टिप्पणी
शहर की बदहाली से परेशान और ठप व अधूरे कार्यों से हलकान शहरवासियों के लिए यह खबर किसी अजूबे से कम नहीं है। खबर ही ऐसी है कि आमजन का चौंकना भी लाजिमी है। नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग के एक आदेश से लोग यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि वो खुशी मनाएं या अपना सिर पीटें। आदेश यह है कि ग्राम सुराज अभियान की तर्ज पर प्रदेश भर में १८ से २४ दिसम्बर तक शहर सुराज अभियान चलाया जाएगा। इससे पहले अभियान के तहत १९ से ३० सितम्बर तक प्रत्येक वार्ड में जन समस्या निवारण शिविर लगाए जाएंगे। बताया जा रहा है कि इन शिविरों में लोगों से समस्याएं पूछी जाएंगी। इनमें कुछ का निराकरण हाथोहाथ तो शेष समस्याओं का अभियान के दौरान होगा। बुनियादी सुविधाओं को तरसते न्यायधानी के लोगों के यह खबर बेहद महत्त्वपूर्ण इसलिए भी है कि जिस समस्या को लेकर वे परेशान हैं, उसको जानने तथा निराकरण करने प्रशासनिक अमला उनके वार्ड तक आएगा। लेकिन उनके जेहन में कुछ सवाल भी हैं। मसलन, पीड़ित लोग खुद निगम कार्यालय जाकर समस्या बता रहे हैं। सड़कों के लिए अनशन कर रहे हैं। आंदोलन कर रहे हैं। जाम लगा रहे हैं। अन्नागिरी दिखाते हुए मरम्मत का काम भी खुद ही कर रहे हैं। ज्ञापन दे रहे हैं। इतना कुछ करने के बावजूद उनकी मांगों पर गौर नहीं हो रहा है। समस्याएं यथावत हैं, तो फिर वार्डों में जाकर समस्याएं चिन्हित करने से उनका निराकरण कैसे होगा? अभियान चलाने से क्या फायदा जब वही निगम, वही अमला, वही कर्मचारी और वही अफसर लोगों से दो-चार होंगे, उनकी समस्याएं जानेंगे।
निगम के जिन अधिकारियों एवं कर्मचारियों को शहर की बेबसी एवं बदहाली पर तरस नहीं आ रहा है, क्या गारंटी कि वे अभियान के दौरान कोई चमत्कार दिखा देंगे। इस बात की भी उम्मीद कम ही है कि समस्याओं के निराकरण में किसी तरह का राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होगा। पीड़ितों को अब तक आश्वासनों का लॉलीपॉप देने वाले अधिकारी-कर्मचारी आखिर किस मुंह से उनकी समस्याएं जानेंगे। सियासत के भंवर में फंसे तथा कदम-कदम पर उपेक्षित शहरवासियों की हालत 'भेड़िया आया, भेड़िया आया' वाली कहानी जैसी हो गई है। वादों एवं विकास के नाम पर उनके साथ अक्सर छलावा ही होता रहा है। ऐसे में वे 'राहतभरी' खबर को भी शंका की नजर से देखते हैं।
बहरहाल, इस खुशखबर का दूसरा पहलू भी है। समस्याओं के निराकरण के लिए शहर सुराज अभियान चलाने का निर्णय स्वागत योग्य है। उसकी कार्ययोजना अच्छी है। लेकिन शर्त इतनी सी है कि आम आदमी से जुडे़ इस अभियान में औपचारिकता कतई नहीं हो। राजनीतिक हस्तक्षेप, राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता या राजनीतिक पूर्वाग्रह जैसी बात भी सामने नहीं आनी चाहिए। उम्मीद की जानी चाहिए कि जिस सोच के साथ अभियान की परिकल्पना की गई है, उसी सोच के साथ आम जन के काम भी होंगे। समस्याओं का निराकरण करने में ईमानदारी हो, पारदर्शिता हो तथा किसी प्रकार के भेदभाव की गुंजाइश नहीं हो, तभी ऐसे अभियानों की सार्थकता है, वरना यह भी लोकप्रियता बटोरने के बहाने जैसा ही होगा। कहने की जरूरत नहीं है क्योंकि जनता कई अभियानों का हश्र पहले भी देख चुकी है।
साभार : बिलासपुर पत्रिका के 18 सितम्बर 11 के अंक में प्रकाशित
