पत्रिका तत्काल
शहर की लोगों की गणेश महोत्सव की खुमारी ठीक से उतरी भी नहीं थी कि सोमवार को दो बड़ी वारदातों से शहर सहम गया। पहली वारदात में लालखदान रेलवे फाटक के पास एक अधेड़ की सरेराह गोली मारकर हत्या कर दी गर्इ जबकि दूसरी वारदात में शहर के व्यस्तम इलाके तेलीपारा में अपने घर के बाहर गणेश विसर्जन की झांकी देख रही एक महिला की तलवार मारकर नृशंस हत्या कर दी गर्इ। दोनों ही वारदातों के पीछे जो कारण सामने आ रहे हैं, उनमें एक प्रमुख कारण पुलिस की उदासीनता भी माना जा रहा है। लालखदान में लम्बे समय से थाने की मांग की जा रही है, क्योंकि यहां बाहरी लोगों की बसावट होने के कारण आपराधिक गतिविधियों की आशंका ज्यादा रहती है। तेलीपारा में महिला की हत्या के बाद पुलिस पर इस बात को लेकर अंगुली उठार्इ जा रही है कि उसने इस मामले में लगातार मिल रही शिकायतों को नजरअंदाज किया।
बहरहाल, दोनों की मामलों में पुलिस आरोपियों की सरगर्मी से तलाश कर रही है, लेकिन एक ही दिन हुर्इ इन दोनों वारदातों से इतना तो तय है कि पुलिस अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन भली भांति से करती तो शायद दो जिंदगियों को यूं सरेराह शांत नहीं किया जाता। देखा गया है कि रिकॉर्ड दुरुस्त रखने के चक्कर में पुलिस अक्सर छोटी-मोटी घटनाओं को गंभीरता से नहीं लेती और थाने में आने वाले परिवादियों को ऐसे ही टरका दिया जाता है जबकि इन घटनाओं में से ही कुछ कालांतर में बड़े हादसे में तब्दील हो जाती हैं। पुलिस को इस प्रकार की वारदातों को हल्के में कतर्इ नहीं लेना चाहिए। उसे प्रकार की वारदातों से न केवल सबक लेना चाहिए बल्कि चुनौती मानकर काम करना चाहिए। तभी तो वह थानों में आने वाले परिवादियों की भावनाओं को समझ कर उनके साथ न्याय कर पाएगी। पीडि़तों की शिकायतों का निराकरण समय पर पाएगी। शिकायतों पर शुरुआती दौर में अगर गंभीरता नहीं बरती गई तो अपराधी पुलिस की उदासीनता का फायदा उठाकर आपराधिक वारदातों को इसी प्रकार अंजाम देते रहेंगे।
साभार : बिलासपुर पत्रिका के 13 सितम्बर 11 के अंक में प्रकाशित।
शहर की लोगों की गणेश महोत्सव की खुमारी ठीक से उतरी भी नहीं थी कि सोमवार को दो बड़ी वारदातों से शहर सहम गया। पहली वारदात में लालखदान रेलवे फाटक के पास एक अधेड़ की सरेराह गोली मारकर हत्या कर दी गर्इ जबकि दूसरी वारदात में शहर के व्यस्तम इलाके तेलीपारा में अपने घर के बाहर गणेश विसर्जन की झांकी देख रही एक महिला की तलवार मारकर नृशंस हत्या कर दी गर्इ। दोनों ही वारदातों के पीछे जो कारण सामने आ रहे हैं, उनमें एक प्रमुख कारण पुलिस की उदासीनता भी माना जा रहा है। लालखदान में लम्बे समय से थाने की मांग की जा रही है, क्योंकि यहां बाहरी लोगों की बसावट होने के कारण आपराधिक गतिविधियों की आशंका ज्यादा रहती है। तेलीपारा में महिला की हत्या के बाद पुलिस पर इस बात को लेकर अंगुली उठार्इ जा रही है कि उसने इस मामले में लगातार मिल रही शिकायतों को नजरअंदाज किया।
बहरहाल, दोनों की मामलों में पुलिस आरोपियों की सरगर्मी से तलाश कर रही है, लेकिन एक ही दिन हुर्इ इन दोनों वारदातों से इतना तो तय है कि पुलिस अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन भली भांति से करती तो शायद दो जिंदगियों को यूं सरेराह शांत नहीं किया जाता। देखा गया है कि रिकॉर्ड दुरुस्त रखने के चक्कर में पुलिस अक्सर छोटी-मोटी घटनाओं को गंभीरता से नहीं लेती और थाने में आने वाले परिवादियों को ऐसे ही टरका दिया जाता है जबकि इन घटनाओं में से ही कुछ कालांतर में बड़े हादसे में तब्दील हो जाती हैं। पुलिस को इस प्रकार की वारदातों को हल्के में कतर्इ नहीं लेना चाहिए। उसे प्रकार की वारदातों से न केवल सबक लेना चाहिए बल्कि चुनौती मानकर काम करना चाहिए। तभी तो वह थानों में आने वाले परिवादियों की भावनाओं को समझ कर उनके साथ न्याय कर पाएगी। पीडि़तों की शिकायतों का निराकरण समय पर पाएगी। शिकायतों पर शुरुआती दौर में अगर गंभीरता नहीं बरती गई तो अपराधी पुलिस की उदासीनता का फायदा उठाकर आपराधिक वारदातों को इसी प्रकार अंजाम देते रहेंगे।
साभार : बिलासपुर पत्रिका के 13 सितम्बर 11 के अंक में प्रकाशित।
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