भले ही समस्याओं का निराकरण हो या ना हो लेकिन वैशालीनगर विधायक भजनसिंह
निरंकारी इससे कोई सरोकार नहीं रखते हैं। वे जनसमस्याओं के निराकरण के लिए
लगातार चिटि्ठयां लिखते रहते हैं। कभी जिला प्रशासन को तो कभी राज्य सरकार
को। हाल ही में उन्होंने भिलाई निगम आयुक्त को चिट्ठी लिखी है। चिट्ठी
में उन्होंने जिस मामले को उठाया है, वह वाकई आम आदमी से जुड़ा है और समय की
मांग भी है। चिट्ठी में उन्होंने निगम आयुक्त को अवगत कराया है किभिलाई
निगम क्षेत्र में भवन निर्माण के लिए अनुमति लेने की प्रकिया बेहद जटिल है।
इससे लोगों को परेशानी होती है। जब तक अनुमति मिलती है, तब तक निर्माण
कार्य ही पूर्ण हो जाता है। ऐसे में इस प्रक्रिया का सरलीकरण किया जाना
बेहद जरूरी है। इसी पत्र में विधायक ने कुछ गंभीर बातें भी कही हैं।
उन्होंने कहा कि निगम क्षेत्र में अवैध कब्जों एवं अवैध निर्माण की बाढ़ आई
हुई है और इन पर निगम प्रशासन का कोई नियंत्रण नहीं है। विधायक यहीं तक
नहीं रुके, उन्होंने इसके लिए अधिकारियों को कठघरे में खड़ा किया है। अवैध
निर्माण के लिए उन्होंने निगम के अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराते हुए
आयुक्त से इन पर शिकंजा कसने की मांग भी की है। खैर, भवन निर्माण की अनुमति
प्राप्त करने की प्रक्रिया जटिल होना तो अपने आप में बड़ी समस्या है ही
लेकिन अधिकारियों की भूमिका को लेकर जो सवाल उठाए गए हैं, वे वाकई ही गंभीर
हैं और सोचने पर मजबूर करते हैं। कोई सामान्य या अदना सा आदमी अगर यही
आरोप लगाता तो हो सकता है, उसे अनसुना कर दिया जाता लेकिन लम्बा राजनीतिक
अनुभव तथा जनप्रतिनिधि होने के नाते निरंकारी की बातों में दम नजर आता है।
उनके आरोप सच्चाई के नजदीक इसलिए भी दिखाई देते हैं, क्योंकि निगम और उसके
अधिकारी उनके लिए अजनबी नहीं हैं। हालांकि कांग्रेसी महापौर वाले निगम में
आयुक्त को चिट्ठी लिखना ही अपने आप में बड़ी बात है। राजनीतिक हलकों में इस
चिट्ठी के कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं, फिर भी आरोप तो आरोप ही हैं।
दरअसल, निगम क्षेत्र में अवैध कब्जे व अवैध निर्माण तो गंभीर विषय है ही,
इनके अलावा भी बहुत सी ऐसी समस्याएं हैं, जो लम्बे समय से निराकरण की बाट
जोह रही हैं। इधर निगम अधिकारियों का हाल यह है कि वे समस्याओं को लेकर जरा
सी भी गंभीरता नहीं दिखाते। अपने आप से तो उनको कोई काम कभी सूझता ही नहीं
है। वैसे अधिकारियों की इस तरह की उदासीनता एवं मनमर्जी कमोबेश हर सरकारी
विभाग में दिखाई दे जाएगी। सरकारी कार्यालयों के कामकाज का ढर्रा ही ऐसा है
कि बिना सेवा शुल्क दिए तो कोई काम होता ही नहीं है। आलम यह है कि
छोटे-छोटे कामों के लिए भी भेंट पूजा करनी पड़ती है। निगम के तो हाल और भी
बुरे हैं। नल कनेक्शन जैसी बुनियादी सुविधा पाने के लिए भी अधिकारियों का
मुंह ताकना पड़ता है। बहरहाल, निगम आयुक्त को विधायक की चिट्ठी को गंभीरता
से लेने की जरूरत है। अगर अधिकारियों के के संरक्षण (जैसा कि विधायक ने
आरोप लगाया है) में अवैध कब्जे या अवैध निर्माण इसी प्रकार होते रहे तो फिर
निगम प्रशासन के होने या न होने में कोई खास फर्क नहीं रह जाता।
साभार- पत्रिका छत्तीसगढ़ के 22 सितम्बर 12 के अंक में प्रकाशित।
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