Saturday, December 16, 2017

इक बंजारा गाए-12

दिल है कि मानता नहीं
राजनीति में उम्र मायने नहीं रखती और इसमें आदमी कभी रिटायर भी नहीं होता। जैसे ही कोई चुनाव आने को होते हैं, लोग पिछला 'दर्दÓ भुलाकर नए सिरे से जुट जाते हैं। इस काम में बड़ा योगदान होता है शक्ति प्रदर्शन का, ताकि पार्टी के आकाओं को यह पता चल सके है कि अमुक आदमी का कितना बड़ा जनाधार है। खैर, कौन कितने पानी में है यह तो सबको पता ही होता है, फिर भी जोर आजमाइश जरूरी है। यह भी सभी जानते हैं कि शक्ति प्रदर्शन स्वयं स्फूर्त कितना होता है और कितना प्रायोजित? फिर भी टिकट के जुगाड़ के लिए यह सब करना पड़ता है। श्रीगंगानगर में भी राजनीति के पुराने खिलाड़ी चुनाव नजदीक देख फिर सक्रिय हो गए हैं। अब चुनाव लडऩे की इच्छा खुद की है, लेकिन यह बात सीधे न कहकर कार्यकताओं का आग्रह बताकर प्रचारित करवाई जा रही है। वाकई राजनीति में भी कई तरह के पापड़ बेलने होते हैं।
निर्दलीय का ही सहारा
नगर परिषद में सियासी घालमेल इस कदर है कि पार्टी का टिकट भी मायने नहीं रखता। मामला परिषद के एक वार्ड में हो रहे उप चुनाव का है। यहां कांग्रेस ने प्रत्याशी मैदान में नहीं उतारा। योग्य प्रत्याशी मिला नहीं है या यह चुनावी रणनीति का हिस्सा है, ये तो पार्टी पदाधिकारी ही बेहतर जानते हैं, लेकिन इसके कई कयास लगाए जा रहे हैं। उधर, भाजपा ने अपना प्रत्याशी जरूर घोषित किया है। विधानसभा चुनाव नजदीक होने के बावजूद कांग्रेस का बैकफुट पर आना राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है। राजनीतिक जानकार इस उप चुनाव को सभापति से जोड़कर भी देख रहे हैं, जो कि सर्वदलीय सभापति बने हुए हैं। वार्ड में एक जाति समुदाय के वोट ज्यादा होने तथा भाजपा द्वारा उसी समुदाय की महिला को टिकट देने के कारण कांग्रेस की रणनीति असफल हो गई। पार्टी अब निर्दलीय को समर्थन कर रही है। निर्दलीय भी उसी समुदाय से है। अब देखना है कि ऊंट किस करवट बैठता है?
केवल खानापूर्ति
श्रीगंगानगर में सफाई व्यवस्था संतोषजनक क्यों नहीं है? इसकी बड़ी वजह यह भी है कि जिम्मेदार लोग जो व्यवस्था बनाते हैं उसकी गंभीरता से पालना तो कतई नहीं होती। दिखावे के तौर पर हलचल जरूर होती है। ऐसा ही इन दिनों नगर परिषद कर रही है। परिषद के अधिकारी व जन प्रतिनिधि स्वच्छता को लेकर कार्यक्रम कर रहे हैं। अब मामला स्वच्छता से जुड़ा है तो उसके लिए धरातल पर काम भी करना होगा। सिर्फ जागरुकता विषयक कार्यक्रम से ही शहर साफ होता तो कब का हो चुका होता। हास्यास्पद हालात तो तब पैदा होते हैं जब स्वच्छता पर जोर दिया जाता है, लेकिन हकीकत को नजर अंदाज किया जाता है। मंगलवार को जहां स्वच्छता विषयक कार्यक्रम हुआ, उसी पार्क के आसपास नालियां ओवरफ्लो थीं, जबकि कचरा पात्र कचरे से अटे थे। ऐसे में यह कार्यक्रम महज औपचारिक ही नजर आते हैं।
प्रयोगशाला बना शहर
अक्सर प्रयोग वहां किए जाते हैं जहां परिणाम को लेकर कोई आश्वस्त नहीं होता। इसलिए बार-बार प्रयोग करके चैक किया जाता है ताकि बाद में कोई दिक्कत न आए। शहर में इन दिनों सीवरेज व पेयजल पाइप लाइन बिछाने का काम चल रहा है। इस काम की आड़ में शहर को प्रयोगशाला बना दिया गया है। एक ही रास्ते को कभी आड़ा तो कभी तिरछा खोद दिया जाता है। कभी एक तरफ से तो कभी दूसरी तरफ से। आमजन परेशान होता है तो होता रहे हैं, लेकिन प्रयोग लगातार जारी है। यह सब जानते हुए भी कि काम करने वाले योग्यता तो रखते हैं, लेकिन अनुभवहीन हैं। अब इन नौसिखियों ने हालात इस कदर खराब कर दिए हैं कि एक भी रास्ता पैदल चलने लायक नहीं बचा। इनके कामकाज एवं तौर-तरीकों से साफ लगता है कि इनको मनमर्जी से काम करने की छूट मिली हुई है। लगता नहीं कि कोई उनके काम को चैक करता है या समीक्षा करता है। इस चुप्पी के पीछे कोई रहस्य तो जरूर है।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 8 दिसम्बर 17 के अंक में प्रकाशित 

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