Monday, May 30, 2011

मेरा बचपन...५

बचपन की यादों की जो श्रृंखला चल रही है उसमें अब मेरे स्कूली जीवन से जुड़ी कुछ यादें हैं। स्कूली जीवन में काफी कुछ हुआ जो मुझे याद है। मुझे यह भी याद है कि स्कूल में २६ जनवरी के समारोह में मैंने पहली बार एक कविता सुनाई थी। उस समय मैं पहली कक्षा में था। कविता के बोल थे, एक-एक कर ईंटें जोड़ो तो तुम महल बना दोगे...। इसके बाद हर साल २६ जनवरी एवं १५ अगस्त पर प्रस्तुति देने का एक सिलसिला चल पड़ा जो  कॉलेज लाइफ तक जारी रहा। शायद यही एकमात्र कारण रहा कि मुझे स्टेज पर जाने तथा वहां जाकर कुछ बोलने में कभी हिचकिचाहट नहीं हुई। वैसे कक्षा प्रथम से लेकर आठवीं तक मैंने प्रार्थना भी की है। स्कूल में मेरे एक और साथी एक थे मैं और वो दोनों आगे-आगे बोलते और सारे विद्यार्थी हमारा अनुसरण करते। १९८२ से लेकर १९८९ तक गांव के स्कूल में ही आठवीं तक अध्ययन किया। हां इस दौरान स्कूल में अंताक्षरी का बड़ा क्रेज था। बात चाहे अंग्रेजी की हो या फिर हिन्दी की। मैं अकेला ही पूरी स्कूल को हरा देता था। मेरी काबिलियत को देखते हुए अध्यापक मुझे एक-एक कक्षा में बारी-बारी से भेजते थे तथा मैं पूरी कक्षा को पराजित करके ही दम लेता था। एक बार पड़ोसी गांव के स्कूल के चार विद्यार्थियों की टोली हमारे विद्यालय में अंताक्षरी के मकसद से आई। उन विद्यार्थियों ने बड़ी अच्छी तैयारी की थी और सभी ने रामायण के दोहे कंठस्थ कर रखे थे। उस दौरान जो हुआ वह आज भी याद है अंताक्षरी के प्रत्युत्तर में मैं ऐसा खड़ा हुआ कि फिर बैठा ही नहीं। लगातार मैं ही दोहे सुनाता रहा। आखिरकार विजय हमारी ही हुई। स्कूल का एक और महत्त्वपूर्ण वाकया है उस वक्त मैं कक्षा चार का विद्यार्थी था। इतिहास के अध्यापक उस वक्त पाठ स्वयं ने पढाकर विद्यार्थियों से पढ़वाया करते थे। कक्षा चार में सामाजिक ज्ञान की पुस्तक में अलाउद्‌दीन खिलजी से संबंधित पाठ पढ़ रहा था। अचानक मेरे चारों तरफ अंधेरा छा गया और मैं चक्कर गिर गया। किताब हाथ से छूटकर दूर जा गिरी। यकायक हुए इस घटनाक्रम से क्लास में हड़कम्प मच गया। बाद में सहयोगी साथी मुझे पीठ पर बैठाकर प्रधानाध्यापक कक्ष तक ले गया। वहां एक लम्बी बैंच पर मुझे लिटा दिया गया। सामान्य होने के बाद मुझे ठण्डा पानी पिलाया गया। वैसा चक्कर मुझे बाद में कभी नहीं आया लेकिन उसे याद करने के बाद आज भी हल्की सी सिहरन दौड़ जाती है।  कहने को स्कूल की यादों में बहुत सी बातें हैं। हां एक बात और अध्यापक क्लास में सवाल पूछते थे। सही जवाब न देने वालों को वे स्वयं दण्डित नहीं करते बल्कि जो छात्र सही जवाब देता वह बारी-बारी सबके एक-एक थप्पड़ मारता था। मैंने शायद ही कभी थप्पड़ खाए हों लेकिन थप्पड़ मारे खूब। मैं क्लास में सबसे छोटा था। उम्र में भी और कद में भी। घर में आठवीं कक्षा का एक ग्रुप फोटो आज भी टंगा है, जिसमें सहपाठियों ने प्रधानाध्यापक को सेवानिवृत्ति पर विदाई दी थी। वह फोटो देखकर बरबस मेरी हंसी छूट जाती है। जैसा मैंने बताया मैं फोटो में सबसे अलग एवं सबसे छोटा दिखाई देता हूं। सच में वे भी क्या दिन थे।

2 comments:

  1. इसे जारी रखिये हम साथ साथ घूम रहे है बचपन के गलियारों में |

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