Monday, September 30, 2013

17 साल बाद


बस यूं ही


शीर्षक पढ़कर हो सकता है जेहन में कई तरह के ख्याल आए, दरअसल, यह सारी कवायद उस फोटो के लिए है, जो कल फेसबुक वॉल पर चस्पा की थी। फोटो के बारे में लिखने का विचार उस पर आए कमेंटस को पढ़कर आया। एक से बढ़कर एक कमेंट्स। मैंने हल्का सा उल्लेख भी किया था कि हर कमेंट्स किसी धरोहर से कम नहीं है और कमेंट्स के पीछे कोई ना कोई कहानी जुड़ी है। खैर, कमेंट्स आने का सिलसिला बदस्तूर जारी है, लेकिन आज थोड़ा फुरसत में था तो सोच लिया क्यों ना इस पर कुछ लिखा जाए...। वैसे कमेंट्स की कहानी भी कम रोचक नहीं है। कौन कैसे एवं किस अंदाज में सोचता है, इससे यह भी पता चलता है। किसी कमेंट्स को देखकर चेहरे पर मुस्कान आई तो किसी को देखकर अतीत जिंदा हो गया। कुछ तो ऐसे थे कि पढ़कर अकेला ही हंसने लगा। सबसे पहले बात हंसी वाले कमेंट्स से करता हूं..। झुंझुनू से लोकेन्द्र सिंह ने कहा 'दादा बटुआ दो तीन साल में बदल ही लिया करो। ' कुछ तरह का कमेंट्स श्रीगंगानगर के साथी संदीप शर्मा ने किया। वो लिखते हैं ' 17 साल से एक ही पर्स। बड़ी नाइंसाफी है। वैसे फोटो में 'कच्चा कला' लग रहे हो।' यकीन मानिए इन दोनों कमेंट्स को लिखते-लिखते हंसी छूट रही है। दोनों साथियों की पर्स के बारे में जिज्ञासा स्वभाविक है, जबकि हकीकत यह है कि पर्स समय के साथ बदलते रहे हैं। लेकिन उनमें कुछ कागजात और कुछ फोटो भी हैं, जो नया पर्स लेते ही सबसे पहले डाल लेता हूं। यह बात दीगर है कि बाद में विजिटिंग कार्ड वगैरह से पर्स मोटा हो जाता है और फोटो नेपथ्य में चली जाती है। कल वो सामने आई तो सोचा क्यों ना इसको फेसबुक पर सभी के साथ साझा कर लूं। बस यही सोचकर लगाई थी। वैसे पर्स 17 साल पुराना नहीं है। हंसी तो 'कच्चा कला' को लेकर भी है। कच्ची कली के बारे में तो सुना था। आज नया नामकरण हो गया। खैर, संदीप भाई का यह प्रयोगवादी नामकरण बेहद रोचक लगा। सर्वाधिक खुशी तो छात्र जीवन के साथियों के कमेंट्स को देखकर हुई, सचमुच अतीत जिंदा हो गया। कमेंट्स पढ़ते-पढ़ते फ्लेश बैक में चला गया।
बगड़ के राजसिंह जी राठौड़ लिखते हैं. 'तब तो हमारी याद जरूर आई होगी..।' इसके बाद बगड़ के साथी अजय कानोडिया कहते 'बगड़ के बिना महेन्द्र जी की स्टोरी अधूरी है।' इसके बाद बगड़ के ही अशोक राठौड़, जिनका ननिहाल मेरे गांव में है लिखते हैं 'वाह मामाश्री, पुरानी याद ताजा हो गई।' बगड़ के साथी संजय दाधीच कहते हैं 'द क्रिकेटर ऑफ पटवारी कॉलेज 1995-1999' इसी से मिलते जुलते कमेंट्स दो और साथियों के आए। बगड़ के भानजे और चिड़ावा के पास अडू्का गांव के रहने वाले और मेरे अजीज नीरज शेखावत ने दो बार कमेंट्स किया है। पहली बार उन्होंने लिखा 'दादोभाई आपका वो चैलेंज याद आ गया।' दूसरी बार कहा कि 'मेरे दादोभाई एक शानदार प्रतिभा के धनी, जो हमेशा से मेरे मार्गदर्शक रहे हैं। आई मिस यू महेन्द्र जी।' कुछ इसी अंदाज में एडवोकेट अर्जुनसिंह जी नरुका लिखते हैं 'यह फोटो देखकर आपकी पुरानी याद ताजा हो गई है' नरुका जी भी मूल रूप से चिड़ावा के पास बामनवास के रहने वाले हैं और हनुमानगढ़ जिले के पीलीबंगा कस्बे में वकालत के पेशे से जुड़े हुए हैं। वैसे तो आप सभी साथियों से फेसबुक और फोन के माध्यम से लगातार सम्पर्क में हूं लेकिन वो जमाना याद आ गया, जिसकी कल्पना मात्र से ही शरीर में रोमांच भर उठता है। वैसे बगड़ तो मेरे लिए वो जगह है जो मेरे जीवन का अभिन्न हिस्सा रहेगा। बगड़ के बारे में मैं अपने ब्लॉग http://khabarnavish.blogspot.in/2011/06/blog-post.html में पहले भी लिख चुका हूं।
