Wednesday, January 15, 2014

जग के नहीं, 'पैसों' के नाथ


पुरी से लौटकर-29

 
इस तालाब को उत्कल नरेश भानुदेव जी के मंत्री नरेन्द्र देव ने खुदवाया था। हर साल वैशाख शुक्ल तृतीया (अक्षय तृतीया) से लेकर 21 दिन तक इस तालाब पर जगन्नाथ जी का चंदन यात्रा (जल विहार) उत्सव मनाया जाता है।
खैर, ऑटो वाले ने कहा कि जूते-चप्पल व सामान यहीं छोड़ जाओ और आप लोग दर्शन कर आओ। अजनबी आदमी पर यकायक भरोसा नहीं हुआ। तत्काल कैमरा निकाला और ऑटो के नम्बर प्लेट सहित फोटो खींच लिया। इसके बाद हम लोगों तालाब की तरफ बढ़े।
यह बहुत बड़ा तालाब है। लेकिन बदहाल है। पानी का भी लम्बे समय से जमाव होने के कारण उस पर काई जम चुकी है। तालाब के प्रवेश द्वार के बाहर भी एक तरफ कचरे का ढेर लगा था। पानी के अंदर टूटी-फूटी नाव खड़ी थी। पानी के बीचोबीच मंदिर बना हुआ है। वहां तक पहुंचने के लिए पुलनुमा बनाया हुआ है। हम सीढिय़ों से तालाब में उतरे। सीढियां उतरने के बाद सामने एक काउंटर था, जिस पर टिकट मिल रही थी। हम सीधे ही आगे बढ़े तो एक युवक चिल्लाया टिकट ले लो, टिकट, खैर टिकट लेने के बाद हम आगे बढ़े। युवक से पूछा काहे का मंदिर है, तो वह बोला बुआजी का। मैंने जिज्ञावश पूछा यह बुआजी कौन है तो युवक बोला, बुआजी को नहीं जानते.. अरे भैया, कुंती मैया का मंदिर है। वैसे मंदिर ज्यादा बड़ा नहीं है। अंदर घुसे तो वहां मौजूद पुजारी पूछ बैठे.. पूजन करोगे या प्रसाद लोगे। हम ने दर्शन किए और बाहर निकले तो वहीं बगल में दो छोटे-छोटे मंदिर और दिखाई दिए..। एक पर लड्डू गोपाल मंदिर लिखा था जबकि एक अन्य मंदिर था। मैं दर्शन करके टिकट चैक करने वाले युवक के पास आया और नाम पूछा तो उसने अपना नाम जगन्नाथ बताया। मैंने उससे मजाक में कहा कि पुरी में इतने मंदिर हैं.. ऐसे में यहां शायद ही कोई बेरोजगार होगा। भगवान के नाम पर कितने को रोजगार मिला हुआ है यहां। वह युवक मेरा बातें सुनकर मुस्कुराने लगा। पास से गुजर रहे एक सज्जन ने हमारा वार्तालाप सुन लिया.. बोले, पुरी के पण्डे आपको दूसरी जगह काम करते दिखाई नहीं देंगे.. क्योंकि प्रभु की कृपा से उनको पुरी में ही रोजगार मिला हुआ है।
यहां से हमको ऑटोवाला एक आश्रम की तरफ ले गया। उस पर लिखा था क्षीमंदिर। बेहद की शांत वातावरण था। मंदिर की शीतल छांव में थोड़ी देर बैठकर हम लोगों ने आराम किया। वहीं एक युगल बैठा था। दुनिया से बेखबर भविष्य की सपने बुनने में। मंदिर के शांत माहौल को बच्चों की मस्ती ने भंग कर रही थी। मंदिर में साफ शब्दों में लिखा था, यहां फोटो खींचना मना है। मंदिर के आगे ही एक पार्क था। काफी पेड़-पौधे लगे थे। यहां का नैसर्गिंक माहौल इतना अच्छा लगा कि बस यहीं पर सो जाए लेकिन अभी यात्रा जारी थी। यहां से सामने ही दूसरे मंदिर में गए। वहां समाधि बनी थी। यहां भी फोटोग्राफी वर्जित थी। बच्चों का शोर सुनकर एक वृद्ध संत अंदर से निकले और बच्चों को चुप रहने की नसीहत देने लगे। । दरअसल, उनको इस बात का अंदेशा था कि बच्चे कहीं अपनी मस्ती में समाधि स्थल तक ना चले जाएं। खैर, हमने समाधि के दर्शन किए। . ... जारी है।

No comments:

Post a Comment