Monday, October 28, 2013

मतदाता मौन और समर्थकों में सरगर्मी

 
वर्तमान पर अतीत हावी : बीस साल से आमने सामने

दु र्ग जिले का भिलाईनगर विधानसभा क्षेत्र। जिला मुख्यालय से एकदम सटा हुआ, लेकिन सूरत एवं सीरत दोनों ही अलग। तभी तो चुनाव की सरगर्मी का असर खुर्सीपार को छोड़कर शेष हिस्सों में कम ही दिखाई दे रहा है। इसका प्रमुख कारण समूचे क्षेत्र में नौकरीपेशा आदमी होना है। यहां पर चुनाव के प्रति वैसा जुनून भी नजर नहीं आता, जैसा दूसरे विधानसभा क्षेत्रों में आता है। फिलहाल यहां मतदाता मौन हैं, लेकिन प्रत्याशियों के समर्थकों में सरगर्मी शुरू हो चुकी है। दोनों ही प्रत्याशियों के साथ एक संयोग भी जुड़ा है। दोनों के वर्तमान पर अतीत हावी है। इस बात की गवाही दोनों प्रत्याशियों के बंगलों के बाहर टंगे बोर्ड देते हैं। एक पर लिखा है पूर्व विधानसभा अध्यक्ष तो दूसरे पर पूर्व मंत्री छत्तीसगढ़ शासन। फिलहाल पूरे प्रदेश की नजर भिलाईनगर विधानसभा पर टिकी है। यहां मुकाबला रोचक एवं दिलचस्प होने के कयास लगाए जा रहे हैं।
बीस साल से ही प्रतिद्वं द्वी
भिलाईनगर विधानसभा समूचे प्रदेश में इकलौता ऐसा क्षेत्र है, जहां के लगभग सभी मतदाता भिलाई स्टील प्लांट के कर्मचारी या सेवानिवृत्त कर्मचारी हैं। थोड़ा सा हिस्सा खुर्सीपार का है, जिसमें बीएसपी से संबंधित लोग नहीं रहते हैं। यही कारण है कि इस सीट पर स्थानीय या राज्यस्तरीय मुद्दे उतना महत्त्व नहीं रखते, जितना बाकी सीटों के लिए रखते हैं। खुर्सीपार में चाय की दुकानों पर जरूर चुनावी चर्चाएं हैं, लेकिन सेक्टर एरिया के मतदाताओं में ऐसा कोई माहौल नहीं है। दोनों ही दलों ने अपने पुराने नेताओं पर विश्वास जताया है। दोनों नेता 20 साल से लगातार एक दूसरे के सामने चुनाव लड़ते आ रहे हैं।
1.65 लाख मतदाता
भाजपा प्रत्याशी प्रेमप्रकाश पाण्डे का यह छठा चुनाव है, जबकि कांग्रेस के बदरुद्दीन कुरैशी पांचवीं बार भाग्य आजमा रहे हैं। पाण्डे अब तक तीन बार चुनाव जीत चुके हैं, जबकि कुरैशी ने दो विजयश्री हासिल की है। भिलाईनगर विधानसभा में पिछले चुनाव में 162778 मतदाता थे, जो इस बार बढ़कर 165549 हो गए हैं। पिछली बार यहां के 62.93 मतदाताओं ने वोट डाले थे। पिछले चुनाव में कुरैशी को 52848 तथा पाण्डे को 43985 मत प्राप्त हुए थे।
लगातार दो बार कोई नहीं जीता
भिलाईनगर विधानसभा के साथ एक संयोग यह भी जुड़ा है कि 1993 के बाद से यहां कोई भी विधायक लगातार दूसरी बार नहीं जीता है। 1993 में जहां भाजपा के प्रेमप्रकाश पाण्डे ने बदरुद्दीन कुरैशी को हराया वहीं, 1998 के चुनाव में कुरैशी ने जीत दर्जकर हिसाब चुकता कर दिया। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पहली बार 2003 में हुए चुनाव में पाण्डे ने कुरैशी को हराकर जीत दर्ज की तो इससे अगले चुनाव 2008 में कुरैशी ने पाण्डे को फिर हरा दिया। इस बार दोनों प्रत्याशी फिर आमने-सामने हैं।
निष्कर्ष
बाकी दलों ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। विशेषकर छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच ने भी यहां कोई प्रत्याशी अभी तक घोषित नहीं किया है। बीएसपी में कार्यरत अधिकतर स्थानीय लोगों ने पिछले चुनाव में मंच को वोट डाले थे। हाल ही बीएसपी यूनियन चुनाव में बाजी सीटू के हाथ लगी, लेकिन मंच समर्थित यूनियन ने दूसरा स्थान हासिल किया था। ऐसे में मंच की प्रभावी भूमिका रहेगी। मंच के प्रत्याशी न उतारने पर बीएसपी के स्थानीय वोटरों का झुकाव हार जीत के परिणाम तय करेगा।
