Friday, December 14, 2012

अब तो कुछ कीजिए

 टिप्पणी 

फोरलेन पर गुरुवार को फिर एक और हादसा हो गया। एक महिला की मौत हो गई। साथ में दो युवतियां भी घायल हो गई। इस हादसे ने किसी की हंसती खेलती जिंदगी में कोहराम मचा दिया। जिंदगी भर उसको यह दर्द सालता रहेगा। लेकिन भिलाई की यातायात पुलिस के लिए तो यह रोजमर्रा की बात है। वह इस प्रकार के हादसों की अभ्यस्त हो चुकी है। उसको इस प्रकार के हादसे न तो डराते हैं और ना ही वह इनसे कोई सबक लेती है। भले ही लोग यातायात नियमों का मखौल उड़ाएं। अपनी मनमर्जी से वाहन चलाएं। रोज अकाल मौत के शिकार हों, लेकिन यातायात पुलिस को इससे कोई सरोकार नहीं है। यातायात पुलिस की यह कार्यप्रणाली न केवल चौंकाने वाली बल्कि चिंतनीय भी है। वह न तो हादसों से कोई सबक लेती है और ना ही कार्यप्रणाली में कोई सुधार होता है। लगातार हादसे होने के बाद भी यातायात पुलिस की नींद कभी टूटती ही नहीं है। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि फोरलेन के अलावा दूसरी जगह यातायात पुलिसकर्मी नजर क्यों नहीं आते। पता नहीं
क्यों उनको शहर की अंदरूनी सड़कों पर यातायात नजर नहीं आता है। उनकी मुस्तैदी सिर्फ हाइवे पर ही दिखती है। और इस जरूरत से ज्यादा मुस्तैदी के कारण भी सबको पता हैं।
बहरहाल, हादसों से तनिक भी विचलित नहीं होने वालों पर पीडि़तों का रुदन असर डाल पाएगा। उनके जमीर को झाकझाोर पाएगा, इसमें संशय है। लम्बे समय से जड़ें जमाए बैठे पुलिसकर्मी एवं अधिकारी क्या जनहित में फैसले लेने ही हिम्मत जुटा पाएंगे। बेलगाम यातायात पर नकेल ना कसना यातायात पुलिस की नाकामी को ही उजागर करता है। और यह नाकामी तभी दूर को सकती है जब कारगर एवं प्रभावी कार्रवाई हो। हालात बद से बदतर होने को हैं और यातायात पुलिस को अब भी आंकड़ों को दुरुस्त करने तथा राजस्व बढ़ाने की कार्रवाई से ही फुरसत नहीं है। हर तरफ सुविधा शुल्क का ही शोर है। आखिर कब तक लोग यूं ही अकाल मौत मरते रहेंगे। बहुत हो चुका। कुछ तो तरस खाइए। अब तो कुछ कीजिए। ज्यादा कुछ नहीं तो खुद को यातायात पुलिसकर्मी की बजाय इंसान समझाने की हिम्मत जुटा लो। शायद उससे कुछ सद्बुद्धि आ जाए और शहर का भला हो जाए। यूं ही लोग अकाल मौत के शिकार तो नहीं होंगे।



 साभार : पत्रिका भिलाई के 14 दिसम्बर 12  के अंक में प्रकाशित। 

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