Tuesday, September 11, 2012

उचित नहीं अनदेखी

  टिप्पणी

 राज्य के मुखिया मंगलवार को भिलाई आ रहे हैं। मूलभूत सुविधाओं से संबंधित कार्यों का भूमिपूजन करने। काम कब शुरू होंगे, इसका कोई अता-पता नहीं है। न काम शुरू होने की तिथि ना खत्म होने की समय सीमा। लेकिन बड़ी ही होशियारी के साथ सभी कामों की गिनती एवं उनके संभावित खर्चे का आकलन जरूर कर लिया गया है। कुल 70 करोड़ रुपए के 182 कार्यों का भूमिपूजन करेंगे। कार्यों का भूमिपूजन भी अपने आप में अनूठा है। यह बिना वर्क ऑर्डर जारी हुए ही हो रहा है। निगम अधिकारियों की दलील है कि ऐसा सकता है, लेकिन जानकारों को यह खटक रहा है। निगम का इतिहास बता रहा है कि पिछले साल उसने स्वीकृत राशि का केवल 26 प्रतिशत की खर्च किया। सोचा जा सकता है 70 करोड़ कब तक खर्च होंगे। बात इसलिए भी जम रही है क्योंकि 2010 में भी कुछ इसी अंदाज में भूमिपूजन किया गया था। यह काम भी मुख्यमंत्री के कर कमलों से ही सम्पादित हुआ था। कुल 85 करोड़ रुपए के 84 कार्य होने थे। क्या हश्र हुआ उनका, सब जानते हैं। कुछ काम तो अभी तक चल रहे हैं। जो हुए वे गुणवत्ता का रोना रो रहे हैं। आंसू बहा रहे हैं, अपनी बदहाली पर। तभी तो मुख्यमंत्री की यात्रा को लेकर आम आदमी में कोई जोश नहीं है। हो भी कैसे। विकास कार्यों का बानगी और उसका हश्र वह देख चुका है। हर बार वादे एवं आश्वासन ही तो मिले हैं उसको। हुडको तो ज्वलंत उदाहरण है इसका। बुनियादी सुविधाओं के लिए फुटबाल बने हुए हैं, वहां के लोग। देने के लिए भिलाई के लिए बहुत कुछ हो सकता है। संभव है भूमिपूजन कार्यकम में कुछेक की घोषणाएं भी हो जाएं लेकिन घोषणाओं का इतिहास भी उजला नहीं है। भिलाई के लोग तो यही चाहते हैं कि घोषणाओं पर अतीत हावी न हो। वो अपने अंजाम तक पहुंचे। देखा जाए तो राज्य सरकार ने आखिर ऐसा दिया भी क्या है भिलाई को। वैश्विक फलक पर छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व करने वाला तथा खेलों में एक से बढ़कर एक नायाब हीरे देने वाला भिलाई शहर विकास के मामले में राज्य सरकार की मदद का मोहताज ही रहा है। जो पहचान है वह खुद के दम पर ही तो है भिलाई की। आजादी के 65 साल बाद भी शहर में मूलभूत सुविधाओं में विस्तार के कार्य ही हो रहे हैं, कितना हास्यास्पद लगता है यह सब सुनकर। शिक्षानगरी के साथ हमेशा सियासत ही हुई है, वरना करने को बहुत कुछ किया जा सकता है यहां पर।
बहरहाल, प्रदेश के मुखिया अगर भिलाई को लेकर वाकई गंभीर हैं तो वे ऐसा कुछ करें कि उदास एवं नाउम्मीद लोगों में उत्साह का संचार हो। सियासत के मारो के साथ अब और सियासत ना हो। उनको काम चाहिए, घोषणाएं, वादे या भूमिपूजन नहीं। समय के साथ आकार लेते भिलाई में भविष्य की जरूरतों पर अभी से विचार किए जाने की जरूरत है। लगातार अनदेखी उचित नहीं है। जरूरत है भिलाई के दर्द को समझने। मुखिया होने के नाते घोषणाएं करना कोई बड़ी बात नहीं है जरूरत है उनको समय पर अमलीजामा पहनाने की। ऐसा ना हो कि वादे सिर्फ वादे ही रह जाएं और लोग फिर अपने आप को ठगा सा महसूस करें।

साभार- पत्रिका भिलाई के 11 सितम्बर 12 के अंक में प्रकाशित।

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