प्रसंगवश
भिलाई में दूध उत्पादक पशुपालक संघ ने दूध के दामों में पांच रुपए की वृद्धि करने की घोषणा की है। नई वृद्धि के बाद गाय का दूध 30 के बदले 35 तथा भैंस का दूध 32 की जगह 37 रुपए प्रति लीटर के हिसाब से मिलेगा। वृद्धि की दर एक सितम्बर से लागू हो रही है। दरों में बढ़ोतरी के पीछे तर्क दि
भिलाई में दूध उत्पादक पशुपालक संघ ने दूध के दामों में पांच रुपए की वृद्धि करने की घोषणा की है। नई वृद्धि के बाद गाय का दूध 30 के बदले 35 तथा भैंस का दूध 32 की जगह 37 रुपए प्रति लीटर के हिसाब से मिलेगा। वृद्धि की दर एक सितम्बर से लागू हो रही है। दरों में बढ़ोतरी के पीछे तर्क दि
या
जा रहा है कि दिनोदिन आसमान छूती महंगाई के कारण पशुओं का चारा व पशु आहार
महंगा हो गया है। दूध की वर्तमान कीमत से पशुपालकों की लागत वसूल नहीं हो
पा रही है। ऐसे में उनके समक्ष परिवार के भरण-पोषण का संकट खड़ा हो गया है।
दूध के दामों में हुई इस बढ़ोतरी ने निसंदेह उपभोक्ता की चिंता भी बढ़ा दी
है। उपभोक्ताओं में चिंता केवल भावों में वृद्धि के लिए ही नहीं बल्कि दूध
की अलग-अलग कीमतों को लेकर भी है। ऐसा होना स्वाभाविक भी है, क्योंकि
महंगाई का असर क्या उन पर नहीं होता, जो दूध को 30 रुपए प्रति लीटर से भी
कम के हिसाब से बेच रहे हैं। और अगर कोई फर्क पड़ता है तो फिर यह लोग इतना
सस्ता दूध कैसे व क्यों दे रहे हैं। आखिर ऐसा क्या है कि एक तरफ ३० रुपए
प्रति लीटर से भी कम के हिसाब से देने वाला भी कमा रहा है जबकि दूसरी ओर 30
रुपए से ज्यादा लेने वाले के भी पूरे नहीं पड़ रहे हैं। यकीन मानिए दरों
में असमानता से इस बात को बल मिलता है कि कहीं न कहीं गड़बड़ तो जरूर है। और
स्वास्थ्य से सरासर खिलवाड़ भी। इतना कुछ होने के बाद भी प्रशासन अपनी
भूमिका भूलकर खामोश है। और एकदम उदासीन भी। एक ही शहर में दूध अलग-अलग
कीमतों पर बिक रहा हैं। खुले दूध की बिक्री के इस तरह भिन्न-भिन्न भाव शायद
ही किसी ने देखे या सुने हो लेकिन भिलाई में यह सब हो रहा है।
हां इतना जरूर है कि पैंकिंग के दूध के भाव अलग होते हैं, वह भी इसलिए क्योंकि उस दूध की गुणवत्ता में अंतर होता है और यह बात पैकेट के ऊपर लिखी भी होती है लेकिन खुले दूध की क्या गारंटी कि वह गुणवत्ता पर कितना खरा है? पिछले साल बिलासपुर शहर में भी दूध के दामों में इसी तरह से वृद्धि कर दी गई थी। दूध विक्रेताओं के एक धड़े ने भाव बढ़ाए जबकि बाकी उसके समर्थन में नहीं थे। काफी विरोध के बाद प्रशासन को मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा और बिलासपुर के इतिहास में पहली बार दूध के भाव प्रशासन की मौजूदगी में लिखित में तय हुए। दूध के भावों को लेकर कमोबेश वैसे ही हालात भिलाई के हैं। ऐसे में प्रशासन को सक्रिय भूमिका निभाने की जरूरत है। बाजार में बिक रहा खुला दूध कितना शुद्ध है, कितना गुणवत्तायुक्त है, इस बात को जांचे हुए तो मुद्दत हो गई है।
बहरहाल, प्रशासन को सभी पक्षों के हितों को ध्यान में रखते हुए इस मामले का कोई सर्वमान्य हल निकालना्र चाहिए। एक ऐसा हल जिससे किसी भी पक्ष को किसी तरह का नुकसान न हो। अगर प्रशासन ऐसा नहीं कर पाया तो फिर अकेला दूध ही नहीं कल को कोई भी अपनी मर्जी के हिसाब से भाव तय करके कुछ भी बेचने लगेगा। मामला जनहित ही नहीं स्वास्थ्य से भी जुड़ा है। इसलिए प्रशासन को मामले पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। प्रशासनिक स्तर पर दूध की शुद्धता व गुणवत्ता मापने के लिए बड़े पैमाने पर कोई अभियान चलाया जाता है तो फिर कहना ही क्या।
हां इतना जरूर है कि पैंकिंग के दूध के भाव अलग होते हैं, वह भी इसलिए क्योंकि उस दूध की गुणवत्ता में अंतर होता है और यह बात पैकेट के ऊपर लिखी भी होती है लेकिन खुले दूध की क्या गारंटी कि वह गुणवत्ता पर कितना खरा है? पिछले साल बिलासपुर शहर में भी दूध के दामों में इसी तरह से वृद्धि कर दी गई थी। दूध विक्रेताओं के एक धड़े ने भाव बढ़ाए जबकि बाकी उसके समर्थन में नहीं थे। काफी विरोध के बाद प्रशासन को मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा और बिलासपुर के इतिहास में पहली बार दूध के भाव प्रशासन की मौजूदगी में लिखित में तय हुए। दूध के भावों को लेकर कमोबेश वैसे ही हालात भिलाई के हैं। ऐसे में प्रशासन को सक्रिय भूमिका निभाने की जरूरत है। बाजार में बिक रहा खुला दूध कितना शुद्ध है, कितना गुणवत्तायुक्त है, इस बात को जांचे हुए तो मुद्दत हो गई है।
बहरहाल, प्रशासन को सभी पक्षों के हितों को ध्यान में रखते हुए इस मामले का कोई सर्वमान्य हल निकालना्र चाहिए। एक ऐसा हल जिससे किसी भी पक्ष को किसी तरह का नुकसान न हो। अगर प्रशासन ऐसा नहीं कर पाया तो फिर अकेला दूध ही नहीं कल को कोई भी अपनी मर्जी के हिसाब से भाव तय करके कुछ भी बेचने लगेगा। मामला जनहित ही नहीं स्वास्थ्य से भी जुड़ा है। इसलिए प्रशासन को मामले पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। प्रशासनिक स्तर पर दूध की शुद्धता व गुणवत्ता मापने के लिए बड़े पैमाने पर कोई अभियान चलाया जाता है तो फिर कहना ही क्या।
साभार - पत्रिका छत्तीसगढ़ के 01 सितम्बर 12 के अंक में प्रकाशित।
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