Monday, April 16, 2018

इक बंजारा गाए..25


कमाल की कार्रवाई
वैसे तो सभी विभाग समय-समय पर अपने हिसाब से कार्रवाई करते रहते हैं। यह कार्रवाइयां उनकी ड्यूटी का हिस्सा जो होती हैं। फिर भी पुलिस की कार्रवाई अक्सर सुर्खियों में रहती है। भले ही वह पुलिस करे या यातायात पुलिस, पर चर्चा जरूर होती है। अब श्रीगंगानगर यातायात पुलिस को ही ले लीजिए। शहर में पार्र्किंग की जगह तो आपको शायद ही कहीं दिखाई दे। यहां तक दुपहिया व चौपहिया भी सड़कों पर ही खड़े होते हैं। यह तो गनीमत है कि श्रीगंगानगर के रास्ते चौड़े व सीधे हैं, इस कारण यातायात बाधित नहीं होता। पार्र्किंग की जगह के अभाव में वाहनों को हर कहीं खड़ा कर दिया जाता है। जाहिर सी बात है कि जगह ही नहीं है तो फिर वाहन कहीं तो खड़ा करना ही पड़ेगा लेकिन यातायात पुलिस को इससे कोई मतलब नहीं। उसकी क्रेन निकलती है तो ज्यादा गाज चौपहिया वाहनों पर गिरती है। बाजार में कोई परिवार के साथ आया शख्स दुकान में खरीदारी कर रहा होता है, पीछे से यातायात पुलिस की क्रेन उसकी गाड़ी को वहां से उठा लेती है। यह अलग बात है कि इतनी कार्रवाई करने, इतना राजस्व वसूलने के बावजूद यातायात पुलिस किराये की क्रेन पर निर्भर है। सुना है इससे क्रेन वालों वालों का धंधा भी अच्छा खासा चल रहा है।
किसको क्या मिला
राजनीति के रंग निराले हैं। न तो यह हर किसी के जल्दी से समझ में आती है न ही यह सभी को रास आती है। यह बात दीगर है कि राजनीति को लेकर मन में लड्डू सबके फूटते हैं। राजनीति की एबीसीडी सीखने वाले तो मौकों की तलाश में रहते हैं कि कब मौका मिले और कब हाथ दिखाएं। राजनीति की राह पर प्रवेश करने वालों की नजर सामाजिक आंदोलन या प्रदर्शन पर ज्यादा टिकी होती है। उनका प्रयास रहता है येन-केन-प्रकारेण इन संगठनों के हमदर्द बनकर सहानुभूति कैसी बटोरी जाए। हालांकि इन नवेले नेताओं में कुछ ऐसे भी हैं जिनकी कार्यप्रणाली देखकर बड़े नेता भी दंग रह जाएं। यह अंदर से कुछ और बाहर से कुछ नजर आते हैं। पिछले दिनों एक बड़े में प्रदर्शन में शहर के एक युवा नेताजी सार्वजनिक रूप से तो चुप थे लेकिन अंदरखाने सोशल मीडिया पर मैसेज वायरल कर वाहवाही बटोरने से गुरेज नहीं कर रहे थे। इतना ही नहीं एक नए-नए नेताजी तो बाकायदा सार्वजनिक रूप से मंच पर दिखाई दिए जबकि उनके मिलते-जुलते संगठन प्रदेश में इस आंदोलन में कहीं चुप तो कहीं विरोध में नजर आए। अब राजनीति का यह गिरगिटिया रंग हर किसी के जल्दी से समझ नहीं आया और न ही कोई इसे तत्काल भांप पाता है।
दोनों हाथ में लड्डू
एक बहुत चर्चित शेर है, बनाने वाले तूने कमी न की, किसको क्या मिला मुद्दर की बात है। बाजार में जैसी चर्चाएं हैं, उन पर यकीन कर लिया जाए तो यह शेर आजकल उन किसान नेताओं पर सटीक बैठ रहा है जिन्होंने पिछले दिनों सीएम के आगमन के दौरान समझौता कर लिया। सीएम के दौरे के समय के विभिन्न विचारधाराओं के किसान नेता एकजुट नजर आए। या यूं कहे कि सतारूढ़ दल को छोड़कर बाकी सभी दलों से जुड़े किसान नेता एक मंच पर थे। इस एकता को देखकर लगा कि वाकई श्रीगंगानगर के किसानों के लिए संघर्ष करने वाले एक नहीं कई हैं। सीएम के दौरे के कारण शासन-प्रशासन वैसे ही बैकफुट पर था। इनका एकसूत्री उद्देश्य यही थी कि किसी तरह किसान नेताओं को शांत कर लिया जाए ताकि सीएम का दौरा शांतिपूर्वक निबट जाए। कई दौर की वार्ताएं हुई आखिर कथित रूप से समझौता हो गया। यह बात किसान नेताओं व सरकार के नेताओं के बीच की थी। अब आम किसान को तो यह भी नहीं पता कि समझौता किन मांगों को लेकर हुआ और समझौते में क्या है। सीएम चली गई लेकिन समझौते को लेकर किसान खुद को ठगा सा महसूस कर रहा है। वह बताने की स्थिति में नहीं है कि उसको क्या मिला।
धर्म का सहारा
श्रीगंगानगर में धर्म के प्रचार-प्रसार का काम कुछ ज्यादा ही है। यहां तक कि गाहे-बगाहे बड़े-बड़े आयोजन होते ही रहते हैं। कार्यकम इतने बड़े व तड़क-भड़क वाले होते हैं कि पैसा भी खुलकर खर्च किया जाता है। यहां तक कि कई संगठनों में तो इस बात की होड़ सी लग जाती है कि वह अपने कार्यक्रम को इक्कीस साबित कैसे करें। धर्म के प्रचार की इस गलाकाट प्रतिस्पर्धा में अक्सर नियमों की अवहेलना होती रहती है। धर्म का मामला समझ शासन-प्रशासन भी आंख मूंद लेता है। आयोजन के प्रचार-प्रचार के लिए शहर के गले, चौराहे व नुक्कड आदि को पोस्टर व होर्डिंग्स से रंग दिया जाता है। शायद ही ऐसा कोई सप्ताह बीतता होगा जब शहर के प्रमुख चौक बदरंग न होते हों। आजकल इन संगठनों ने बिना किसी रोक टोक व आपत्ति के प्रचार का एक और रास्ता और खोज लिया है। वो इन कार्यक्रमों में जानबूझकर खबरनवीसों को जोडऩे लगे हैं। उनको जिम्मेदारी देने लगे हैं। इससे संगठनों को दोहरा फायदा होने लगा है। प्रचार का प्रचार ऊपर से शहर बदरंग करने की बात कहने वालों का मुंह भी चुप। वाकई धर्म के साथ खुद का प्रचार करना कोई इन संगठनों से सीखे।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 5 अप्रेल 18 के अंक में प्रकाशित 

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