Thursday, March 29, 2018

आप न जावै सासरे

बस यूं ही
कल नई दिल्ली में विधायकों के सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने चालीस से ज्यादा उम्र के कलक्टर को पिछड़े जिलों के विकास में बाधक बताया। प्रधानमंत्री का बयान आज कई समाचार पत्रों की सुर्खी भी बना है। यह बात क्यों कही गई? इसके मायने क्या हैं? यह तो प्रधानमंत्री ही जानें लेकिन इससे एक नई बहस जरूर खड़ी हो गई है। यही फार्मूला अगर नेताओं के संदर्भ में हो तो आधी से ज्यादा संसद खाली हो जाएगी। आईएएस/ आईपीएस तो फिर भी सेवानिवृत्त होते हैं लेकिन नेताआंे के रिटायरमेंट की कोई उम्र ही नहीं होती। विडम्बना देखिए प्रधानमंत्री चालीस पार के अफसरों को विकास में बाधा मान रहे हैं लेकिन सियासत में चालीस की उम्र कच्ची मानी जाती है। यहां तक कि राजनीति में चालीस साल का नेता युवा कहलाता है। राजनीति में साठ साल की आयु तो नेताओं की युवावस्था मानी जाती रही है।
बात जब युवाओं को मौका देने की, उनको आगे बढ़ाने की हो तो फिर राजनीति इससे अछूती क्यों? यह बहस राजनीति पर भी होनी चाहिए। नेताओं की उम्र भी तो तय हो। लेकिन इस विषय पर कोई बात नहीं करता। विशेषकर नेता नामक प्रजाति तो इस आयु वाले फैक्टर को भूल से भी जुबान तक नहीं लाती। ताउम्र तक सांसद या विधायक बने ही हसरत जिंदा रहती है। भले ही हाथ -पैर काम न करें। ठीक से बोल भी न पाएं लेकिन यह इच्छा सदाबहार रहती है।
आंकड़ों पर गौर करें तो आजादी से लेकर आज तक सांसदों की औसत आयु बढ़ ही रही है। पहली लोकसभा 1952 में सांसदों की औसत आयु 46.5 साल थी जो कि सोलहवीं लोकसभा (2014) में 56 साल हो गई। यह बात दीगर है कि 1952 में सांसदों की संख्या 489 थी जबकि वर्तमान में इनकी संख्या 545 है। यह भी एक तथ्य है कि बुजुर्गोँ के मामले में सोलहवीं लोकसभा दूसरी सबसे बुजुर्ग लोकसभा है। पहले नंबर पर पन्द्रहवीं लोकसभा आती है।
यह भी विडम्बना है कि युवाओं को देश की ताकत और देश का भविष्य बताया जाता है, इसके बावजूद युवाओं को नेता बनाने के प्रयास कम होते हैं। सोलहवीं लोकसभा में 543 सांसदों में से 253 सांसद ऐसे हैं, जिनकी उम्र 55 साल से ज्यादा है. प्रतिशत के हिसाब से यह कऱीब 47 फीसदी के आसपास है. इसी तरह 15वीं लोकसभा में 55 साल से अधिक उम्र के सांसदों की संख्या 43 प्रतिशत थी। इससे यह साबित होता है कि आम कर्मचारी व अफसर के सेवानिवृत्त होने की उम्र में नेताओं का कॅरियर परवान पर होता है। पचास फीसदी के करीब 55 साल से ऊपर होना यह दर्शाता है।
खैर, प्रधानमंत्री को कलक्टर की उम्र विकास में बाधक लगी तो लगे हाथ नेताओं की उम्र का फैसला भी हो ही जाना चाहिए। नहीं तो यह आप न जावै सासरै औरन की सीख देत.. वाली कहावत से ज्यादा कुछ नहीं है।

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