टिप्पणी
पंजाब से राजस्थान आने वाली नहरों में दूषित पानी आता है, यह सर्वविदित है। विशेषकर, श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ जिले के लोगों के लिए यह नई बात है भी नहीं। सभी को पता है नहरों में क्या-क्या बहकर आता है। नहरों मंें दूषित पानी का मसला भी ठीक वैसा ही है, जैसा कि नहरों में पानी कमी का। पीछे का इतिहास देखें तो दोनों मुद्दों में मोटा अंतर यही दिखाई देता है कि पानी कमी का मुद्दा जहां हमेशा चर्चा में रहता आया है, वहीं दूषित पानी का मुद्दा कभी-कभार या अवसर विशेष के दौरान ही उछला है। विधानसभा चुनाव के बाद एक बार फिर श्रीगंगानगर में दूषित जल मुद्दा बना है।
पिछले तीन दिन से यह मुद्दा चर्चा में है। शनिवार को गंगानगर सांसद निहालचंद का बयान आया कि दूषित जल पर रोक लगाने की मांग संसद में उठाई जाएगी और इससे भी बात नहीं बनी तो धरना भी लगाया जाएगा। इसी बयान के अगले दिन शहर के कुछ लोगों का एक प्रतिनिधिमंडल, पत्रकारों के साथ पंजाब के उन स्थानों पर पहुंचता है, जहां सतुलज नदी में यह दूषित जल मिलता है और वहां से नहरों के माध्यम से राजस्थान में आता है।
पत्रकारों को पंजाब का भ्रमण करवाने का उद्देश्य भी यही था कि वो भी उन स्थानों को देखें और लोगों को प्रदूषण की भयावहता व उसके परिणामों के बारे में गंभीरता से अवगत करवाएं। ‘दूषित जल- असुरक्षित कल’ नाम से शुरू की गई इस मुहिम के तहत बुधवार शाम को फिर बैठक बुलाई गई है। इसके अगले दिन गुरुवार को भी इसी तरह की बैठक पंजाब में प्रस्तावित है तथा वहां भी दूषित जल के खिलाफ मुहिम चलाने वाले संगठन के साथ मिलकर पटियाला में पंजाब प्रदूषण बोर्ड को ज्ञापन दिया जाएगा। शुद्ध जल हर आदमी को मिले तथा दूषित जल के खिलाफ जनजागरण हो, यह सभी चाहते हैं लेकिन अतीत के कुछ कड़वे अनुभवों के कारण इस मुहिम के शुरू होने के साथ सवाल उठने भी शुरू हो गए हैं। क्योंकि दूषित पानी को लेकर पूर्व में भी बड़ी-बड़ी बात कहने वालों ने जिस नाटकीय अंदाज में इस गंभीर मामले का पटाक्षेप किया, वह बेहद अफसोजनक रहा। लोग आज तक समझ नहीं पाए कि वो अभियान शुरू क्यों और किसलिए हुआ था और उसके अगुवाई करने वाले फिर यकायक शांत क्यों हो गए? चर्चा यह भी है कि जब राजस्थान में भाजपा और पंजाब में भाजपा-अकाली दल की सरकारी थी तब इस मामले में चुप्पी क्यों साधी गई? एक सवाल यह भी है कि कहीं यह निकाय चुनाव की तैयारी तो नहीं? खैर, सवाल उठते रहेंगे। उठने भी चाहिए। लेकिन इस तरह के गंभीर मसले में सियासत तो कतई नहीं होनी चाहिए। और हां, इसको व्यक्तिगत लाभ या दलगत लाभ-हानि के चश्मे से भी देखना नहीं चाहिए।
बहरहाल, मुहिम अच्छी है। देर सवेर किसी को तो पहल करनी ही होगी । आमजन के स्वास्थ्य से जुड़ी यह मुहिम स्वागत योग्य है। उम्मीद करनी चाहिए यह मुहिम पूर्व के आंदोलनों से अलग होगी और बिना किसी राजनीति के मुकाम तक पहुंचेगी। और अगर यह मुहिम भी पूर्व के अनुभवों से आगे नहीं बढ़ी तो कोई बड़ी बात नहीं जनजागरणों की एेसी मुहिमों से जन की सहभागिता ही गायब हो जाए?
