Saturday, November 10, 2012

'राजनीति' में पिस रही जनता


प्रसंगवश

प्रशासन एवं स्वास्थ्य विभाग की मशक्कत के बाद आखिरकार दुर्ग में डायरिया पर काफी हद तक नियंत्रण पाया जा चुका है। जिला कलक्टर ने भी सफाई व्यवस्था का जायजा लेने के लिए बाकायदा टीमें गठित की हैं। इसके बावजूद बदहाल व्यवस्था से परेशान लोगों का धैर्य जवाब दे रहा है। डायरिया प्रकरण

सामने आने के बाद अब तक दो बार प्रदर्शन हो चुके हैं। पहले डायरिया प्रभावित क्षेत्र की महिलाओं ने स्थानीय कांग्रेसी नेताओं के साथ निगम कार्यालय में प्रदर्शन किया। इसके बाद स्थानीय पार्षद के नेतृत्व में वार्डवासियों ने पंचायत मंत्री व स्थानीय विधायक हेमचंद यादव एवं महापौर डा. शिव कुमार के खिलाफ प्रदर्शन कर उनके पुतले फूंके। पीडि़त लोगों का आरोप तो यहां तक है कि डायरिया से मौत का जो आंकड़ा प्रशासन की ओर से बताया जा रहा है, वह हकीकत से दूर है। डायरिया प्रभावित स्थानों पर आज भी अव्यवस्था फैली हुई है। गौर करने की बात यह है कि दुर्ग के ऐसे हालात तब हैं जब निगम पर कब्जा भाजपा का है। वहां के विधायक भी भाजपा के हैं और राज्य सरकार में मंत्री हैं। इतना ही नहीं दुर्ग की सांसद भी भाजपा से संबंधित है। कहने का आशय यह है कि नीचे से लेकर ऊपर तक एक ही दल के लोग काबिज हैं, इसके बावजूद लोगों को बुनियादी सुविधाओं के लिए तरसना पड़ रहा है। शासन-प्रशासन के आगे गिड़गिड़ाना पड़ रहा है। वैसे भी दुर्ग के हालात आज किसी से छिपे हुए नहीं है। जिला मुख्यालय होने के बावजूद दुर्ग विकास की मुख्यधारा से कटा हुआ है। जिला मुख्यालय के कई हिस्से तो गांवों से भी बदतर हैं और वहां के लोग नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं। दुर्ग की बदहाल सफाई व्यवस्था के पीछे के कारणों में पर्याप्त संख्या में कर्मचारियों का न होना तथा लगातार मानिटरिंग न होना तो है ही। इसके अलावा प्रमुख एवं अहम कारण जनप्रतिनिधियों का राजनीतिक द्वंद्व भी है। वर्चस्व की इस लड़ाई में आम लोग पिस रहे हैं। ऐसे में इस आशंका को बल मिलना स्वाभाविक है कि कंडरापारा में डायरिया फैलने के पीछे नेताओं के अहम की लड़ाई भी जिम्मेदार है।
बहरहाल, आम जन की इस तरह से उपेक्षा लम्बे समय तक बर्दाश्त से बाहर है। अगर वह चाहें तो अर्श से फर्श पर भी ला सकते हैं। इसलिए जनप्रतिनिधियों को अब राजनीति से ऊपर उठकर दुर्ग की चिंता करनी चाहिए। राजनीति बहुत हो चुकी है, शहर एवं लोग अब विकास चाहते हैं। जनप्रतिनिधियों को अपनों को उपकृत करने की मानसिकता से उबरना होगा, तभी दुर्ग का भला होगा वरना लोग यूं ही मरते रहेंगे और व्यवस्था को कोसते रहेंगे। उम्मीद की जानी चाहिए कि वजूद की लड़ाई में उलझे राजनीतिज्ञों का दिल परेशान जनता के आर्तनाद से कुछ तो पिघलेगा।



साभार - पत्रिका छत्तीसगढ़ के 10  नवम्बर 12  के अंक में प्रकाशित। 

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