Saturday, December 7, 2013

दिल है कि मानता नहीं...


पोल अकाउंट

 
सब्र का सैलाब सीमाएं तोडऩे को आतुर हैं..। धैर्य भी धमाल मचाने पर आमादा है। चुनावी चौपालें तो अब चरम पर हैं। संशय व संदेह के बादल छंटने तथा विश्वास को यकीन में बदलने की इच्छाएं अब बलवती हो उठी है। आशंकाओं, अनुमानों, अटकलों एवं आकलनों की असलियत आखिरकार अब सामने आने ही वाली है। फैसला आने का फासला अब सिकुड़कर कुछ घंटों का ही रह गया है। धड़कनों की बढ़ती धक-धक भी किसी लोहार की धौकनी का आभास देने लगी है। निर्णायक घड़ी नजदीक देख आंखों में नींद का दूर तलक कोई नामोनिशान तक नहीं है, जैसे दिन व रात एक हो गए हों। बेचैनी और बेताबी का आलम इस कदर है कि दिलासाएं तक बेअसर हैं। हालात यह हो गए हैं कि अब हकीकत जानने के अलावा कुछ नहीं दिख रहा है। नजर अब केवल नतीजों पर हैं। परिणाम की प्रतीक्षा में पेशानी पर बल सबके हैं। उत्सुकता और इंतजार का आलम खेत से लेकर दफ्तर तक और हर आम से लेकर खास में दिख रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि ईवीएम में लम्बे समय से कैद किस्मत का ताला अब खुलने ही वाला है।
आठ दिसम्बर का दिन..। मेहनत के परिणाम का दिन.. पांच साल की तपस्या का प्रतिफल, जो बोया, उसको पाने का दिन..। किसी को फर्श से अर्श तक पहुंचा देगा तो किसी के सुनहरे सपनों का गला घोंट देगा। पता नहीं कितने ही दावों का दम निकलेगा और कितने ही अरमान दफन होंगे। न जाने कितने दिल टूटेंगे और जुड़ेंगे इस दिन..। किस्मत का सितारा जितनों का चमकेगा.. उससे कहीं ज्यादा का अस्त भी होगा। कहीं खुशियों की बारातें निकलेंगी तो कहीं गम के फसाने होंगे। कहीं जीत के जश्न मनेंगे तो कहीं हार के बहाने होंगे।
खैर, राजनीतिक महारथियों ने किसी न किसी तरीके से संभावित परिणाम की थाह जरूर ले ली है। सभी के पास जीत के दावे हैं। हार की बात तो न कोई करता और ना ही सुनना चाहता है। कई तो ऐसे भी हैं, जिनको वस्तुस्थिति का अंदाजा है, फिर भी झूठ पर झूम रहे हैं, गा रहे हैं। सभी का विश्वास, सच में तभी बदलेगा जब परिणाम सामने आएंगे। आखिर परिणाम ही तो वह चीज है, जो किसी को गुमनामी की गर्त में धकेलेंगे तो किसी को कामयाबी के शिखर पर पहुंचाएंगे। जनता जर्नादन तो अपना फैसला कर ही चुकी है, बस अंतिम मुहर लगनी है, लेकिन दिल है कि मानता ही नहीं..। तभी तो दिमाग में विचारों का द्वंद्व है। आशंकाओं का आवेग भी उफन रहा है

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