शहर की बदहाली से परेशान और ठप व अधूरे कार्यों से हलकान शहरवासियों के लिए यह खबर किसी अजूबे से कम नहीं है। खबर ही ऐसी है कि आमजन का चौंकना भी लाजिमी है। नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग के एक आदेश से लोग यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि वो खुशी मनाएं या अपना सिर पीटें। आदेश यह है कि ग्राम सुराज अभियान की तर्ज पर प्रदेश भर में १८ से २४ दिसम्बर तक शहर सुराज अभियान चलाया जाएगा। इससे पहले अभियान के तहत १९ से ३० सितम्बर तक प्रत्येक वार्ड में जन समस्या निवारण शिविर लगाए जाएंगे। बताया जा रहा है कि इन शिविरों में लोगों से समस्याएं पूछी जाएंगी। इनमें कुछ का निराकरण हाथोहाथ तो शेष समस्याओं का अभियान के दौरान होगा। बुनियादी सुविधाओं को तरसते न्यायधानी के लोगों के यह खबर बेहद महत्त्वपूर्ण इसलिए भी है कि जिस समस्या को लेकर वे परेशान हैं, उसको जानने तथा निराकरण करने प्रशासनिक अमला उनके वार्ड तक आएगा। लेकिन उनके जेहन में कुछ सवाल भी हैं। मसलन, पीड़ित लोग खुद निगम कार्यालय जाकर समस्या बता रहे हैं। सड़कों के लिए अनशन कर रहे हैं। आंदोलन कर रहे हैं। जाम लगा रहे हैं। अन्नागिरी दिखाते हुए मरम्मत का काम भी खुद ही कर रहे हैं। ज्ञापन दे रहे हैं। इतना कुछ करने के बावजूद उनकी मांगों पर गौर नहीं हो रहा है। समस्याएं यथावत हैं, तो फिर वार्डों में जाकर समस्याएं चिन्हित करने से उनका निराकरण कैसे होगा? अभियान चलाने से क्या फायदा जब वही निगम, वही अमला, वही कर्मचारी और वही अफसर लोगों से दो-चार होंगे, उनकी समस्याएं जानेंगे।
निगम के जिन अधिकारियों एवं कर्मचारियों को शहर की बेबसी एवं बदहाली पर तरस नहीं आ रहा है, क्या गारंटी कि वे अभियान के दौरान कोई चमत्कार दिखा देंगे। इस बात की भी उम्मीद कम ही है कि समस्याओं के निराकरण में किसी तरह का राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होगा। पीड़ितों को अब तक आश्वासनों का लॉलीपॉप देने वाले अधिकारी-कर्मचारी आखिर किस मुंह से उनकी समस्याएं जानेंगे। सियासत के भंवर में फंसे तथा कदम-कदम पर उपेक्षित शहरवासियों की हालत 'भेड़िया आया, भेड़िया आया' वाली कहानी जैसी हो गई है। वादों एवं विकास के नाम पर उनके साथ अक्सर छलावा ही होता रहा है। ऐसे में वे 'राहतभरी' खबर को भी शंका की नजर से देखते हैं।
बहरहाल, इस खुशखबर का दूसरा पहलू भी है। समस्याओं के निराकरण के लिए शहर सुराज अभियान चलाने का निर्णय स्वागत योग्य है। उसकी कार्ययोजना अच्छी है। लेकिन शर्त इतनी सी है कि आम आदमी से जुडे़ इस अभियान में औपचारिकता कतई नहीं हो। राजनीतिक हस्तक्षेप, राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता या राजनीतिक पूर्वाग्रह जैसी बात भी सामने नहीं आनी चाहिए। उम्मीद की जानी चाहिए कि जिस सोच के साथ अभियान की परिकल्पना की गई है, उसी सोच के साथ आम जन के काम भी होंगे। समस्याओं का निराकरण करने में ईमानदारी हो, पारदर्शिता हो तथा किसी प्रकार के भेदभाव की गुंजाइश नहीं हो, तभी ऐसे अभियानों की सार्थकता है, वरना यह भी लोकप्रियता बटोरने के बहाने जैसा ही होगा। कहने की जरूरत नहीं है क्योंकि जनता कई अभियानों का हश्र पहले भी देख चुकी है।
साभार : बिलासपुर पत्रिका के 18 सितम्बर 11 के अंक में प्रकाशित
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