बिलासपुर रेलवे जोन के अधिकारियों ने गुरुवार को दुर्ग रेलवे स्टेशन का
निरीक्षण किया। इससे पहले बुधवार को रायपुर रेलवे मंडल के अधिकारियों ने भी
स्टेशन का जायजा लिया था। रायपुर रेलवे मंडल के अधिकारियों के दुर्ग आने
की सूचना सम्बंधित ठेकेदार को मिल गई थी, इस कारण अव्यवस्थाओं पर परदा
डालने का प्रबंध कर दिया गया। एक नम्बर प्लेटफार्म को तो तुरत-फुरत चकाचक
कर दिया गया। दुर्ग स्टेशन पहुंचे रायपुर के अधिकारियों ने जायजे के दौरान
प्रसाधन कक्ष के फ्लोर टाइल्स, वेंटिलेशन खिड़की और वाश बेसिन का संधारण
करने के निर्देश दिए। इसके अलावा स्लीपर एवं एसी डारमेट्री टीटीई कक्ष का
निरीक्षण कर चादर एवं कंबल नियमित बदलने तथा सफाई व्यवस्था सुचारू रखने के
लिए भी कहा। अधिकारियों ने स्टेशन परिसर में चल रहे निर्माण कार्यों की
धीमी गति पर भी नाराजगी जताई। वैसे, रायपुर की टीम ने निरीक्षण में ज्यादा
दिलचस्पी दिखाई भी नहीं। उनका मकसद तो यही था कि बिलासपुर से आने वाली टीम
को कोई बड़ी अव्यवस्था ना मिल जाए, इसलिए क्यों ना उसको समय रहते ही दूर कर
लिया जाए। लिहाजा, सम्बंधितों को दिशा-निर्देश जारी कर अधिकारी रायपुर लौट
गए। गुरुवार को पूर्व घोषित कार्यक्रम के अनुसार बिलासपुर जोन के अधिकारी
दुर्ग स्टेशन पहुंंचे तो जरूर, लेकिन उनके दौरे में गंभीरता कम ही दिखाई
दी। इन अधिकारियों ने भी वही कुछ देखा या दिखाया गया जो रायपुर के अधिकारी
एक दिन पूर्व देख चुके थे। अधिकारियों ने पूरे स्टेशन परिसर का निरीक्षण
करना भी उचित नहीं समझाा। अधिकारियों के आगमन को देखते हुए जिन अव्यवस्थाओं
के दुरुस्त होने की उम्मीद बंधी थी, वे वैसे की वैसे मुंह बाए खड़ी रही।
हाल ही में चर्चा में आए पार्सल विभाग की तरफ तो अधिकारियों ने देखना तक
उचित नहीं समझाा। पार्किंग एवं पेयजल व्यवस्था की भी यही कहानी रही। वैसे
निरीक्षण का मतलब सिर्फ औपचारिकता निभाना ही नहीं है। इसका उद्देश्य मौके
की वास्तविकता से अवगत होना तो है ही। व्यवस्थाओं में किसी तरह की गड़बड़ी न
हो, स्टेशन पर आने वाले यात्रियों को किसी तरह की असुविधा का सामना ना
करने पड़े आदि तमाम बातों का ध्यान रखना भी जरूरी है। निरीक्षण की सार्थकता
भी तभी ही है। सिर्फ कागजी आंकड़े दुरुस्त करने या महज रस्म अदायगी करने
से अव्यवस्थाएं दूर नहीं होने वाली। इसके लिए पहली प्राथमिकता तो यही है कि
रेलवे के अधिकारी कामकाज के अपने परम्परागत ढर्रे में बदलाव लाएं। यात्री
भार देखते हुए दुर्ग का स्टेशन रायपुर-बिलासपुर के समकक्ष ही है। इतना ही
नहीं, दुर्ग स्टेशन को मॉडल स्टेशन का दर्जा भी दिया गया लेकिन सिर्फ मॉडल
स्टेशन का झाुनझाुना देकर इतिश्री कर ली गई। भिलाई स्टील प्लांट के रेलवे
के विस्तारीकरण में योगदान को नकारा नहीं जा सकता। इसके बावजूद सुविधाओं
में विस्तार न करके रेलवे एक तरह से दुर्ग-भिलाई के यात्रियों के साथ
नाइंसाफी ही कर रहा है। अगर दुर्ग को मॉडल स्टेशन का दर्जा मिला है, तो फिर
सुविधाएं भी उसी हिसाब से मिलनी चाहिए। रेलवे का दुर्ग-भिलाई से सौतेला
व्यवहार समझा से परे है।
साभार - पत्रिका छत्तीसगढ़ के 20 अक्टूबर 12 के अंक में प्रकाशित।
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