Saturday, December 16, 2017

इक बंजारा गाए-13

भलाई की भी मार्केटिंग !
दान और भलाई, कोई गुपचुप करता है तो कोई ढोल के साथ इनका प्रचार करता है। कम करके ज्यादा प्रचारित करने वालों की फेहरिस्त लंबी होती जा रही है। श्रीगंगानगर में भी प्रचार के भूखे कई लोग हैं। फिलवक्त एक संस्था भलाई कार्यों में जुटी है। इसे प्रचारित करने के लिए बाकायदा मीडिया मैनेजमेंट भी किया गया है। माह में बीस दिन से ज्यादा दिन तक भलाई की मार्केटिंग की जाती है। हाल ही में हुई 'घर' वापसी के बाद मुखिया जी के भलाई कार्यों का ढोल और बुलंद हो गया है। वैसे इस मार्केटिंग के पर्दे के पीछे का सच जानकारों की नजर में हैं। भलाई कार्यों में पैसा पल्ले से लग रहा है या सरकारी योजनाओं के चलते लिया जा रहा है, यह तो अप्रचारित विषय है, लेकिन सच यह भी है कि भलाई की मार्केटिंग में प्रचार करने तथा करवाने वाले दोनों ही पक्षों के हित जुड़े हैं, तभी तो गठजोड़ जारी है।
समय-समय की बात
खाकी में इन दिनों कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। शहर व जिले में लगातार हुई आपराधिक वारदातों ने सर्द मौसम में खाकी के अंदर गर्माहट पैदा कर रखी है। दूसरी गर्माहट एक थानाधिकारी के बदलने की भी। बड़ी मुद्दत के बाद इनको शहर में लाया गया था, लेकिन पता नहीं अंदरखाने क्या उठक पटक हुई कि थानेदार जी का न केवल थाना बदला बल्कि जिला ही बदल गया। महकमे में यह तबादला इन दिनों अच्छी खासी चर्चा का विषय बना हुआ है। लोग 'एक दिन के थानेदार जी' कह कर मजे ले रहे हैं। मामला किस्मत व पहुंच का भी है। शहर में ही एक ऐसे थानेदार जी भी हैं, जिनको हटाने का हिम्मत जिले के आला अधिकारी ही नहीं, रेंज के अधिकारी भी नहीं जुटा पा रहे हैं। खैर, सेटिंग बनने व बिगडऩे के ये दो जीते जागते उदाहरण हैं।
कौन सच्चा, कौन झूठा?
पिछले दिनों पड़ोसी प्रदेश पंजाब में श्रीगंगानगर इसे लगते इलाके में पुलिस चौकी का उद्घाटन हुआ। इस दौरान ग्रामीणों ने खुलेआम कहा कि नशा राजस्थान से आ रहा है। ग्रामीणों ने बाकायदा नशे के कारोबार के लिए साधुवाली व सादुलशहर का नाम भी बताया। यह भी संयोग है कि जिस दिन इस चौकी का उद्घाटन हुआ, उसी दिन श्रीगंगानगर में राजस्थान व पंजाब पुलिस के अधिकारी कानून की समीक्षा कर रहे थे और सब कुछ ठीक बता रहे थे। ऐसे में सवाल यह खदबदा रहा है कि पुलिस सच्ची है या वो ग्रामीण? यकीनन इस मामले में एक पक्ष तो झूठा है। नशे के कारोबार के रंग-ढंग देखने से तो यही प्रतीत होता है कि ग्रामीणों की बातों में दम ज्यादा है। पुलिस का क्या, उसने तो जब सब कुछ ठीक बताया था, उसी दिन एक युवक की गोली मारकर हत्या तक कर दी गई थी।
प्रधान जी को ग्रुप का खौफ
सोशल मीडिया के जितने फायदे हैं, उससे कम नुकसान भी नहीं हैं। वह भी तब जब सोशल मीडिया से जुडऩे वाले को तकनीक रूप से ज्यादा जानकारी नहीं हो। जानकारी का अभाव कभी-कभी मुसीबत भी खड़ी कर देता है। दरअसल, यहां जो भूमिका है वह एक शिक्षक संस्थान के प्रधान से संबंधित है। मामला थोड़ा पुराना जरूर है, लेकिन रोचक है। प्रधानजी विभाग के ही एक व्हाट्सएप गु्रप से जुड़े थे। एक दिन ग्रुप में उनसे कथित आपत्तिजनक वीडियो पोस्ट हो गया। हालांकि यह जांच का विषय है कि यह सब जानबूझकर हुआ या भूलवश, लेकिन मामला ऊपर तक पहुंच गया और आनन-फानन में प्रधान जी की सजा मुकर्रर कर दी गई। गाहे-बगाहे अनुशासन का पाठ पढ़ाने वाले प्रधान जी सोशल मीडिया के फेर में ऐसे फंसे कि अब तो ग्रुप का नाम ही उनको डराने लगा है।
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 राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 14 दिसंबर 17 के अंक में.प्रकाशित

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