Monday, October 28, 2013

वो मेरे से बड़ी हो गई


बस यूं ही

 
सरकारी दस्तावेजों में गलती की बानगी का आलम उनसे पूछिए जो इनसे बावस्ता हैं। बात चाहे मतदाता परिचय पत्र की हो या फिर राशन कार्ड की, सब जगह रापांरौळ (गड़बड़ी) ही है। पता नहीं कब पति को पिता बना दे या पिता का पुत्र। इतना ही नहीं लिंग परिवर्तन तक कर दिया जाता है। महिलाओं को पुरुष तो पुरुषों को महिला तक बना दिया जाता है। गलत फोटो चस्पा तक कर दी जाती हैं। पत्रकारिता के पेशे में होने के कारण इस प्रकार की विसंगतियों से वास्ता कई बार पड़ा है। मतदाता परिचय पत्र में नाम को लेकर संशोधन करवाने के लिए मैंने स्वयं ने दो तीन बार प्रयास किए लेकिन नतीजा सिफर ही रहा। अब आदमी का हाल क्या होगा बताने की शायद जरूरत ही नहीं है। हालिया मामला राशनकार्ड से जुड़ा है। अभी गांव गया तो पापाजी ने बताया कि नए राशनकार्ड बनकर आ गए हैं। उत्सुकतावश जब राशनकार्ड देखे (घर में सभी के राशनकार्ड अलग अलग हैं) तो वे पहले के मुकाबले साइज में कुछ छोटे नजर आए। कार्ड के ऊपर लिखा था एपीएल उपभोक्ताओं के लिए। नीले रंग में राजस्थान के नक्शे के साथ कार्ड का कवर पेज एक नजर देखने में आकर्षक नजर आया। अंदर देखा तो सारी इंट्री कम्प्यूटरीकृत थी। मतलब पैन या बालपैन का कहीं उपयोग नहीं हुआ था। सारा का सारा काम कप्यूटर के माध्यम से सम्पादित किया गया था। राशनकार्ड में लिखी गई जानकारी कितनी सही एवं सटीक है, इसको गंभीरता के साथ नहीं देख पाया।
दूसरे दिन दिल्ली से भाईसाहब आए तो मैंने उनको बताया कि नए राशनकार्ड बन गए हैँ। इसके बाद फिर कार्ड को देखने लगा। तीसरे पेज पर एक कॉलम था. आयकरदाता- उसके आगे नहीं लिखा गया था। मैं चौंका क्योंकि दो साल तो आयकर के पैसे कट रहे हैं फिर भी आयकरदाता नहीं हूं। खैर, इसके बाद मेरे को डबल गैस सिलेण्डर धारक उपभोक्ता बताया गया वह भी बगड़ की गैस एजेंसी का। हकीकत तो यह है कि मैं डबल गैस सिलेण्डर धारक उपभोक्ता ही हूं लेकिन जिस एजेंसी का हवाला दिया गया है, वहां का नहीं हूं। मैंने छत्तीसगढ़ आने के बाद बिलासपुर से गैस कनेक्शन लिया और तबादला होने के बाद उसको भिलाई स्थानांतरित करवा लिया। अब राशनकार्ड बनाने वालों को पता नहीं क्या आगे की सूझ गई, जो उन्होंने गैस एजेंसी का नाम बगड़ डाल दिया। मेरे लिए तो यह दोनों जानकारी ही चौंकाने के लिए पर्याप्त थी लेकिन आखिर में परिवार के सदस्यों के नाम देखकर तो मैं एक तरह से उछल ही पड़ा। चूंकि राशनकार्ड मैंने गैस कनेक्शन के उद्देश्य से ही पहले से ही अलग बनवा लिया था, इस कारण उसमें मेरा, धर्मपत्नी एवं बच्चों के नाम हैं। पुराने राशनकार्ड में भी उम्र को लेकर कुछ विरोधाभास था लेकिन नए वाले में तो जबरदस्त विरोधाभास नजर आया है। हकीकत में मेरी उम्र 37 हो गई है लेकिन राशनकार्ड बनाने वालों ने इसे 26 ही लिखा। इतना ही नहीं बड़े बच्चे योगराज की उम्र आठ व छोटे एकलव्य की छह साल है लेकिन राशनकार्ड में दोनों की उम्र छह साल लिखी हुई है। मतलब दोनों जुड़वा हो गए। अति तो धर्मपत्नी की उम्र के साथ कर दी गई। राशनकार्ड में उसकी आयु 29 साल दिखा रखी है। इस हिसाब से वह मेरे से तीन साल बड़ी हो गई। यह सब देखकर मेरे पास राशनकार्ड बनाने वालों के सामान्य ज्ञान को दाद देने के अलावा कोई चारा नहीं था। वैसे अखबार से जुड़े होने के कारण इस प्रकार की गलतियां अखरना लाजिमी भी है। भिलाई लौटने के बाद जब यही बात धर्मपत्नी से साझा की और मजाक में कहा कि अब तो तुम मेरे से बड़ी हो गई हो गई हो? यह बात बिलकुल प्रमाणिक और सरकारी दस्तावेज में दर्ज है। मेरे इस मजाक को उसने बड़ी ही साफगोई के साथ शांत कर दिया, बोली, पत्नी हमेशा पति से छोटी हो यह जरूरी तो नहीं होता, अभिषेक एवं एश्वर्या का उदाहरण ही ले लो। अब भला मैं क्या बोलता। हां मन ही मन में इतना जरूर सोच रहा था कि कहीं राशनकार्ड बनाने वाला भी धर्मपत्नी जैसी सोच व मानसिकता वाला तो नहीं था?

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