पुरी से लौटकर-28
सुबह के 11 बजे का समय होगा लेकिन मंदिर की कहीं परछाई दिखाई नहीं दी, तो जेहन में वह आठ आश्चर्य वाली याद फिर जिंदा हो गई। मंदिर के शिखर पर लगी ध्वजा भी उसी दिशा में उड़ रही थी, जैसी पहले दिन देखी थी। शिखर पर लगे चक्र को भी बड़ी तल्लीनता, गंभीरता एवं गौर के साथ देखा.. वाकई उसको किधर से भी देखो वह सीधा ही दिखता है। वैसे मंदिर बहुत ही भव्य एवं विशाल है। श्री मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में गंग वंश के प्रतापी राजा अनंगभीम देव के द्वारा हुआ था। लभग 800 साल पुराना यह मंदिर कलिंग स्थापत्य कला और शिल्पकला का बेजोड़ उदाहरण है। मंदिर के पत्थरों पर की गई नक्काशी का तो कहना ही क्या..। इसकी ऊंचाई 214 फीट और इसका आकार पंचरथ जैसे है। इस मंदिर के चारों तरफ दीवारें हैं, जिसे मेघनाद प्राचीर कहते हैं। इसकी लम्बाई 660 फीट और ऊंचाई 20 फीट है। मंदिर के चार भाग हैं, विमान, जगमोहन, नाट्यमण्डप और भोगमण्डप। श्रीमंदिर में मुख्यत: तीन विग्रह हैं। बाएं से श्री बलभद्र जी, बीच में सुभद्रा मैया और दाहिनी ओर श्री जगन्नाथ जी। ये विग्रह नीम की लकड़ी के बने हैं। स्थानीय भाषा में लकड़ी को दारु कहते हैं। जिस साल मलमास या दो आषाद आते हैं, उसी साल नवकलेवर होता है। नवकलेवर का मतलब नए विग्रह बनाने से है। यह नवकलेवर 12 साल में अंतराल में होता है। वैसे पुरी की रथयात्रा विश्वभर में प्रसिद्ध है। जगन्नाथ की सारी यात्राओं में से रथयात्रा को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। यह यात्रा आषाढ शुक्ल द्वितीय तिथि पर होती है। जगन्नाथ जी, बड़े भाई बलभ्रद जी, बहन सुभद्रा देवी के साथ सुसज्जित तीन रथों में बैठकर यात्रा श्री गुडिंचा मंदिर को जाती हैं। जगन्नाथ जी के रथ को नंदिघोष, बलभद्र जी के रथ को तालध्वज और सुभद्रा जी के रथ देवदलन कहा जाता है।
इसके अलावा मंदिर की रसोई भी भारत में काफी चर्चित है। रसोई आकर्षण केन्द्र इसीलिए भी क्योंकि इसमें बड़े पैमाने पर प्रसाद तैयार होता है। इस महाप्रसाद को तैयार करने में पांच सौ रसोइयों एवं तीन सौ सहायकों को जुटना पड़ता है।
हम मंदिर से बाहर निकले तो तीन-चार विदेशियों की टोली भगवा कपड़े पहने..हरे रामा हरे कृष्णा गाने में मगन थी। कोई हारमोनियम बजा रहा था तो कोई ढोलक पर थाप लगा रहा था। यह लोग मंदिर के आगे के मुख्य मार्ग पर प्रभु की आराधना कर रहे थे। लगा ही नहीं कि ये कोई विदेशी हैं। हम काफी देर तक उनको देखते रहे। गोपाल जी ने उनकी एक फोटो भी खींच ली। इसके बाद हम एक नारियल वाले के यहां रुके। सबने पानी पीया और इसके बाद एक ऑटो वाले के पास पहुंचे। उससे हमने पुरी के प्रमुख मंदिर दिखाने की बात की तो उसने ऑटो किराया 250 रुपए मांगे। हम तैयार हो गए। क्योंकि हमारी ट्रेन शाम को थी। बाकी बचे समय का हम सदुपयोग करना चाहते थे। ऑटो में सवार होकर हम पुरी भ्रमण पर निकल पड़े। सबसे पहले ऑटो वाला हमको नरेन्द्र तालाब लेकर पहुंचा। इसको चंदन तालाब भी कहते हैं। इस तालाब की लम्बाई 873 फीट और चौड़ाई 834 फीट है। ... जारी है।
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