। हार-जीत को लेकर सभी के अपने-अपने दावे हैं, लेकिन फिलहाल तस्वीर साफ नहीं है। पिछली बार हार-जीत का अंतर करीबी होने के कारण मुकाबला दिलचस्प होना तय माना जा रहा है। क्षेत्र में साहू, कुर्मी, अल्पसंख्यक एवं मारवाड़ी मतदाताओं की बहुलता है।
विकास बनाम भ्रष्टाचार
चुनाव में फिलहाल विकास बनाम भ्रष्टाचार की प्रमुख मुद्दा बना हुआ है। भाजपा प्रत्याशी जहां विकास के नाम पर वोट मांग रहे हैं और कांग्रेस व भाजपा शासन की तुलना कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस प्रत्याशी भाजपा सरकार के कार्यकाल में हुए कार्यों की गुणवत्ता पर सवाल उठा रहे हैं। वे शहर की कानून व्यवस्था व भ्रष्टाचार को ही अपना हथियार बनाए हुए हैं। वैसे कांग्रेस प्रत्याशी सड़क, बिजली, पानी जैसी बुनियादी समस्याओं को लेकर क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहे हैं। इधर मंच प्रत्याशी भी कई जन आंदोलनों से जुड़े रहे हैं।
मुद्दे दिखाएंगे असर
भाजपा प्रत्याशी भले की विकास का दावा करें, लेकिन हकीकत इससे उलट ही दिखाई देती है। निगम में भी भाजपा के महापौर होने के बावजूद कई जगह तो दुर्ग शहर की हालात ग्रामीण क्षेत्रों से भी बदतर है। बदहाल सड़कों की हालत में सुधार नहीं हुआ। पेयजल आपूर्ति हर दूसरे तीसरे दिन प्रभावित होती रही। कभी पाइपलाइन फूटने के नाम पर तो कभी लाइन बदलने के नाम पर। शहर में बढ़ते अपराधों पर कारगर अंकुश नहीं लग पाया। नशे का कारोबार भी बेखौफ चलता रहा।
थाह लेना मुश्किल
दुर्ग में मतदान का प्रतिशत 60-65 के बीच ही रहता आया है, लेकिन दुर्ग का चुनाव जरूर चर्चा में रहता है। इस बार भी परम्परागत चेहरे मैदान में हैं, लिहाजा मतदाताओं में वैसा उत्साह नहीं दिख रहा है। हालांकि मंच की उपस्थिति से मुकाबला रोचक होना तय है और इसी वजह से लोग खुलकर कुछ नहीं बोल पा रहे हैं। ऐसे में उनकी थाह लेना या मानस टटोलना टेढ़ी खीर है। अपनी पसंद व नापंसद को वे सीधे तौर पर जाहिर भी नहीं कर रहे हैं। मतदाताओं की यह खामोशी क्या गुल खिलाएगी यह तो समय के गर्भ में है, लेकिन दुर्ग के दंगल में इस बार घमासान जोरदार होगा।

 साभार : पत्रिका छत्तीसगढ़ में 18 नवम्बर 13 के अंक में प्रकाशित।

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