Wednesday, January 15, 2014

जग के नहीं, 'पैसों' के नाथ


पुरी से लौटकर-20

 
बिलकुल ऊबड़-खाबड़ जगह। एक बार तो सोचा कि जब इतनी चर्चित जगह है तो सड़क इतनी खराब एवं गुमनाम सी क्यों है। सड़क भी सीधी नहीं थी बिलकुल सर्पिली हो गई टेढ़ी-मेढ़ी। अचानक पेड़ों से आच्छादित एक द्वीप आया। राजू ने ऑटो के ब्रेक लगाए..चिलका झील आ गई थी। दोपहर के दो बजने वाले थे। पहले सबसे पहले टिकट खिड़की की तरफ बढ़े। नौकाविहार का किराया पूछा। काउंटर पर बैठे शख्स ने तत्काल सूची निकालकर आगे कर दी। पूरे दिन नौका विहार करने के 3850 और चार घंटे के 1850 रुपए। हमारे पास न तो पूरा दिन था और ना ही चार घंटे, क्योंकि हम सूर्यास्त से पहले वापस पुरी पहुंचना चाह रहे थे। खैर, मारवाडिय़ों की तरफ हम भी मोलभाव करने लगे और काउंटर पर बैठे व्यक्ति से कहने लगे कि हमको तो सिर्फ दो घंटे ही नौका विहार करना है.. आप तो उसकी रेट बता दो, लेकिन उसने कह दिया कि यह आपकी मर्जी पर निर्भर नहीं है। किराया तो जितना है उतना ही लगेगा।
खैर, काउंटर वाले को पसीजता ना देख हमने तय किया कि पहले भोजन किया जाए। द्वीप पर आसपास नजर दौड़ाई लेकिन कहीं पर भी कोई उचित जगह दिखाई नहीं दी। आखिर हम लोग एक होटल की तरफ बढ़े और उसके बाहर लगी टेबल की तरफ बैठने ही वाले थे कि होटल वाला दौड़ता आया और बड़े से आदर-सत्कार से न केवल अंदर हॉल में ले गया बल्कि एक अलग से कमरे में हमको बैठा दिया। मैं गोपाल जी की तरफ देखकर मंद-मंद मुस्कुरा रहा था। शायद वो मेरे मुस्कुराने की वजह का राज समझ गए थे, फिर भी पूछ बैठे, बन्ना जी.. क्या हो गया। मैंने कहा कि यह जो आदर सत्कार है ना उसके पीछे बड़ी उम्मीद छिपी हुई है, लेकिन जब उसकी उम्मीदों पर तुषारापात होगा तो उसके बाद का नजारा देखना..। जवाब सुनकर वो भी मुस्कुरा दिए।
हम ठीक से बैठे ही नहीं थी कि होटल वाला आ गया और बोला.. हां बताइए.. आप क्या लेंगे। हम एक दूसरे का मुंह ताक रहे थे। बड़े विचित्र हालात हो गए थे। आखिरकार उसको दो थाली लगाने के लिए कह दिया। दो का नाम सुनते ही उसके चेहरे के भाव बदल गए। उम्मीद की मुस्कुराहट अब गौण हो गई थी। उसकी भौंहे टेढ़ी हो चुकी थी। अपना गुस्सा जाहिर ना करता हुआ वह तमतमाकर बाहर निकल गया। थोड़ा इंतजार करवाने के बाद वह दो थाली ले आया, लेकिन न तो चम्मच लाया और ना ही पानी। हमको भी उसकी मनोस्थिति का अंदाजा हो गया था। हमने एक थाली ऑटो चालक राजू के पास भिजवा दी जबकि एक को सभी के बीच में रख लिया। जब उससे चम्मच और पानी के लिए गिलास मांगा तो वह फट पड़ा, बोला एक गिलास व एक चम्मच ही दूंगा। हमने कहा जो देना है वह दे तो सही। आखिरकार भोजन करने के बाद हम एक बार फिर उसके काउंटर पर गए और उसे समझाया कि यह आपकी व्यवहार कुशलता नहीं है। इस तरह का व्यवहार करने से ग्राहक जुड़ते नहीं बल्कि बिदकते हैं। वह अब भी गुस्से में था। .... जारी है।

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