टिप्पणी
माननीय, एस. चंद्रशेकरन जी
सीईओ, भिलाई स्टील प्लांट।
आपने ऐसे समय में सीईओ का दायित्व संभाला है, जब भिलाई स्टील प्लांट (बीएसपी) को रिकॉर्ड दसवीं बार प्रधानमंत्री ट्रॉफी से नवाजा गया है। यह ट्रॉफी क्यों व कैसे मिलती है, यह बात भले ही आमजन के लिए जिज्ञासा भरी हो, लेकिन आप इससे अनजान नहीं हैं। बतौर मुखिया होने के नाते आपको तथा आपके मातहतों के लिए प्रधानमंत्री ट्रॉफी मिलना गर्व एवं खुशी की बात है, लेकिन यह खुशी उस मोर के जैसी है, जो अपने पंखों को देखकर इतराता है, खुश होता है और नाचता है लेकिन जब वह अपने पैरों को देखता है तो रोने लगता है। बीएसपी के हालात भी कमोबेश उस मोर के जैसे ही हैं। यहां आने वालों को सिर्फ वही दिखता है, जो उनको दिखाया जाता है। चाहे वह प्रधानमंत्री ट्रॉफी के सिलसिले में यहां आने वाली टीम हो या फिर आप जैसे मुखिया। इन सब के लिए एक दायरा बना दिया गया है। यहां आने वाले बस उसी दायरे में सिमट कर जाते हैं। अफसर एवं आम बीएसपीकर्मी के बीच एक अजीब सी लक्ष्मण रेखा खींच दी जाती है। एक पक्ष मजबूरी के चलते तो दूसरा पक्ष दायरे में सिमटने के कारण एक दूसरे के नजदीक नहीं आ पाता और सच हमेशा छिपा हुआ ही रह जाता है। इसमें दोष आपका नहीं, इस कुर्सी का एवं इसके आभामंडल का है।
अब देखिए ना, आपसे आसानी से मिलना आम बीएसपीकर्मी के लिए तो सपने
जैसा ही है। आप तक पहुंचने के लिए कितने चरणों से होकर गुजरना पड़ता है
उसको। इतनी चाक चौबंद सुरक्षा है कि माशाअल्लाह परिंदा भी पर नहीं मार
सकता। इतने बड़े पद के लिए ऐसी सुरक्षा लाजिमी भी है लेकिन जेहन में टाउनशिप
की सुरक्षा व्यवस्था का ख्याल भी तो जरूरी है। कौन यहां कब और क्यों आ-जा
रहा है, इसकी खबर कोई नहीं रख रहा है। आपके मातहत बेफिक्र हैं। कायदे
कानून ताक पर रखकर बीएसपी के आवास आम आदमी को किराये पर आसानी से सुलभ हो
रहे हैं। किरायेदार कौन है, कहां से आया है, क्या पृष्ठभूमि है, इस बात की
जरा सी भी पूछ परख नहीं होती। कई जगह तो प्रकाश व्यवस्था भी बदहाल है।
बिलकुल घुप अंधेरा पसरा रहता है। ऐसे में किसी अनहोनी की आशंका से भी इनकार
नहीं किया जा सकता।
खैर, बात अकेली सुरक्षा व्यवस्था की नहीं है। बीएसपी के टाउनशिप इलाके में कई समस्याएं मुंह बाए खड़ी हैं। बुनियादी सुविधाएं तक मयस्सर नहीं हो पा रही हैं यहां रहने वालों को। कई जगह तो सड़कें ही नहीं बन पाई हैं। बीएसपी की चिकित्सा व्यवस्था स्टाफ एवं संसाधनों के अभाव में खुद बीमार होने के कगार पर है। आपने ही बताया कि सेलम में एक हजार कर्मचारियों पर मेडिकल सुविधाओं के लिए करीब आठ करोड़ रुपए खर्च होते हैं, लेकिन बीएसपी के कर्मचारियों व उनके परिजनों पर खर्च होने वाली राशि ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। सबसे बड़ी समस्या तो आवासों की है। टाउनशिप के आवास इतने जर्जर हो चुके हैं कि उनमें घास तक उग गई है। आवासों में बड़ी-बड़ी दरारें आ गई हैं। उनसे टपकता बारिश का पानी एवं रोज-रोज उखड़ता प्लास्टर यकीनन इनमें रहने वालों के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। रोज भगवान से अपनी सलामती की दुआ मांगते हैं यहां के लोग। जितना डर प्लांट में जाते नहीं लगता उससे कहीं ज्यादा इन आवासों में रात बिताते लगता है। इतना ही नहीं बीएसपी की जमीन एवं आवासों पर रसूखदारों का कब्जा है। आपके मातहतों में इतनी इच्छाशक्ति नहीं कि उनको यहां से बेदखल कर दें। ऐसा इसलिए नहीं होता क्योंकि आपके कई मातहत बलात कब्जे एवं अतिक्रमण करने के खेल में शामिल होने के आरोपों से घिरे हुए हैं। उनको बीएसपी के हित से बड़ा खुद का हित नजर आता है। श्रमिकों की भलाई की दुहाई देने वाले संगठन एवं यूनियनें भी इस मामले में खामोश हैं। उनका बीच-बीच में बोलकर अचानक चुप हो जाना भी संदेह को जन्म देता है।
