प्रसंगवश
कोरबा जिले की कटघोरा तहसील के ग्राम पंचर में पावर ग्रिड की ओर से हाइटेंशन लाइन बिछाई जा रही है। इस काम के चलते खेतों में खड़ी धान की फसल को नुकसान हो रहा है। तार बिछाने के काम से धान की बालियां टूट कर गिर रही हैं। बिना किसी अधिग्रहण के हो रहे इस काम को एक तरह से जोर जबरदस्ती ही मा
ना
जाएगा। अपनी मेहनत के मोतियों को आंखों के सामने बिखरते देख किसानों का
खून के आंसू रोना और आक्रोशित होना स्वाभाविक है। किसानों ने अपनी पीड़ा
प्रशासन तक पहुंचाई है। इधर, राजस्व अधिकारी नुकसान का आकलन करने के बाद
मुआवजा प्रकरण तैयार होने की बात कह रहे हैं, लेकिन हालात ऐसे लगते नहीं
हैं कि किसानों को यहां आसानी से इंसाफ मिल जाएगा। स्वयं किसान ही यह बात
कह रहे हैं कि प्रति किसान को 20 से 25 हजार रुपए के करीब नुकसान हुआ है
लेकिन मुआवजा बेहद कम तैयार किया जा रहा है। यह एक तरह से ऊंट के मुंह में
जीरे के समान है। वास्तविक नुकसान और उसके बदले दिए जाने वाले मुआवजे में
जमीन आसमान का अंतर ही किसानों के आक्रोश की वजह बन रहा है। सवाल उठता है
कि ऐसे हालात पैदा होने ही क्यों दिए जा रहे हैं। आखिर ऐसी क्या जल्दबाजी
है कि किसानों की जमीन का अधिग्रहण किए बिना ही युद्धस्तर पर टावर लगाने व
लाइन बिछाने का निर्णय कर लिया। अगर यही काम समय रहते कर लिया जाता तो न
फसल बर्बाद होती और ना ही किसान आक्रोशित होते। इससे तो यही जाहिर होता है
कि नियम कानून सब बड़ों के लिए ही है। सरकार कुछ भी कर ले, उसको कोई चुनौती
नहीं दी जा सकती है। चूंकि पावर ग्रिड का काम अभी शुरुआती दौर में है और
इसकी जद में आने वाले गांव एवं किसानों की संख्या भी इक्का-दुक्का ही है,
लेकिन भविष्य में यह काम इसी तर्ज पर आगे बढ़ा तो किसानों को एकजुट होने
में देर नहीं लगेगी। इसलिए सरकार को तत्काल किसानों का दर्द समझाना चाहिए
और जिनका जितना नुकसान हो रहा है उनको उतना मुआवजा मिलना चाहिए। अगर सरकार
यह काम नहीं कर सकती तो उसको किसानों की हमदर्द होने का दंभ भरने का राग
अलापना भी बंद कर देना चाहिए।
साभार- पत्रिका छत्तीसगढ़ के 26 अक्टूबर 12 के अंक में प्रकाशित।
कोई नही सुनेगा गरीबो की वो वाड्रा के बारे में सुनना चाहते हैं ताकि बचाव कर सकें
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