बस यूं ही
आज 13 सितम्बर है और साल भी 2013 का। मतलब आज का दिन लिखा जाए तो दो बार 13 का उल्लेख होगा। आज के दिन ने किसी के अरमानों के पंख लगा दिए तो किसी की उम्मीदों का दिया बुझा दिया। वैसे भी तेरह के अंक के साथ कई तरह के किस्से एवं कहानियां जुड़े हुए हैं और अंधविश्वास भी। विशेषकर क्रिकेट की दुनिया में 13 का अंक बेहद ही अशुभ माना जाता है। शायद ही कोई खिलाड़ी होगा जो 13 नम्बर की टीशर्ट पहनता है। इसके अलावा 13 पर आउट होने वालों की फेहरिस्त भी खासी लम्बी है। 13 पर आउट होने के पीछे एक बहुत बड़ा मनोविज्ञान है। खिलाड़ी इस स्कोर पर पहुंचते खुद को असुरक्षित महसूस करता है और जल्दी से इसे पार पाने के प्रयास में आउट हो जाता है। खैर, क्रिकेट की दुनिया से इतर काफी जगह 13 को अशुभ और मनहूस माना जाता है। पश्चिमी देशों में 13 तारीख के अंक को इतना अशुभ व दुर्भाग्यशाली माना जाता है कि इर साल 13 सितम्बर को अंधविश्वास को नकारने के लिए डिफाय सुपरस्टिशन डे मनाते हैं। तेरह के अंक को विज्ञान में भी एक फोबिया का नाम दिया गया है। इतना ही नहीं पश्चिम देशों में होटलों में तेरहवीं मंजिल नहीं होती है। होटलों में तेरह नम्बर का कमरा भी नहीं होता। इतना ही नहीं हवाई जहाज में तेरह नम्बर की पंक्ति भी नहीं होती।
बहरहाल, आज 13 सितम्बर के दिन देश में दो ऐसे फैसले हुए, जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गए हैं। दोपहर बाद जहां दिल्ली के दामिनी सामूहिक अनाचार प्रकरण के दोषियों को फांसी की सजा सुनाई गई, वहीं शाम होते-होते भाजपा ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए अपना दावेदार घोषित कर दिया। हो सकता है, जिनको फांसी की सजा मिली है वे और उनके परिजन आज के दिन को कोस रहे हों, लेकिन पूरा देश इस इस फैसले पर झूम रहा है। इधर मोदी की ताजपोशी से आडवाणी और उनके समर्थकों को छोड़कर शेष भाजपा में दीवाली का सा माहौल है। पटाखे फूट रहे हैं। मिठाई बंट रही है। ढोल-ढमकों और गाजे-बाजे के साथ खुशियां मनाई जा रही हैं। ऐसा लग रहा है कि मोदी कोई उम्मीदवार न हुए गोया प्रधानमंत्री ही बन गए हैं। खैर, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन मोदी समर्थकों की खुशी और जोश आज देखते ही बन रहा है।
अपने व्यस्त समय के बीच से जब 13 के अंक के बारे में कुछ जानकारी जुटाई तो इस दिन वैसे तो कोई खास उपलब्धि नजर नहीं आई, हालांकि रचनाकार रांगेय राघव, साहित्यकार चंद्रधर शर्मा गुलेरी और संगीतकार जयकिशन की पुण्यतिथि 13 सितम्बर को ही आती है। वीर दुर्गादास का जन्म 13 तारीख को ही हुआ था। प्रसिद्ध गायक किशोर कुमार का निधन भी तेरह तारीख को ही हुआ था। वैसे 13 को अपशकुनी मानने का प्रचलन भारत में भी है। 13 का डर यहां भी कम नहीं है। किसी वर्ष 13 मास अर्थात अधिमास हो जाए तो उसे भी शुभ नहीं माना जाता है। तिथि क्षरण के कारण चंद्रपक्ष में तेरह दिन रह जाएं उसे भी अशुभ माना जाता है। मुम्बई में दो प्रमुख आतंकी हमलों के लिए भी 13 तारीख का ही चयन किया गया था।
वैसे तेरह से जुड़ी कुछ कहावतें भी हमारे देश में प्रचलन में है। मसलन, नौ नकद तेरह उधार, तीन बुलाए तेरह आए दे दाल में पानी, तीन में न तेरह में। इसके अलावा एक और राजस्थानी कहावत है कि तीन का तेरह कर देना, अर्थात बिगाड़ देना। संयोग की बात यह भी यह है कि ताश के पत्तों में एक रंग के तेरह ही पत्ते होते हैं। अगर इक्के से गिना जाए तो तेरहवां पत्ता बादशाह और दुग्गी से गिना तो तेरहवां पत्ता इक्का होता है। 13 के अंक के सभी के लिए अपने-अपने मायने हैं। भाजपा के लिए तो 13 खास महत्त्व रखता है। तभी तो मोदी का नाम तय करने में इतनी जल्दबाजी दिखाई गई है, वरना लोकसभा चुनाव में तो अभी छह-सात माह बाकी हैं। भाजपा के लिए 13 का अंक वैसे मिलाजुला ही रहा है। फिर भी पार्टी इसका मोह नहीं त्याग नहीं पा रही है। अटल बिहारी वाजपेयी 1996 में जब पहली बार प्रधानमंत्री बने थे तो उनका कार्यकाल मात्र 13 दिन का ही रहा था। इसके बाद 1998 में जब वे दोबारा प्रधानमंत्री बने तो 13 तारीख को ही शपथ ली। दूसरा कार्यकाल भी तेरह माह का रहा। यह भी संयोग है कि सहयोगी दलों की संख्या भी तेरह ही थी। और उनके सहयोग से उन्होंने तेरहवें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी। इतना ही नहीं उनको पराजय भी तेरह तारीख को झेलनी पड़ी। इस तरह उनका चौथी बार प्रधानमंत्री बनने का सपना भी तेरह तारीख को ही टूटा था। इतना ही नहीं वाजपेयी के कार्यकाल में तथा भाजपा के समर्थन में राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भी तेरहवें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी।
बहरहाल, मोदी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाने की घोषणा जिस अंदाज में हुई है। उसके मायने तो हैं। कहीं मोदी भी वाजपेयी के नक्शे कदम पर तो नहीं हैं? उनका तेरह के प्रति प्रेम देखते हुए लगता तो यही है, वह भी एक नहीं बल्कि डबल तेरह। अब यह 13/13 का अंक उनके लिए कैसा साबित होता है यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि वे वाजपेयी की तरह कोई करिश्मा दिखाएंगे या आडवाणी की तरह पीएम इन वेटिंग के नाम से ही जाने जाएंगे।
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