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगागर संस्करण में 11 जून 19 के अंक में प्रकाशित।
पंजाब से राजस्थान आने वाली नहरों में दूषित पानी आता है, यह सर्वविदित है। विशेषकर, श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ जिले के लोगों के लिए यह नई बात है भी नहीं। सभी को पता है नहरों में क्या-क्या बहकर आता है। नहरों मंें दूषित पानी का मसला भी ठीक वैसा ही है, जैसा कि नहरों में पानी कमी का। पीछे का इतिहास देखें तो दोनों मुद्दों में मोटा अंतर यही दिखाई देता है कि पानी कमी का मुद्दा जहां हमेशा चर्चा में रहता आया है, वहीं दूषित पानी का मुद्दा कभी-कभार या अवसर विशेष के दौरान ही उछला है। विधानसभा चुनाव के बाद एक बार फिर श्रीगंगानगर में दूषित जल मुद्दा बना है।
पिछले तीन दिन से यह मुद्दा चर्चा में है। शनिवार को गंगानगर सांसद निहालचंद का बयान आया कि दूषित जल पर रोक लगाने की मांग संसद में उठाई जाएगी और इससे भी बात नहीं बनी तो धरना भी लगाया जाएगा। इसी बयान के अगले दिन शहर के कुछ लोगों का एक प्रतिनिधिमंडल, पत्रकारों के साथ पंजाब के उन स्थानों पर पहुंचता है, जहां सतुलज नदी में यह दूषित जल मिलता है और वहां से नहरों के माध्यम से राजस्थान में आता है।
पत्रकारों को पंजाब का भ्रमण करवाने का उद्देश्य भी यही था कि वो भी उन स्थानों को देखें और लोगों को प्रदूषण की भयावहता व उसके परिणामों के बारे में गंभीरता से अवगत करवाएं। ‘दूषित जल- असुरक्षित कल’ नाम से शुरू की गई इस मुहिम के तहत बुधवार शाम को फिर बैठक बुलाई गई है। इसके अगले दिन गुरुवार को भी इसी तरह की बैठक पंजाब में प्रस्तावित है तथा वहां भी दूषित जल के खिलाफ मुहिम चलाने वाले संगठन के साथ मिलकर पटियाला में पंजाब प्रदूषण बोर्ड को ज्ञापन दिया जाएगा। शुद्ध जल हर आदमी को मिले तथा दूषित जल के खिलाफ जनजागरण हो, यह सभी चाहते हैं लेकिन अतीत के कुछ कड़वे अनुभवों के कारण इस मुहिम के शुरू होने के साथ सवाल उठने भी शुरू हो गए हैं। क्योंकि दूषित पानी को लेकर पूर्व में भी बड़ी-बड़ी बात कहने वालों ने जिस नाटकीय अंदाज में इस गंभीर मामले का पटाक्षेप किया, वह बेहद अफसोजनक रहा। लोग आज तक समझ नहीं पाए कि वो अभियान शुरू क्यों और किसलिए हुआ था और उसके अगुवाई करने वाले फिर यकायक शांत क्यों हो गए? चर्चा यह भी है कि जब राजस्थान में भाजपा और पंजाब में भाजपा-अकाली दल की सरकारी थी तब इस मामले में चुप्पी क्यों साधी गई? एक सवाल यह भी है कि कहीं यह निकाय चुनाव की तैयारी तो नहीं? खैर, सवाल उठते रहेंगे। उठने भी चाहिए। लेकिन इस तरह के गंभीर मसले में सियासत तो कतई नहीं होनी चाहिए। और हां, इसको व्यक्तिगत लाभ या दलगत लाभ-हानि के चश्मे से भी देखना नहीं चाहिए।
बहरहाल, मुहिम अच्छी है। देर सवेर किसी को तो पहल करनी ही होगी । आमजन के स्वास्थ्य से जुड़ी यह मुहिम स्वागत योग्य है। उम्मीद करनी चाहिए यह मुहिम पूर्व के आंदोलनों से अलग होगी और बिना किसी राजनीति के मुकाम तक पहुंचेगी। और अगर यह मुहिम भी पूर्व के अनुभवों से आगे नहीं बढ़ी तो कोई बड़ी बात नहीं जनजागरणों की एेसी मुहिमों से जन की सहभागिता ही गायब हो जाए?
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगागर संस्करण में 11 जून 19 के अंक में प्रकाशित।
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