पत्रकार साथी रमेश जी सरार्फ ने लिखा है.. 'फूल खिलता है, खिलकर बिखर जाता है, यादें रह जाती हैं लेकिन वक्त गुजर जाता है।' सचमुच वक्त का पता ही नहीं चलता। वह कितनी जल्दी गुजर जाता है। हम चाह कर भी न तो उसको रोक पाते हैं और ना ही उसकी रफ्तार धीमी कर पाते हैं। वक्त के आगे के हम सब बेबस हैं, लाचार हैं। उसके आगे कोई जोर नहीं चलता है। सिवाय पुरानी यादों को ताजा करने के। इसी तरह की भावना साथी राज जी बिजारणिया ने व्यक्त की। वे कहते हैं 'बचपन, जवानी, बुढापा गुजर जाएगा, यादगार के लिए सिर्फ फोटो ही रह जाएगा।'यकीनन यह फोटो ही हैं, जो हमारे हंसने और मुस्कुराने का माध्यम बन पाती हैं। उनको देखना और अतीत को याद करना कितना सुकून देता है, उसे शब्दों में बांधना मुश्किल है। इसके बाद भिलाई के साथी साहित्यकार शिवनाथ जी शुक्ला ने तो तीन शब्दों में गागर में सागर भर दिया। वे कहते हैं 'मनमोहक रंगरुट सा।' मनमोहक हूं या नहीं यह तो शुक्ला जी जानें लेकिन सेना मेंजाने की हसरत तो बचपन से ही थी। लेकिन उसी जोश एवं जज्बे के साथ पत्रकारिता के क्षेत्र में डटा हुआ हूं, लिहाजा रंगरुट से तुलना करना न्यायसंगत नजर आता है।
पत्रकार साथी सिकंदर पारीक लिखते हैं 'केरपुरा को होनहार टाबर।' सच में मुझे मेरे गांव पर गर्व है। http://khabarnavish.blogspot.in/2011/06/blog-post_16.html.मेरा गांव संभवत: .जिले का इकलौता गांव है जहां के लोग हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं। वैसे गांव का नाम केरपुरा नहीं केहरपुरा कलां है पारीक जी। मेरे ही गांव के बड़े भाई जो सेना में सूबेदार हैं राजेन्द्रसिंह जी कहते हैं ' भाई इस फोटो को तो मैं भी पहचान जाता बट अभी वाली फोटो काफी चेंजिंग हो गया, इसलिए नहीं पहचानता था।'अब देखिए, करीब दस दिन पहले ही राजेन्द्रसिंह जी मेरे से फेसबुक पर जुड़े लेकिन जुडऩे के बाद कहा कि वो मेरे को जानते नहीं हैं। बाद में परिचय देने पर जान गए थे। संभवत: उन्होंने तभी ऐसा लिखा। भिलाई के अमित सोनी 'स्मार्ट बॉय' की संज्ञा देते हैं तो फिजी की रेनुका जी जिज्ञाववश 'इज देट यू ब्रॉदर' पूछ बैठती हैं। झुंझुनू के अशोक जी शर्मा 'यंग मैन' से नवाजते हैं तो साथी रामनिवास सोनी जी 'कलरफुल दुनिया है जी' कहकर शायद श्वेत-श्याम फोटो लगाने पर उलहाना दे रहे हैं। फोटोग्राफर जो हैं। इसी प्रकार के हनुमानगढ़ के महेन्द्र चौधरी, श्रीगंगानगर के लक्ष्मीकांत शर्मा, हनुमानगढ़ के सुनील गिल्होत्रा, झुंझुनू के तरुण भारतीय, हनुमानगढ़ के तुषार लालवानी ने भी फोटो पर कमेंट्स किए हैं। मैं उन सबका भी आभारी हूं। बहरहाल, लाइक का आंकड़ा तो 60 से ऊपर पहुंच चुका हैं, उन सभी का भी तहेदिल से शुक्रिया। आखिर में एक बात और अगर उनका जिक्र नहीं किया तो जितने भी शादीशुदा साथी हैं वो बखूबी जानते हैं। मतलब मेरी धर्मपत्नी निर्मल राठौड़। उन्होंने भी अंग्रेजी में कुछ लिखा है। मेरे से ज्यादा पढ़ी लिखी जो ठहरीं।
आप सभी के स्नेह का मैं बेहद कायल हूं। मुझे आप सब के स्नेह पर फख्र है। आपका साथ मेरे लिए अनमोल है। पुन: सभी का धन्यवाद। दिल से आभार।

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