Friday, October 19, 2018

इक बंजारा गाए-50


श्रेय की लड़ाई
राजनीति में श्रेय की लड़ाई का खेल अलग ही होता है। श्रीगंगानगर में नगरपरिषद व यूआईटी के प्रतिनिधि भी इस राजनीति से अछूते नहीं हैं। सुखाडिय़ा सर्किल से मीरा मार्ग तक बनने वाली सडक़ को ले लीजिए। यह सडक़ कौन बना रहा है, क्यों बना रहा है। किसलिए बना रहा है। इसका उद्घाटन कब हुआ तथा किसने यह शुरू किया, यह सब जानते हैं। इसके बावजूद पीछे की तारीख लिखा एक शिलापट्ट रातोरात लगा दिया गया। बात यहीं तक सीमिति नहीं रही, इस शिलापट्ट पर जो तिथि अंकित की गई है वह उस दिन की है जब मुख्यमंत्री की गौरव यात्रा श्रीगंगानगर में थी। ऐसे में यह सवाल खदबदाना लाजिमी है कि इतने व्यस्त समय में आखिर यह उदघाटन कौन व कैसे कर गया।
संहिता का डंडा
चुनाव में आचार संहिता के लगने के बाद मतदाताओं को प्रभावित कर सकने वाली तमाम तरह की गतिविधियों पर रोक लग जाती है। इसके अलावा समय-समय के साथ नियमों में संशोधन आदि भी इसी उद्देश्य से होते हैं कि कहीं किसी तरह की पतली गली की गुंजाइश ही नहीं रहे। इस बार चुनाव में झंडा, बैनर, पोस्टर आदि भी कम ही दिखाई देंगे जबकि चुनावों में इनका प्रचलन बहुत होता रहा है। पहले नामांकन के बाद ही इन चीजों पर रोक लगती थी, इस बार आचार संहिता लागू होने के साथ ही यह रोक प्रभावी हो गई। कोई प्रत्याशी ऐसा करता पाया तो इन सब का खर्च उसके खाते में जुड़ेगा। देखने की बात यह है कि खर्च का भय कितनी कारगर भूमिका निभा पाता है।
नहीं चलेगा बहाना
चुनावी कार्य में ड्यूटी लगने पर नाम कटवाने का इतिहास पुराना है। नाम कटवाने के लिए पता नहीं कितने ही तरह के जनत करने पड़ते हैं। बहाने तक भी बनाने पड़ते हैं। सर्वाधिक बहाने तो बीमारी से संबंधित होते हैं। खैर, बीमारी के बहाने कर्मचारी नाम कटवाने में सफल भी होते रहे हैं, लेकिन इस बार उनका बहाना शायद ही चले। बताया जा रहा है कि इस बार सभी कर्मचारियों को स्पष्ट हिदायत दे दी गई है कि ड्यूटी का मतलब ड्यूटी ही है। किसी तरह की सिफारिश या बहाना नहीं चलेगा। ऐसे में मुश्किल उन कर्मचारियों को हो रही है जो अब तक किसी न किसी बहाने से नाम कटवाकर चुनावी ड्यूटी से बचते रहे हैं।
न खुदा न विसाले सनम
अपनी मांगों के समर्थन में हड़ताल पर बैठे कर्मचारियों के साथ ‘न खुदा न विसाले सनम’ वाला वाक्य चरितार्थ हो गया। इस शेर का आशय होता है, न इधर के रहे न उधर के। कर्मचारी हड़ताल पर बैठे थे। सरकार ने उनकी मांग सुनने की बजाय नो वर्क नो पेमेंट का आदेश दे दिया। आचार संहिता से पहले यह आदेश प्रभावी भी हो गया। अब कर्मचारी खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। एक तो मांगी ही नहीं मानी गई और ऊपर से हड़ताल के समय के समय के पैसे और कटेंगे। कर्मचारियों का यह दोहरा दर्द चुनावी में क्या गुल खिलाता है देखने की बात है।
काम मिलने की उम्मीद
यह सही है कि चुनावी वर्ष में आचार संहिता लगने के बाद समस्त विभागों में एक अलग तरह की खामोशी छा जाती है। कामकाज की रफ्तार भी अपेक्षाकृत धीमी हो जाती है। कई बार तो ऐसा आभास होता है कि बहुत से लोग बेरोजगार हो गए हैं, लेकिन इसी मामले का दूसरा पहलू भी है। चुनाव के साथ ही चुनाव से जुड़े काम युद्ध स्तर पर शुरू होते हैं। इससे भी कइयों का रोजगार मिलता है। शादी समारोह तक सीमित रहने वाले फोटोग्राफर को भी अब काम मिलने वाला है। वीडियोग्राफी के काम के लिए उनकी पूछ परख जल्द बढऩे वाली है। इस बहाने फोटोग्राफर भी खुश है कि एक डेढ़ माह के लिए उनको अपनी पसंद का काम जो मिल रहा है।
नहले पर दहला
श्रीगंगानगर जिला परिषद में इन दिनों नहले पर दहले वाली बात सटीक बैठ रही है। जिला प्रमुख व परिषद की मुख्य कार्यकारी अधिकारी के बीच चल रही है खटपट वैसे तो जगजाहिर ही है। खैर, इस मामले में रोचक मोड़ तब आया जब आचार संहिता लगने के दिन पहले मुख्य कार्यकारी अधिकारी का तबादला हो गया। वो रिलीव होकर नई जगह जाती, उनकी जगह नया अधिकारी आता, इससे पहले आचार संहिता लग गई। आचार संहिता के कारण जो जहां था, वहीं रह गया। अब अधिकारी के तबादले के पीछे जो लोग थे, उनकी हालात बड़ी खराब है। हां, तबादला विरोध जरूर उनकी हालात को देखकर जबरन चटखारे लगाकर उनको सता रहे हैं।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 11 अक्टूबर के अंक में प्रकाशित।

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