टिप्पणी
भले ही यह जांच का विषय है लेकिन इतना तो तय है कि दुर्ग के बेथल चिल्ड्रन होम में अरसे से चल रहे 'अनाथों' से अनाचार के सनसनीखेज एवं घिनौने कृत्य में न केवल केयर टेकर व संचालक आरोपी हैं बल्कि वे सब भी बराबर के दोषी हैं, जो जानते हुए भी अनजान बने रहे। तभी तो जिला प्रशासन की ठीक नाक के नीचे बिना मान्यता के भी यह चिल्ड्रन होम बेरोकटोक चलता रहा। ऐसा शातिराना एवं शर्मनाक काम केवल शह, सम्पर्क और साठगांठ के सहारे ही संभव है, वरना एक सामान्य आदमी अचानक और आश्चर्यजनक रूप से अर्श पर कैसे पहुंच सकता है। रसूखदारों से रिश्ते, सियायत से सम्पर्क और जिम्मेदारों से जानकारी का फायदा उठाकर फर्जीवाड़े के सहारे यह अमानवीय कृत्य होता रहा। मिलीभगत के इस खामोश खेल का खुलासा अब भी नहीं हो पाता, अगर कुछ जागरूक संगठन पहल नहीं करते या लड़कियां होम से ना भागती। प्रदेश में आश्रमों की असलियल उजागर होने के बाद सामूहिक दुष्कर्म का यह बड़ा मामला है।
खैर, हकीकत सामने आने के बाद हड़कम्प मचाना स्वाभाविक है। थोड़ा बहुत तात्कालिक, रस्मी और औपचारिक हंगामा भी है। इस प्रकार के मामलों में ऐसा हमेशा ही होता है। झलियामारी एवं आमाडुला आश्रमों की हकीकत से पर्दा उठने से लेकर अब तक हुई हलचल का इतिहास और परिणाम सबके सामने हैं। आश्रमों की असलियत उजागर होने पर होने वाला आश्चर्य मिश्रित अफसोस इस बार भी है लेकिन हालात से हारे मासूमों की मदद के लिए कोई सामूहिक आवाज नहीं उठ रही है। उनकी तकलीफ समझना तो दूर उनको तमाशा बना दिया गया है।
दिल्ली की 'दामिनी' के लिए दुर्ग में जो दर्द दिखाई दिया वैसा दर्द मासूमों के साथ दुष्कर्म को लेकर नहीं दिख रहा है। अब ना तो कोई शर्मसार है और ना ही किसी चेहरे पर शिकन। किसी के गमगीन या गुस्सा होने का तो कहीं नामोनिशान तक नहीं है। संवेदनाओं का सैलाब भी सूख गया है। हमदर्दी और हिम्मत दिखाने वालों का भी अकाल है। कागजी बयानों की फेहरिस्त दिनोदिन जरूर लम्बी हो रही है। और इधर कार्रवाई के नाम पर चार पुलिस अधिकारियों को जांच सौंप कर इतिश्री कर ली गई है। ऐसे घिनौने और गंभीर मामले की न्यायिक जांच होनी चाहिए।
साभार- पत्रिका भिलाई के 01 अप्रेल 13 के अंक में प्रकाशित।
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