पुरी से लौटकर-33
खिड़की से हवा के थपेड़ों से हल्की सर्दी का अहसास होने लगा था। पसीने से गीली बनियान अभी सूखी नहीं थी। इस कारण भी सर्दी कुछ ज्यादा लग रही थी। मैंने तत्काल खिड़की गिराई और पुरी व उसके आसपास के क्षेत्रों के प्रसिद्ध स्थानों के बारे में पढऩे लगा। तीन दिन और दो रात पुरी में बिताने के बाद भी काफी कुछ देखने से छूट गया था। पुस्तक पढ़ी तो पता चला। पुरी में भगवान जगन्नाथ के मुख्य मंदिर के अलावा छोटे-बड़े सैकड़ों मंदिर हैं। इनमें एक लोकनाथ का मंदिर है जो पुरी में सबसे प्राचीन है। जिसमें शंकर भगवान श्री लोकनाथ जी के नाम से पूजित है। यह मंदिर श्री मंदिर से तीन किमी दूर दक्षिण-पश्चिम दिशा में है। हर साल शिव चतुर्दशी को यहां बड़ा मेला लगता है। कहा जाता है कि दशरथ सुत रामच्रद जी ने लंका जाते समय यहां शिव की पूजा की थी। पुरी के मंदिरों की फेहरिस्त वास्तव में बेहद लम्बी है
खैर, ज्यादा मलाल तो भुवनेश्वर के मंदिर ना देख पाने का था। यहां चार-पांच ऐतिहासिक मंदिर हैं तथा नंदन कानन चिडिय़ा घर है। मैं इन सबके के बारे में पढ़ ही रहा था कि पढ़ते-पढते कब आंख लगी पता ही नहीं चला। सुबह देखा तो हम छत्तीसगढ़ की सीमा में प्रवेश कर चुके थे। बस अब इंतजार था तो बेसब्री से घर पहुंचने का..। आखिरकार ट्रेन भिलाई पहुंची और हम ऑटो करके घर पहुंचे थे। घर आते ही और कुछ नहीं सूझ रहा था सिवाय सोने के। स्मृति में मंदिर, सागर, कोर्णाक, चंद्रभागा की यादें रह-रहकर ताजा हो रही थीं।
बहरहाल, हमारा आनन-फानन में तय हुआ पुरी जाने का कार्यक्रम इतना यादगार एवं ऐतिहासिक होगा सोचा नहीं था। अब तो आलम यह है कि दुबारा कब वक्त मिले और फिर से जाने का कार्यक्रम बनाएं। वाकई पुरी दर्शनीय जगह है। वक्त मिले तो एक बार यहां पर जाकर आना चाहिए। बस थोड़ी सी अक्ल एवं समझदारी से काम लेंगे तो आपको ज्यादा रुपए खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। सावधानी और सतर्कता बरतने की भी जरूरत है। वैसे पुरी के दो मिजाज हैं। आधुनिक एवं परम्परावादी। यहां दोनों ही तरह के लोग हैं। आप किनसे प्रभावित हैं और वहां जाकर क्या करते हैं, यह आपके सोच पर निर्भर है। वैसे मैंने शुरू में भी कहा था कि अक्ल बादाम खाने से नहीं भचीड़ खाने से आती है। हमको भी अक्ल आ चुकी है। पुरी के बारे में काफी कुछ जान गया हूं। माहौल, व्यवस्था और लोगों के बारे में। वहां जाने वालों को बता सकता हूं कि आपको क्या करना है क्या नहीं। खैर, अति व्यस्तता के बावजूद देखो ना, प्रभु के आशीर्वाद से पुरी पर काफी कुछ लिख दिया है। अपने लेखन में मैंने भगवान के अस्तित्व पर या उनकी सत्ता पर किंचित मात्र भी अंगुली नहीं उठाई, जो लिखा वह केवल वहां की व्यवस्था पर है। प्रभु जग के नाथ हैं और रहेंगे लेकिन वहां बिचौलियों के कारण वे जग के ना होकर पैसों के नाथ हो गए हैं। अगर ऐसा कहना गलत है तो मैं एक बार फिर प्रभु के चरणों में नतमस्तक होकर क्षमाप्रार्थी हूं। इसी के साथ एक बार फिर मेरे साथ मिलकर जयकारा लगाइए.. बोलिए.. जग के नाथ की... जय, प्रभु जगन्नाथ की जय। ..................इति।
जग के नाथ की... जय, प्रभु जगन्नाथ की जय।
ReplyDelete