नंदिनी अहिवारा से लौटकर
परिवार एवं सामान के साथ पैदल ही बदहवाश दौड़ते श्रमिकों को देखकर लगा कि वाकई जब जान खतरे में हो तो आदमी को जो भी सूझता है, वैसा ही करता है। नंदिनी अहिवारा में निर्माणाधीन सीमेंट प्लांट में गुरुवार शाम को जो हुआ वह श्रमिकों के लिए साक्षात मौत देखने जैसा ही था। निर्माणाधीन प्लांट से लेकर अहिवारा बस स्टैण्ड तक करीब तीन किलोमीटर रास्ते में महिला व पुरुष श्रमिकों की कतार लगी हुई थी। जान बचाने के चक्कर में उबड़-खाबड़ रास्ते एवं अंधेरे के बीच इन श्रमिकों की सांसें इस कदर उखड़ी हुई थी कि वे चाहकर भी कुछ नहीं बोल पा रहे थे। बार-बार कुरेदने पर बस इतना ही बोल पा रहे थे कि 'भइया, जान खतरे में है'। कहां से हो, तो अधिकतर ने यूपी-बिहार का निवासी बताया। प्लांट के प्रवेश द्वार तक पहुंचने से डेढ़ किलोमीटर पहले ही आग की लपटें एवं धुएं के गुबार दिखाई दे रहे थे। प्लांट के प्रवेश द्वार पर बिखरे पत्थर इस बात की गवाही दे रहे थे कि पथराव किस स्तर पर हुआ है। प्रवेश द्वार पर बड़ी संख्या में पुलिस जवान तैनात थे। अंदर का नजारा देखकर किसी भी भले चंगे आदमी के रौंगटे खड़े होना तय है। प्रवेश द्वार के पास बने केबिन के टूटे हुए शीशे एवं बिखरा सामान बता रहे थे कि हंगामा बहुत देर तक बरपा था। बस, जेसीबी और अन्य सामान से आग की लपटें बराबर उठ रही थी, लेकिन आग बुझाने के साधन वहां पर दिखाई नहीं दिए। आग से जलकर खाक पुलिस की गाड़ी के पास फायर बिग्रेड के कर्मचारी पानी तलाश रहे थे। उनकी गाड़ी का पानी खत्म हो चुका था, लिहाजा उनके पास सिवाय आग को देखने के कोई चारा नहीं बचा था। वहीं प्लांट के एक सुरक्षाकर्मी ने बताया कि यहां अंदर पानी नहीं है। जगह-जगह तैनात पुलिसकर्मी सभी मीडियाकर्मियों को अजनबी निगाह से घूर रहे थे। धुएं के गुबार व आगजनी के बीच फूटते पटाखे हालात को और भी भयावह बना रहे थे। हिम्मत और हौसला दिखाते हुए कुछ आगे बढ़े तो अंदर कुर्सी पर पुलिस के चार-पांच जवान रिपोर्ट बनाने में व्यस्त दिखाई दिए। पास ही एक व्यक्ति सिर पर पट्टी बांधे पुलिस अधिकारियों के सवालों का जवाब देने में तल्लीन था। एक सुरक्षाकर्मी भी आंख पर पट्टी बांधे दिखाई दिया। तभी ड्राइवर ने हमारी गाड़ी जलाने के सूचना दी, तो हम वापस प्रवेश द्वार की तरफ लपके। वहां एसपी हेलमेट लगाए और डंडा लिए खड़े थे। मौके की नजाकत देखते हुए हमने गाड़ी संयंत्र परिसर के अंदर पुलिस के वाहनों के पास खड़ी की। इसके बाद हम फिर आगजनी को देखने आगे बढ़े। सबसे खास बात यह दिखाई दी कि जो वाहन जल रहे थे, या जिस हालात में थे, वे जलते ही रहे। इसका कारण बाद में समझ में आया कि क्योंकि आग बुझाने के लिए जो दमकलें गई थी, उनकी संख्या आगजनी को देखते हुए ऊंट के मुंह में जीरे के समान थी। कुछ और आगे बढ़े तो जिला कलक्टर लिखी गाड़ी दिखाई दी। आगे देखा तो