टिप्पणी..
यकीनन यह बदलाव की बयार है। अपने हक के लिए उठ खड़े होने की। अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की। यह एक शुरुआत है, अपनी बात बुलंद करने की, बुराई के खिलाफ बिगुल बजाने की। वाकई यह एक नई सुबह है, आधी दुनिया के जागने की, होश संभालने की। सचमुच यह एक सुखद पहल है, पुरुष प्रधान समाज की मानसिकता से उबर कर शर्म-शंका का पर्दा उतारने की, घर की दहलीज को लांघकर समाज को नई दिशा देने की। वास्तव में यह नजीर है, एक नए युग से कदमताल करने की। एक छोटी सी, लेकिन कारगर पहल है सोए हुए प्रशासन को जगाने की, उसे हरकत में लाने की। बदलाव का बीड़ा उठाने वाली ये महिलाएं बालोद एवं दुर्ग जिले के छोटे-छोटे गांवों की हैं। इन महिलाओं को इस बात का अहसास भली-भांति हो चुका था कि पुलिस-प्रशासन का मुंह ताकने या उनके यहां बार-बार गुहार लगाने से कुछ हासिल नहीं होने वाला, क्योंकि ऐसा वे एक बार नहीं बार-बार कर चुकीं, लेकिन सुधार नहीं हुआ और न ही भविष्य में होने की कोई गुंजाइश दिखाई दे रही थी। आखिरकार उन्होंने ऐसा साहसिक एवं ऐतिहासिक कदम उठाया, जो पुलिस एवं प्रशासन को आइना दिखाता है। उनकी कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है। ग्रामीण महिलाओं की यह पहल समाज को सीख देती है। कुछ कर गुजरने के लिए प्रेरित करती है। ग्रामीण क्षेत्रों में घर-घर में घुसपैठ कर चुकी शराब के खिलाफ महिलाओं का आंदोलन इसलिए भी अनूठा है, क्योंकि उन्होंने न केवल थानाप्रभारी से लेकर कलेक्ट्रेट का घेराव तक किया बल्कि खुद ही शराब जब्त करके व्यवस्था पर करारा तमाचा भी जड़ दिया। महिलाओं ने साबित कर दिया है कि अगर ठान लिया जाए तो कुछ भी मुश्किल नहीं है। एकजुटता से समस्या का सामना किया जाए, उसके खिलाफ आवाज उठाई जाए तो सफलता सुनिश्चित है।
भिलाई से सटे ढौर गांव से अवैध शराब के खिलाफ उठी आवाज अब मुखर हो रही है। रानीतराई के असोगा गांव के बाद बालोद जिले में तो महिलाओं ने कमाल ही कर दिखाया। महिलाओं की छोटी सी मुहिम अब मिसाल बन रही है। निसंदेह इस बदलाव के कालांतर में सुखद परिणाम आएंगे। वैसे भी आधी दुनिया की चुप्पी के चलते ही इस समस्या ने बड़े पैमाने पर पैर पसारे। अब जाग रही हैं तो यकीनन परिणाम प्रेरणादायी एवं सकारात्मक ही होंगे। जरूरत है कि यह उत्साह और जज्बा इसी तरह बना रहे।
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