बदरुद्दीन कुरैशी का बंगला
मंगलवार सुबह सुबह 11.20 बजे। कांग्रेस प्रत्याशी बदरुद्दीन कुरैशी के बंगले के बाहर करीब आधा दर्जन दुपहिया वाहन खड़े हैं। बंगले के ठीक सामने सड़क पर पटाखों के जले हुए कागज हवा के साथ उड़ रहे हैं। अंदर कार्यालय में चार लोग बैठे हैं। सभी अखबार पढऩे में तल्लीन। इसी कार्यालय के बगल में एक छोटा सा एक और कमरा। उसी में कुरैशी धीर-गंभीर मुद्रा में बैठे हैं। टेबल पर एक फूलों की माला रखी है, जबकि एक गुलदस्ता बगल में रखा हुआ है। उनका चश्मा टेबल पर रखा है। दोनों कुहनिया टेबल पर टिकाए कुरैशी के चेहरे पर आने वाले उतार-चढ़ाव स्पष्ट परिलक्षित हो रहे हैं। टिकट मिलने की बधाई देने वाले बीच-बीच में आ जा रहे हैं। कोई चरण स्पर्श कर रहा है तो कोई हाथ मिला रहा है। आने वालों को मिठाई खिलाई जा रही है। बांटने वाला एक ही व्यक्ति, लेकिन मिठाई के प्रकार दो। किसी को लड्डू तो किसी को काजू कतली। इसी बीच दो समर्थक आते हैं, टिकट मिलने की कहानी पूछते हैं। कुरैशी खामोशी तोड़ते हैं। कुछ कहने पर जोर से ठहाका लगाते हैं, फिर कहते हैं, आप को तो पता ही है, टिकट कैसे मिलता है। बड़ा मुश्किल काम हो गया है। बिना रुके कुरैशी फिर कहते हैं, अरे यह तो इन दिनों दिल्ली आना-जाना कम कर दिया वरना, इतनी दिक्कत नहीं आती। अचानक कुरैशी उठते हैं और कार्यालय में आ जाते हैं।
प्रेमप्रकाश का बंगला
मंगलवार दोपहर 12.05 बजे भाजपा प्रत्याशी प्रेमप्रकाश पाण्डेय के घर करीब तीन दर्जन समर्थक मौजूद हैं। सभी अलग-अलग झुण्ड बनाकर बातचीत में तल्लीन। कोई मोबाइल पर बतिया रहा है तो कोई मोबाइल से खेल रहा है। करीब आधा घंटे के इंतजार के बाद यकायक सब खामोश हो जाते हैं। लुंगी पहने तथा शर्ट की आस्तीन के बटन बंद करते हुए पाण्डेय समर्थकों के बीच आते हैं। जब तक पाण्डेय बैठे नहीं सभी खड़े रहते हैं। उनके बैठते ही सब बारी-बारी से चरण स्पर्श करते हैं। उम्रदराज हो चाहे युवा, सभी यही करते हैं। इधर पाण्डेय हाथों को बांधे चरण स्पर्श करने वालों को बड़े ही सोचने वाले अंदाज में देखते हैं। एक खाली कुर्सी पाण्डेय की बगल में रखी है, जिस पर उनका छोटा तौलिया रखा है। सब खामोश हैं। एक समर्थक फोन लाकर पाण्डेय को देता है। थोड़ी देर फोन पर हूं..., हां..., करने के बाद फोन वापस समर्थक को थमा दिया जाता है। अचानक एक पार्षद का नाम पुकारते हैं। वह खड़ा हो जाता है। इसके बाद पाण्डेय एक दूसरा नाम पुकारते हैं, वह व्यक्ति भी हाथ जोड़े ही पाण्डेय की तरफ मुखातिब होता है। आंखों ही आंखों में इशारा होता है। चार-पांच पार्षद/पार्षद पति चुपचाप उठते हैं एक कमरे में चले जाते हैं। पाण्डेय अपनी कुर्सी से उठते हैं। थोड़ी ऊंची आवाज में कहते हैं, अरे चाय लाओ और वह भी उस कमरे में प्रवेश कर जाते हैं। बाहर बैठे लोगों में फिर चर्चा छिड़ जाती है।

साभार- पत्रिका छत्तीसढ़ में 24 अक्टूबर के अंक में प्रकाशित


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