खरी-खरी
हम बिलासपुर के लोग बेहद अजीब हैं। हमारा स्वभाव, हमारी प्रकृति और व्यवहार, सब कुछ अजूबा है। अनूठा है। हर कोई हमें सीधा समझता है। वैसे हम हैं भी सीधे। इतने सीधे कि चाहे इधर का उधर हो जाए। कुछ बोलते ही नहीं है। सहनशीलता देखिए... सड़कों पर बने गड्ढ़ों में गिरेंगे। पैदल चलते भी हिचकोले खाएंगे। धूल फांकेंगे। बीमार हो जाएंगे। अस्पताल चले जाएंगे, लेकिन बोलेंगे नहीं। हमारी खासियतों एवं खूबियों की बानगी के तो कहने ही क्या...हम सरल हैं। सहज हैं। सहनशील हैं। धैर्यवान हैं। आशावान हैं। सपने देखते हैं। उम्मीदें पालते हैं। बाद में भूल जाते हैं। मगर बोलेंगे नहीं।
धार्मिकता ऐसी कि...चंदा उगाहेंगे। न देने वालों को चमकाएंगे। पंडाल लगाएंगे। सड़कें घेरेंगे। रास्ते रोकेंगे। अतिक्रमण करेंगे। रोज झांकी सजाएंगे। फिल्मी गीत बजाएंगे। शोरगुल करेंगे। देर रात तक सड़कों पर नाचेंगे। जाम लगाएंगे। गुस्सा भी ऐसा कि....हादसों से हिलेंगे नहीं। सबक इनसे लेंगे नहीं। कुछ देर चिल्लाएंगे। कानून तोड़ेंगे। वाहनों को फोडे़ंगे। पत्थर फेंकेंगे। आगजनी करेंगे। खुद पर मुकदमे दर्ज करवाएंगे। फिर चुप बैठ जाएंगे। एकदम खामोश। बाद में कुछ बोलेंगे ही नहीं। हाथ इतना खुला है कि...जन्मदिन मनाएंगे, झूमेंगे। नाचेंगे। पानी की तरह पैसा बहाएंगे। फिजूलखर्च करेंगे। पटाखे फोड़ेंगे। पोस्टर लगाएंगे। बैनर टांगेंगे। दीवारें रंगेंगे। शहर बदरंग करेंगे।
जागरुकता की तो मिसाल ही क्या दें, क्योंकि...नियमों को तोड़ेंगे, वाहनों पर फर्राटे से दौडेंगे। हेलमेट लगाएंगे नहीं। तेज हार्न बजाएंगे। मनमर्जी की नम्बर प्लेट लगवाएंगे। पार्किंग व्यवस्था को मानेंगे नहीं। नियमों की बात जानेंगे नहीं। बेवजह बिजली जलाएंगे। पानी सड़कों पर बहाएंगे।
हमारे प्रतिनिधि तो.... दावे करते हैं। आश्वासन देते हैं। वादों में भरमाते हैं। हमें बहलाते हैं। मना कभी करते नहीं। काम कुछ करते नहीं। शहर से ज्यादा खुद की चिंता है। दिन इसी उधेड़बुन में बीतता है। देखेंगे सब पर बताएंगे नहीं। सच जानकार भी जुबां हिलाएंगे नहीं। जनता से दूर हैं। मुद्दों से बेखबर है।
और हमारे सेवक... दिशा-निर्देश जारी करेंगे। कागजी आंकड़ों में खेलेंगे। घोटालों का घालमेल है। भ्रष्टों से तालमेल है। बंधी आंखों पर पट्टी है। पी इसी बात की घुट्टी है। नियम रोज बनाएंगे। काम नहीं कराएंगे। ईमानदारी से काम बनता नहीं। सुविधा शुल्क से काम रुकता नहीं। लगती रोज फटकार है। फिर भी आदत से लाचार हैं। वसूली थमती नहीं है। राहत मिलती नहीं है। शहर परेशान है। हर आमोखास हलकान है। रास्ते तंगहाल है। सफाई बदहाल है।
तभी तो यहां...सियासत का खेल है। पक्ष-विपक्ष में मेल है। फर्जीवाड़े की भरमार है। सर्जरी की दरकार है। कदम-कदम पर भ्रष्टाचार है। नींद में सरकार है। अपराधियों से प्यार है। कुछ भी करो आजादी है। ना नियम है ना पाबंदी है। पैसे की बर्बादी है। बात-बात पर चंदा है। मोटी कमाई का जो धंधा है। बदरंग शहर है। हादसों की डगर है। बातें और बयान हैं। समस्याओं का नहीं समाधान हैं। बयानों का शोर है। बदहाली का दौर है। आदमी परेशान चहुंओर है। उम्मीद का दिखता नहीं छोर है। बदइंतजामियों का जोर है। फिर भी हम कुछ बोलते नहीं...। क्योंकि सहन कर लेंगे, उम्मीद रखेंगे। भरोसा कर लेंगे। दूसरों के भरोसे रहेंगे। खुद कुछ नहीं करेंगे। बात हमारी कोई मानता नहीं। गांधीगिरी की भाषा यहां कोई जानता नहीं। दूरगामी असर को हम नहीं आंकते। जनप्रतिनिधियों को भी नहीं जांचते। उनके बहकावे में आ जाएंगे। वादों से बहल जाएंगे। सब सह लेंगे। सोए रहेंगे। मगर बोलेंगे कुछ नहीं...।
बहुत हो चुका। अब तो इस चुप्पी को तोड़िए। कुछ तो बोलिए... कुछ तो बोलिए...। भाग्य का साथ छोड़िए। कर्म से नाता जोडि़ए। शुरुआत आज से कीजिए। मजा आएगा कितना फिर देखिए। कुछ तो बोलिए... कुछ तो बोलिए...।
साभार : बिलासपुर पत्रिका के 26 जनवरी 12 के अंक में प्रकाशित।
No comments:
Post a Comment