(दुर्ग रेलवे स्टेशन की व्यथा)
चौंकिए, मत मैं आपका वही कथित 'मॉडल रेलवे स्टेशन' दुर्ग ही हूं। यह तो जीएम साहब का दौरा होने वाला है, इसलिए रंगरोगन करके मेरी सूरत सुधार दी गई है, वरना आप लोगों से हकीकत छिपी हुई थोड़े ही है। दौरे के कारण पखवाड़ेभर से अधिकारियों की यहां आवाजाही भी बढ़ी है। कभी रायपुर से कोई आ रहा है तो कोई कभी बिलासपुर से। जीएम साहब को स्टेशन चकाचक दिखना चाहिए, इसके लिए सबने दिन रात एक कर रखा है। चर्चा तो यहां तक है कि साहब के संभावित सवालों के जवाब तक पहले से ही तैयार कर लिए गए हैं। समस्याओं व अधूरे निर्माण कार्यों पर पर्दा डालने की भी भरपूर कोशिश कर ली गई है। प्रयास तो यहां तक किए जा रहे हैं कि साहब केवल वो ही जगह देखें, जिसको मातहत दिखाना चाह रहे हैं। कछुआ गति से हो रहे कुछेक काम तो आनन-फानन में युद्ध स्तर पर निपटाए गए हैं। रेलवे अधिकारियों की इतनी तत्परता देखकर मैं सोच में डूब गया हूं। काश, इतनी तत्परता या जल्दबाजी ये लोग पहले दिखाते तो इस प्रकार की नौबत ही नहीं आती। निर्माण कार्य कैसे एवं किस गति से हो रहे हैं, यह देखने की किसी को फुर्सत ही नहीं थी। जो भी अधिकारी इन कार्यों का निरीक्षण करने आते रहे हैं, उन्होंने मुंह दिखाई की औपचारिता ही ज्यादा निभाई।
अब जीएम साहब के दौरा करने से कौन से यहां के दिन फिर जाएंगे। यह सारी चिंता और दौड़-धूप केवल उनके दौरे तक ही सीमित है। देख लेना, जैसे ही उनका कार्यक्रम निपटेगा अधिकारी अपने-अपने काम में लग जाएंगे। ऐसा पहले भी हो चुका है। एक दो बार नहीं कई बार। मैंने तो कई अधिकारियों के दौरे देखें हैं। वैसे जीएम साहब का दौरा किसी नेता की सभा से कम नहीं है। आलम यह है कि तैयारियों पर ही काफी पैसा एवं वक्त जाया किया जा चुका है। गुस्ताखी माफ हो जीएम साहब, आपको मातहत कर्मचारियों की शक्ल ही देखनी है तो वह आप कभी भी देख सकते हैं। आपके ही स्टाफ के लोग हैं। आपको अगर दौरा ही करना था तो फिर इसकी सूचना क्यों? क्या बिना सूचना के यह सब संभव नहीं था? आप बिना घोषणा के आकस्मिक दौरा करते तो वह सब देख पाते जो अब शायद ही दिखाई दे।
वैसे दुर्ग-भिलाई के साथ रेलवे का दोयम व्यवहार किसी से छिपा नहीं है। रेलवे विभाग मेरे को मॉडल रेलवे स्टेशन कहता है, लेकिन बाहर से आने वाले यात्री मेरी खिल्ली उड़ाते हैं। रेलवे व देश की प्रगति में दुर्ग-भिलाई का योगदान कौन नहीं जानता,फिर भी पता नहीं क्यों रेलवे की इधर नजर ही नहीं है। अब देखिए भला, आपने मेरे को मॉडल स्टेशन तो कह दिया (बनाया नहीं है) लेकिन कुछ एक्सप्रेस ट्रेनों का तो यहां ठहराव तक नहीं है। सुविधाओं में विस्तार करना तो दूर की बात है। यह तो सरासर नाइंसाफी है। बेचारे लोग कहां जाएं, किसको कहें। यहां के जनप्रतिनिधि भी तो पत्र लिखकर औपचारिता निभा लेते हैं।
जीएम साहब, आपके दौरे की सार्थकता तभी है, जब अधूरे निर्माण कार्य तत्काल पूरे हों। यहां पर व्याप्त समस्याओं का अविलम्ब निराकरण हो तथा मॉडल स्टेशन पर मिलने वाली तमाम सुविधाओं में विस्तार हो। क्योंकि दौरे करने, मातहत कर्मचारियों को दिशा-निर्देश देने या उनको घुड़की पिलाने से अब बात बनेगी नहीं। यह सिलसिला अब लम्बा हो गया है। मेरी अब स्थायी सुध लेने की जरूरत है। अब और देरी ठीक नहीं है। आपका दौरा सामान्य न होकर यादगार बने इसके लिए कुछ पहल तो जरूर करते जाइएगा।
भिलाई पत्रिका के शुक्रवार 17 जनवरी के अंक में प्रकाशित टिप्पणी..।
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