बस यूं ही
आंखों की जिंदगी में अहमियत इतनी है कि इनके बिना किसी तरह की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। आंख है तभी तो दुनिया रोशन है, रंगीन है। आंखों के बिना तो घुप अंधेरा है। आप देख ही नहीं पाएंगे कि दुनिया कैसी है और उसमें क्या हो रहा है। आंखों के फिल्मी गीतों से संबंध को लेकर संभवत: यह आखिरी कड़ी है। इसके बाद इस बिल के संभावित परिणाम पर नजर डाली जाएगी। वैसे आज भी आंखों से संबंधित करीब तीन दर्जन गीत याद आ रहे हैं। बहुत चर्चित गीत है, यकीनन आपने भी सुना होगा और गुनगुनाया भी होगा। 'तुम्हारी नजर क्यों खफा हो गई, खता बख्श दो गर खता हो गई...।' अब कोई नजरों से खफा होने के बारे में पूछेगा ही नहीं। ऐसे में खता होने की गुंजाइश भी कम हो जाएगी। लेकिन संकट यह भी है कि अब नजर खफा है या नहीं इसका पता लगाना भी टेढ़ी खीर होगा। अब तो नजर जैसी है, वैसी ही रहे तो गनीमत है। वैसे अपुन को आंखों पर लिखे कई मुहावरे व शेरो-शायरियां भी याद हैं लेकिन फिलहाल चर्चा गीतों की ही होगी। यह गीत देखिए 'नैनों में सपना, सपनों में सजना...' इसमें जरूर बचाव का रास्ता दिखाई दे रहा है। आखिर देखना या घूरना ही तो अपराध है। किसी के सपने देखना अपराध थोड़े ही है। वह चाहे जागती आंखों से देखे या फिर सोते हुए, यह उसकी मर्जी। हां भविष्य में सपनों पर भी रोक लग जाए तो कह नहीं सकता लेकिन फिलहाल इस गीत को सुनने या गुनगुनाने में मेरे कोई खतरा नजर नहीं आता। शायद फिल्म वालों को भी नहीं आता। तभी तो यही गीत पहले जितेन्द्र पर फिल्माया गया और और अब नए कलेवर में अजय देवगन पर। लेकिन इस प्रकार के बिना खतरे वाले गीत कम ही हैं। 'तेरे दिल ने न जाने क्या कहा, तेरे नैन मेरे नैन देखते रहे...।' अब यहां तो फंसने के पूरे-पूरे आसार बन रहे हैं। अब दिल चाहे कुछ भी कहे लेकिन नैन आपस में देखने से तौबा कर लेंगे।
खैर, बिल, बहस और बवाल को लेकर यह छठी कड़ी हैं और लगातार आंखों पर ही लिखा जा रहा है। लेकिन लेखन को लेकर कोई अपुन पर किसी तरह का 'वाद 'चस्पा ना करे। क्योंकि अपुन को न वाद पसंद है और ना ही विवाद। अपुन को तो बस निर्विवाद बना रहना चाहते हैं। वैसे ईमानदारी की बात तो यह है कि घूरने एवं ताकने को अपुन भी बुरा मानते हैं, लेकिन इसका पैमाना क्या होगा, बहस इसी बात को लेकर है। मतलब इसकी आड़ में इसका दुरुपयोग होने की आशंका रहेगी। अपुन उसी आशंका को आधार बनाकर लिख रहे हैं कि ऐसा हो जाएगा तो भी खतरा है। ऐसा भी नहीं है कि अपुन के लिखने से कानून या नियम तोडऩे वाला रुक जाएगा। देश में कानून एवं नियम अक्सर टूटते रहते हैं। गाहे-बगाहे उनका दुरुपयोग होता रहता है। वैसे अपुन की फितरत नियम एवं कानून को मानने एवं उनका पालन करने की ही रही है। इसलिए कोई यह ना समझ ले कि मैं ऐसा करके नियम या कानून पर कोई टीका-टिप्पणी कर रहा हूं। सार यही है कि लेख लिखने के पीछे अपुन की नेक नियति पर किसी को किसी तरह का शक ना हो और ना ही कोई सवाल उठाए। अपुन सभी का बराबर सम्मान करते हैं। भले ही वह आधी दुनिया हो या पूरी। अपना उद्देश्य केवल और केवल हास-परिहास एवं मनोरंजन है। अपुन का लिखा किसी को दिल पर लग रहा है तो माफ करे। किसी को भूल से भी दिल पर नहीं लेना चाहिए। भागदौड़ एवं तनाव भरी जिंदगी में वैसे भी हंसने या मनोरंजन के लिए किसके पास वक्त है। अपुन ने तो हंसाने का एक अदना सा प्रयास किया है। हाथ की पांचों अंगुलियां ही बराबर नहीं होती है तो फिर मानसिकता एक होना तो संभव ही नहीं है। अपुन तो यही सोच कर लिख रहे हैं कि अपुन के लिखे से किसी को बुरा नहीं लगे। फिर भी बात मानसिकता वाली आती है, लिहाजा किसी को बुरी लग भी सकती है। फिर भी पुरजोर शब्दों में आग्रह है कि , इस विषय को बेहद हल्के-फुल्के एवं मनोरंजन करने वाले अंदाज में ही लें, पढ़कर गंभीर तो कतई ना हों। अफसोस जताना है या नहीं यह अपुन आप सब के विवेक पर छोड़ते हैं।
अब, आंखों और बिल के बीच अपुन की बात भी तो रखनी थी ना। लेकिन बात रखने का अंदाज बड़ा हो गया और आंखों वाले गीत फिर छूट गए। चलो कोई नहीं। जब इतना ही झेल लिया तो फिर इतना तो हक बनता ही है। वैसे भी दो चार लाइन ज्यादा पढऩे से कौन सा फर्क पड़ जाएगा। एक बात और है, लिखना भी आपके मूड पर निर्भर रहता है। जिस दिन जैसा मूड होता है वह आपके विचारों में झलक जाता है। अब यह मत सोच लेना कि अपुन का मूड आज कैसा था जो आंखों से हटकर लिख दिया। सच बताऊं तो आज लिखने का मूड ही नहीं था। मतलब गंभीरता नहीं थी। आधे-अधूरे मन से ही शुरुआत की, वह भी काफी देर से। अब कड़ी तो पूरी करनी थी ना। सौ लगे रहे रबड़ की तरह बढ़ाने में। वैसे मूड मजाकिया भी नहीं था। बिलकुल बीच का सा था। अब बीच में रहने से नुकसान की आशंका ज्यादा रहती है। लगता है कि आज की कड़ी पूरी होने को है। जाते-जाते एक गीत याद आ रहा है। 'मेरे नैना, सावन भादो, फिर भी मेरा मन प्यासा...।' अपुन के पसंदीदा गायक किशोर कुमार का गाया यह गीत मौजूदा माहौल में जरूर प्रासंगिक लगता है। क्योंकि इस गीत के बोलों में अपुन को कोई खतरा नजर नहीं आता। ऐसे में यह गीत दुबारा चर्चा में आ जाए तो आश्चर्य नहीं करना चाहिए। जमाना रीमेक का है। हिम्मतवाला फिल्म का गीत आपके सामने है, जिसका जिक्र पूर्व में किया जा चुका हैं। तो आप भी नैन बंद करके सपने देखिए क्योंकि 'देखा एक ख्याब तो यह सिलसिले हुए, दूर तक निगाह में है गुल खिले हुए...' शायद आपको भी खिले हुए गुल नजर आ जाए। ...
क्रमश: