Friday, November 29, 2013

पुराने प्रतिद्वंद्वियों के बीच कांटे की टक्कर

साजा विधानसभा


कृ षि प्रधान क्षेत्र साजा में इस बार भी मुकाबला उन्हीं प्रतिद्वंद्वियों के बीच है, जो पिछले चुनाव में आमने-सामने थे। पिछले चुनाव में हार का अंतर कम होने के कारण भाजपा ने बजाय कोई नया प्रयोग करने की उसी प्रत्याशी को मैदान में उतार दिया है। भाजपा प्रत्याशी लाभचंद बाफना को मुख्यमंत्री का नजदीकी होने के कारण चुनाव को प्रतिष्ठा की लड़ाई से जोड़ कर देखा जा रहा है। तभी तो इस क्षेत्र में मुख्यमंत्री सहित भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वेकैंया नायडू, फिल्म अभिनेत्री हेमा मालिनी, मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती आदि चुनावी सभाएं कर चुके हैं, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी फिलहाल अकेले की प्रचार की कमान संभाले हुए हैं। उनके समर्थन में पार्टी का कोई बड़़ा नेता नही आया है।
चुनाव प्रचार में इस प्रकार का अंतर इसलिए भी है, क्योंकि कांग्रेस प्रत्याशी रविन्द्र चौबे यहां से लगातार छह बार जीत दर्ज कर चुके हैं, जबकि भाजपा को यहां खाता खुलने का इंतजार है। यह बात दीगर है कि 1977 में साजा विधानसभा क्षेत्र जब अस्तित्व में आया, उस वक्त पहले विधायक जनता पार्टी के बने थे। इसके बाद से इस सीट पर लगातार कांग्रेस ही जीतती आई है। यह भी संयोग है कि अब तक जितने भी प्रत्याशी यहां से जीते हैं, सभी एक ही परिवार से संबंधित हैं। कांग्रेस के रविन्द्र चौबे ने सबसे बड़ी जीत 1998 में दर्ज की थी, जब वे 24 हजार 318 मतों से विजयी रहे थे। सबसे कम अंतर की जीत पिछले चुनाव में थी, जब वे महज 5055 मतों से जीत पाए।
भाजपा के बढ़े वोट
भाजपा के लिए राहत की बात यह है कि पिछले दो चुनाव में उसके प्रत्याशी हारे जरूर हैं, लेकिन कुल वोट हासिल करने का ग्राफ बढ़ा है। 2003 में भाजपा प्रत्याशी को 40 हजार 831, जबकि 2008 में 58 हजार 720 मत मिले। इधर कांग्रेस प्रत्याशी ने 2003 में 58 हजार 573 तथा 2008 में 63 हजार 775 मत मिले। इस प्रकार भाजपा ने जहां अपने कुल मतों में 17 हजार 889 मतों की वृद्धि की, जबकि कांग्रेस ने 5 हजार 202 वोट बढ़ाए। साजा से इस बार आठ प्रत्याशी मैदान में हैं। छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच ने रामकुमार साहू को मैदान में उतारा है, जबकि कांग्रेस के पूर्व विधायक किशनलाल कुर्रे भी इस बार बतौर निर्दलीय साजा से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। फिर भी मुख्य मुकाबला भाजपा एवं कांग्रेस के बीच ही माना जा रहा है। साजा में लोधी एवं साहू समाज की बाहुल्यता है। इनके मत ही हमेशा निर्णायक रहते आए हैं।
वास्तविक मुद्दे गौण
साजा कृषि प्रधान क्षेत्र है। धान, सोयाबीन, चना, अरहर, टमाटर एवं हरी सब्जियों के उत्पादन में यह क्षेत्र अग्रणी है। यहां कृषि रकबा भी प्रदेश में अव्वल है। इतना कुछ होने के बाद भी दोनों दलों की ओर से कृषि आधारित शिक्षा एवं उद्योग के लिए कोई पहल नहीं की गई है। सिंचाई का पानी भी इस क्षेत्र में बड़ा संकट है। सूतियापाट-नरोधा डेम का पानी इस इलाके में लाने के लिए बनी योजना भी समय के साथ दफन हो गई। इसके अलावा क्षेत्र में कई जगह पेयजल संकट भी है। सूरही नदी का पानी रोकने के लिए कई जगह स्टॉप डेम बनाए गए, लेकिन यहां पानी रुकता नहीं है, इस कारण किसानों को उतना लाभ नहीं मिल पाता। हालांकि पानी को रोकने के लिए दर्जनभर स्टॉप डेम बनाए गए हैं, लेकिन वे ऐसी जगह बने हैं जहां पानी रुकता नहीं है। क्षेत्र में चिकित्सा एवं उच्च शिक्षा की व्यवस्था भी संतोषजनक नहीं है। इतने सारे मुद्दे होने के बावजूद इस संबंध में दोनों दलों की तरफ से कोई ठोस घोषणा नहींं की गई है।
आरोप-प्रत्यारोप का दौर
साजा विधानसभा में फिलहाल मुद्दे गौण हैं। आरोप-प्रत्यारोप का दौर जरूर चल रहा है। एक-दूसरे को जनता का हितैषी एवं सच्चा सेवक बताकर मतदाताओं को लुभाने का प्रयास किया जा रहा है। भाजपा प्रत्याशी लाभचंद बाफना मतदाताओं के समक्ष खुद को जनता का सेवक होने तथा पांच साल के लिए सेवा का मौका देने के नाम पर वोट मांग रहे हैं, जबकि चौबे इसको पंूजीपति बनाम किसान की लड़ाई करार देते हुए मैदान में डटे हैं। चौबे कह रहे हैं कि वे स्वयं किसान हैं, इस कारण किसानों के दुख-दर्द बेहतर तरीके से समझते हैं।

 साभार : पत्रिका छत्तीसगढ़ में 16 नवम्बर 13 के अंक में प्रकाशित।

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