पुरी से लौटकर-13
बाहर प्रवेश द्वार पर हम उस वक्त तक आने-जाने वालों को देखते रहे जब तक गोपाल जी बाहर नहीं आए। उनके बाहर आने के बाद हमने अपने जूते वगैरह वापस लिए। रात के करीब साढ़े नौ बजे का वक्त हो चुका था। अब हमको किसी भोजनालय की तलाश थी। वैसे पुरी में जगह-जगह भोजनालय खुले हुए हैं। यह सब हमने मंदिर जाते वक्त ही देख लिए थे। दो-तीन जगह तो मारवाड़ी भोजनालय लिखा था। उनके आगे कोष्ठक में (बासा) लिखा था। बासा का मतलब ठहरने की व्यवस्था से ही है। बासा शब्द वैसे राजस्थानी या मारवाडिय़ों के लिए नया नहीं है। मैं भी बचपन से सुनता आया हूं। खैर, जाते वक्त ही तय कर चुके थे कि भोजन मारवाड़ी भोजनालय में ही करना है। आखिर हम लक्ष्मी मारवाड़ी भोजनालय पहुंचे। वहां जाकर पूछा तो पता चला कि इसके संचालक श्री मघाराम उपाध्याय बीकानेर के हैं। उन्होंने बताया कि आदमी नहीं होने के कारण ठहरने वाला काम बंद कर रखा है। सिर्फ भोजनालय का काम ही है। उपाध्याय जी वैसे बिलकुल ठेठ राजस्थानी में ही बात कर रहे थे। अंदर भोजनालय फुल था। हमको कुछ इंतजार करना पड़ा। वहां भोजन करने वाले लगभग लोग राजस्थान से ही थे। उनके हाव-भाव, बोली एवं पहनावे से यह सब परिलक्षित भी हो रहा था।
भोजन करने के बाद बाजार में बच्चों ने जहां खिलौने खरीदने में दिलचस्पी दिखाई वहीं धर्मपत्नी भी कुछ कम नहीं थी। कहीं से चूडिय़ां खरीदी तो कहीं से पर्स। लम्बा चौड़ा बाजार सजा था, जिसमें बच्चों को ललचाने के कई विकल्प मौजूद थे। बच्चे ही क्या बड़े भी खरीददारी से खुद को रोक नहीं पा रहे थे। लेकिन मैं सिर्फ दर्शक की भूमिका में ही था। आखिरकार ऑटो वाले राजू को फिर फोन किया। हमने उसको एक सरनेम भी दे दिया था। इसलिए उसको राजू की बजाय राजू पुरी ही कहकर पुकार रहे थे। होटल आते-आते साढ़े दस बज चुके थे। सुबह जल्दी उठने का फैसला ही हम पहले की कर चुके थे। सूर्योदय का नजारा जो देखना था। आखिर ऑटो वाले को अलसुबह साढ़े चार बजे का समय दे दिया गया। सूर्योदय वाला स्थान पुरी से करीब 35 किमी की दूरी पर है और उसका नाम है चंद्रभागा। मोबाइल पर अलार्म भरकर हम सो गए। अलसुबह उठे। हालांकि भरपूर नींद ले पाने के कारण आंखें उनींदी थी, लेकिन देखने की चाह में नींद से समझौता कर लिया। करीब साढ़े चार बजे हम ऑटो में बैठ कर चंद्रभागा की तरफ चल पड़े। सूनसान सड़क थी। लेकिन एकदम समतल। पूरी रफ्तार के साथ ऑटो चंद्रभागा की तरफ बढ़ा जा रहा था। चंद्रभागा से पहुंचने से पहले थोड़ा सा उजाला हुआ तो देखा कि हम तो समुद्र के साथ-साथ ही आगे बढ़ रहे हैं। चंद्रभागा जाने वाली सड़क बंगाल की खाड़ी के मुहाने पर ही बनी है। सघन वन है। जगह-जगह नसीहत भरे बोर्ड टंगे थे,जिन पर लिखा था कि वन क्षेत्र है, कृपया गाड़ी धीरे चलाएं। आखिरकार राजू ने ऑटो को ब्रेक लगाए और ओडिशा के पूर्व .... जारी है।
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