बस यूं ही
आज दोपहर को झुंझुनू के पुराने परिचित को फोन लगा लिया। हाल-चाल जानने के बाद मैंने 'कहा कल तो झुंझुनू में राहुल गांधी आए थे।' जवाब आया 'हां, भाईसाहब, बहुत ही तगड़ी व्यवस्था थी। बाहर दीवार के पास खड़े होने वाले को भी पास जारी किए गए थे। दिल्ली से आए सुरक्षाकर्मियों ने तो हवाई पट्टी के आस-पास के कुछ घरों को भी खाली करवा लिया।' वह एक सांस में यह सब बोल गया। थोड़ा रुकते ही फिर बोला 'कलक्टर-एसपी तक को नहीं जाने दिया, बहुत की तगड़ी सुरक्षा व्यवस्था थी। ' मैंने इतना सुनने के बाद पूछा और क्या खास रहा तो वो बोला भाईसाहब खास तो कुछ नहीं है। मैंने कहां चूरू में राहुल के कार्यक्रम की खबर तो यहां छत्तीसगढ़ में भी लगी है। मेरा इतना कहना ही था कि वह फट ही पड़ा बोला 'भाईसाहब आज के सभी अखबारों में राहुल की एक जैसी ही खबर है। सभी ने यही लिखा है दादी को मार दिया, पिता को मार दिया मेरे को भी मार देंगे।' मैंने उत्सुकतावश पूछा 'तो क्या हो गया?' वह बोला 'हुआ तो कुछ नहीं लेकिन यह भी कोई खबर है क्या..' 'कैसे?' मैंने फिर पूछा तो बोला 'इसमें खबर तो यह थी कि इतनी तगड़ी और जेड प्लस की सुरक्षा वाला भी खुद को देश में सुरक्षित नहीं मान रहा है। खुद के मार दिए जाने की आशंका जता रहा है। ऐसे में आदमी की बिसात ही कहां है? वह सुरक्षित कहां है?' थोड़ा रुकते हुए मजाकिया लहजे में वह फिर बोला 'आदमी के पास जेड प्लस तो दूर जेड माइनस भी सुरक्षा ही नहीं है भाईसाहब।' मुझे उसकी बातों में दम नजर आया। वाकई जब देश का इतना बड़ा आदमी खुद को सुरक्षित नहीं मान रहा है तो फिर आम आदमी किसके भरोसे खुद को सुरक्षित माने? कौन उसको सुरक्षा का दिलासा दिलाएगा? मेरे भी जेहन में विचारों का द्वंद्व चलने लगा। सोचते-सोचते यही सोचना लगा कि देशवासी भावुक है। भावुकता से भरी कहानी सुनकर वे भावना में बह जाते हैं। हिस्से में सिवाय आंखें गीली करने के कुछ नहीं आता है। सचमुच हम बेहद इमोशनल हैं और प्रोफेशेनल लोग हमारा दोहन कर लेते हैं। कभी विकास के नाम पर...। कभी सपनों के नाम पर तो कभी किसी कहानी के नाम पर। हमारे दोहन के इस अंतहीन सिलसिले का क्रम कब रुकेगा राम ही जाने...। क्योंकि देश भगवान भरोसे ही है और हम सब भी।
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