दोनों हाथ पीछे बांधे अपने गनमैन के साथ कलक्टर लौट रहे थे। पत्रकारों को सामने देखा तो चौंक गए और बोले 'आ गए आप, आपको भी खबर हो गई।' जहां कलक्टर मिले थे वहीं से कुछ दूरी पर वह स्थान दिखा जहां दो-तीन दिन पहले मिट्टी धंसने की वजह से एक श्रमिक की मौत हो गई थी, जबकि दो घायल हो गए थे। हालांकि रास्तों पर बिजली के पोल लगे थे, लेकिन धुएं के गुबार के बीच रोशनी मंद पड़ चुकी थी। आगे बढ़े तो प्लांट के कुछ लोगों ने आगाह किया, 'आगे अंधेरा है, रास्ते भी ठीक से दिखाई नहीं दे रहे हैं। आप संभलकर एवं अपनी रिस्क पर जाना।' उन लोगों की बातों को अनसुना करने के बाद हम लोग आगे बढ़ गए और वहां पहुंच गए, जहां प्लांट के लिए चिमनी लगी थी। आगे का नजारा देखकर तो अजीब से डर से घिर गया। चारों तरफ आग ही आग। प्लांट के अधिकारियों के लिए बनाए गए वातानुकूलित केबिन आग से स्वाहा हो चुके थे, जबकि दूसरी ओर के केबिन को भी आग अपने जद में ले चुकी थी। केबिन के अंदर आग की लपटें उठ रही थी। मौके पर मौजूद लोगों ने बताया कि इन केबिन में ही कम्प्यूटर वगैरह रखे हुए थे। केबिन के पास ही अंधेरे में ही फायर बिग्रेड के लोग आग बुझाने की मशक्कत कर रहे थे लेकिन आग इतने बड़े पैमाने पर लगी थी कि देर रात तक उस पर किसी तरह से काबू नहीं पाया जा सका था। वाहन जलने के बाद वह अपने आप ही बुझा रही थी। लौटते समय अधेंरे में इधर-उधर देखा तो रास्तों में बाल्टियां एवं जरीकेन हुए दिखाई दिए। पूछा तो बताया गया कि इन बाल्टियों में ज्वलनशील पदार्थ भरकर बाल्टी को लकड़ी में फंसा कर लाया गया और वाहनों एवं सामान पर डाल-डाल कर आग के हवाले कर दिया गया। रास्ते में हमको तीन जगह बाल्टी पड़ी दिखाई दी। आग से उठते धुएं व रह-रहकर उनमें होते विस्फोट के बीच ज्यादा देर खड़ा रहना संभव नहीं था। धीरे-धीरे वापस प्रवेश द्वार की ओर लौटने लगे। रास्ते में प्लांट के काफी सुरक्षाकर्मी हेलमेट व चेस्ट गार्ड लगाए दिखाई दिए। कुछ के हाथों में डंडे भी थे। लौटने लगे तो पुलिस के जले हुए वाहन के पास पुलिस के फोटोग्राफर दिखाई दिए। धीरे-धीरे प्रवेश द्वार तक आए और लौट आए। देर रात वहां हालात तनावपूर्ण, लेकिन नियंत्रण में थे। इधर पुलिस पांच-छह दर्जन ग्रामीणों पर अपराध कायम करने की तैयारी में जुटी हुई थी। प्लांट के प्रवेश द्वार पर तैनात उस महिला टीआई से यह कहकर अब जा रहे हैं हम भिलाई लौट आए। वाकई इतने बड़े पैमाने पर भीषण आगजनी देखने का यह अपना अलग अनुभव रहा। रास्ते में कई लाल-पीली बत्ती वाले वाहन सायरन बजाते हुए प्लांट की तरफ जाते मिले। नंदिनी का बाजार भी देर तक खुला था। वाहनों की लगातार आवाजाही से लोगों की नींद उड़ी हुई थी। आग की खबर तो उनको पहले ही लग चुकी थी।
साभार - पत्रिका भिलाई के 05 अप्रेल 13 के अंक में प्रकाशित।
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