बहरहाल, बीएसपी का उत्पादन बढ़ाना अपने आप में बड़ी बात व उपलब्धि है लेकिन किसकी कीमत पर? उत्पादन बढ़ाने में योगदान देने वालों को लम्बे समय तक उपेक्षित नहीं किया जा सकता है। आखिर असली मेहनत भी तो उन्हीं की है। प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद उल्लेखनीय प्रदर्शन व बेहतर परिणाम देने वालों की खैर-खबर लेना निहायत जरूरी भी है। मुखिया होने के नाते प्लांट की तरह टाउनशिप इलाके के स्कूल, अस्पताल, बिजली, पानी, सफाई, आवास, पार्क, मैदान आदि का हाल देखेंगे तो आप माजरा समझ जाएंगे। निरीक्षण भी आप बिना बताए अपने स्तर पर आकस्मिक करेंगे तो ही आप अपने मातहतों की कारगुजारियों तथा असलियत को भली प्रकार से जान पाएंगे। इसके अलावा आप बीएसपी कर्मचारियों के साथ माह में बार सीधा संवाद रखने जैसा कोई कार्यक्रम भी रख सकते हैं, ताकि सही एवं निष्पक्ष फीडबैक आप तक पहुंच सके। समय-समय पर औचक निरीक्षण एवं सीधा संवाद रखने का काम ईमानदारी से कर लिया तो यकीन मानिए न केवल बीएसपीकर्मियों बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए आप बहुत ही बड़ा काम कर जाएंगे। वरना अन्य मुखियाओं की तरह सूची में आपका नाम जुड़ना तो वैसे भी तय है।
खैर, बात अकेली सुरक्षा व्यवस्था की नहीं है। बीएसपी के टाउनशिप इलाके में कई समस्याएं मुंह बाए खड़ी हैं। बुनियादी सुविधाएं तक मयस्सर नहीं हो पा रही हैं यहां रहने वालों को। कई जगह तो सड़कें ही नहीं बन पाई हैं। बीएसपी की चिकित्सा व्यवस्था स्टाफ एवं संसाधनों के अभाव में खुद बीमार होने के कगार पर है। आपने ही बताया कि सेलम में एक हजार कर्मचारियों पर मेडिकल सुविधाओं के लिए करीब आठ करोड़ रुपए खर्च होते हैं, लेकिन बीएसपी के कर्मचारियों व उनके परिजनों पर खर्च होने वाली राशि ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। सबसे बड़ी समस्या तो आवासों की है। टाउनशिप के आवास इतने जर्जर हो चुके हैं कि उनमें घास तक उग गई है। आवासों में बड़ी-बड़ी दरारें आ गई हैं। उनसे टपकता बारिश का पानी एवं रोज-रोज उखड़ता प्लास्टर यकीनन इनमें रहने वालों के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। रोज भगवान से अपनी सलामती की दुआ मांगते हैं यहां के लोग। जितना डर प्लांट में जाते नहीं लगता उससे कहीं ज्यादा इन आवासों में रात बिताते लगता है। इतना ही नहीं बीएसपी की जमीन एवं आवासों पर रसूखदारों का कब्जा है। आपके मातहतों में इतनी इच्छाशक्ति नहीं कि उनको यहां से बेदखल कर दें। ऐसा इसलिए नहीं होता क्योंकि आपके कई मातहत बलात कब्जे एवं अतिक्रमण करने के खेल में शामिल होने के आरोपों से घिरे हुए हैं। उनको बीएसपी के हित से बड़ा खुद का हित नजर आता है। श्रमिकों की भलाई की दुहाई देने वाले संगठन एवं यूनियनें भी इस मामले में खामोश हैं। उनका बीच-बीच में बोलकर अचानक चुप हो जाना भी संदेह को जन्म देता है।
बहरहाल, बीएसपी का उत्पादन बढ़ाना अपने आप में बड़ी बात व उपलब्धि है लेकिन किसकी कीमत पर? उत्पादन बढ़ाने में योगदान देने वालों को लम्बे समय तक उपेक्षित नहीं किया जा सकता है। आखिर असली मेहनत भी तो उन्हीं की है। प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद उल्लेखनीय प्रदर्शन व बेहतर परिणाम देने वालों की खैर-खबर लेना निहायत जरूरी भी है। मुखिया होने के नाते प्लांट की तरह टाउनशिप इलाके के स्कूल, अस्पताल, बिजली, पानी, सफाई, आवास, पार्क, मैदान आदि का हाल देखेंगे तो आप माजरा समझ जाएंगे। निरीक्षण भी आप बिना बताए अपने स्तर पर आकस्मिक करेंगे तो ही आप अपने मातहतों की कारगुजारियों तथा असलियत को भली प्रकार से जान पाएंगे। इसके अलावा आप बीएसपी कर्मचारियों के साथ माह में बार सीधा संवाद रखने जैसा कोई कार्यक्रम भी रख सकते हैं, ताकि सही एवं निष्पक्ष फीडबैक आप तक पहुंच सके। समय-समय पर औचक निरीक्षण एवं सीधा संवाद रखने का काम ईमानदारी से कर लिया तो यकीन मानिए न केवल बीएसपीकर्मियों बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए आप बहुत ही बड़ा काम कर जाएंगे। वरना अन्य मुखियाओं की तरह सूची में आपका नाम जुड़ना तो वैसे भी तय है।
साभार - पत्रिका भिलाई के 06 सितम्बर 12 के अंक में प्रकाशित।
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