पुरी से लौटकर-23
झील में तैर रहे जरीकेन, कचरे आदि को मजाक में हम डॉलफिन कह कहकर आपस में एक दूसरे का मजा लेने में जुटे थे। आखिरकार हमारी नाव भी उन नावों के पास पहुंच गई। बताया गया कि यहां तो डॉलफिन शर्तिया दिखाई देगी। हम और सतर्क और एकाग्र होकर झील की तरफ आंखें फाडऩे लगे। अचानक पानी में थोड़ी सी हलचल हुई और डॉलफिन का मामूली सा हिस्सा नजर आया। हम सब चिल्लाए, दिख गई, वो रही। यह सब पलक झपकते ही हुआ। ऐसे में फोटो लेने की तो आप सोच ही नहीं सकते। हां वीडियो फिल्म बना रहे हैं तो जरूर कुछ हिस्सा दिख सकता है। हम फिर भी रुके रहे शायद डॉलफिन उछले लेकिन ऐसा नहीं हुआ। डॉलफिन की बेरुखी से यहां आने वाली की उम्मीद एवं उत्साह ठण्डा पड़ जाता है। नाव वाले ने तीन चार गोल घेरे में चक्कर लगाए लेकिन बात नहीं बनी। बच्चों के चेहरों से उत्साह गायब हो गया। वे उदास, हताश व निराश हो चुके थे। दरअसल, यहां नौका विहार का आनंद वो लोग ही ले पाते हैं जो खाने-पीने का सारा कार्यक्रम नाव के अंदर ही करते हैं। मैंने बगल से गुजरती से कई नावों में यह नजारा देखा। कई तो ऐसे भी जो दुनिया से बेखबर होकर बेसुध सोए थे। कुछ लोगों के हाव-भाव एवं चेहरे यह चुगली कर रहे थे, कि जरूर वे, दूसरे पहलू या दूसरी दुनिया के सैर पर जाने का पूरा प्रबंध करके निकले हैं।
डॉलफिन की उम्मीदानुसार झलक ना पाकर सभी निराश थे। सूर्यदेव भी बड़ी तेजी के साथ छिपने को आतुर थे। अचानक खामोश टूटी और पछतावे से मिश्रित हंसी गूंजी। मैंने झील से ध्यान हटाकर देखा तो, गोपाल जी, एक काजू की थैली खोल रहे थे। कहने लगे, बन्ना जी, काफी देर हो गई कुछ टाइम पास ही कर लें। काजू देखकर मैं चौंका अरे.. आपने यह कब ले लिए..। कहने लगे जब हम कोर्णाक मंदिर से ऑटो की तरफ आ रहे थे तब आप आगे आ आए और हमने काजू खरीद लिए। मैंने सवालिया दृष्टि से धर्मपत्नी की तरफ देखा. शायद वह मेरा इशारा समझ गई थी। बिना कुछ कहे ही उसने सिर हिला दिया, जैसे उसने मेरी और मैंने उसकी भाषा समझ ली हो। अचानक एक साथ एक शब्द गूंजा.. धोखा.. मैंने कहा होना ही था। गोपाल जी, बोले बन्ना जी आज तो खरीददारी महंगी पड़ गई। काजू वाले ने धोखाधड़ी कर ली। अच्छे काजू दिखाकर खराब काजू दे दिए। उनका जवाब सुनकर मैं सिर्फ इतना ही कह पाया कि मैंने तो पहले ही मना किया था। खैर, काजू वाकई खराब थे। एक किलो के पैकेट में मुश्किल से कोई पावभर काजू ठीक होंगे, बाकी काले एवं छोटे-छोटे टुकड़ों में थे। हमारी धर्मपत्नी ने डेढ़ किलो ही लिए थे, लेकिन गोपाल जी ने तो बड़ी मात्रा में खरीद लिए थे। इसी चक्कर में खरीदे कि ओडिशा में काजू खूब होता है, इसलिए सस्ता मिलता है। इधर भिलाई में काजू पांच सौ रुपए प्रति किलो से ऊपर मिलता है लेकिन वहां उन्होंने इसको आधी कीमत पर खरीदा, नतीजा सबके सामने था। सब के मन में व लबों पर ... जारी है।
झील में तैर रहे जरीकेन, कचरे आदि को मजाक में हम डॉलफिन कह कहकर आपस में एक दूसरे का मजा लेने में जुटे थे। आखिरकार हमारी नाव भी उन नावों के पास पहुंच गई। बताया गया कि यहां तो डॉलफिन शर्तिया दिखाई देगी। हम और सतर्क और एकाग्र होकर झील की तरफ आंखें फाडऩे लगे। अचानक पानी में थोड़ी सी हलचल हुई और डॉलफिन का मामूली सा हिस्सा नजर आया। हम सब चिल्लाए, दिख गई, वो रही। यह सब पलक झपकते ही हुआ। ऐसे में फोटो लेने की तो आप सोच ही नहीं सकते। हां वीडियो फिल्म बना रहे हैं तो जरूर कुछ हिस्सा दिख सकता है। हम फिर भी रुके रहे शायद डॉलफिन उछले लेकिन ऐसा नहीं हुआ। डॉलफिन की बेरुखी से यहां आने वाली की उम्मीद एवं उत्साह ठण्डा पड़ जाता है। नाव वाले ने तीन चार गोल घेरे में चक्कर लगाए लेकिन बात नहीं बनी। बच्चों के चेहरों से उत्साह गायब हो गया। वे उदास, हताश व निराश हो चुके थे। दरअसल, यहां नौका विहार का आनंद वो लोग ही ले पाते हैं जो खाने-पीने का सारा कार्यक्रम नाव के अंदर ही करते हैं। मैंने बगल से गुजरती से कई नावों में यह नजारा देखा। कई तो ऐसे भी जो दुनिया से बेखबर होकर बेसुध सोए थे। कुछ लोगों के हाव-भाव एवं चेहरे यह चुगली कर रहे थे, कि जरूर वे, दूसरे पहलू या दूसरी दुनिया के सैर पर जाने का पूरा प्रबंध करके निकले हैं।
डॉलफिन की उम्मीदानुसार झलक ना पाकर सभी निराश थे। सूर्यदेव भी बड़ी तेजी के साथ छिपने को आतुर थे। अचानक खामोश टूटी और पछतावे से मिश्रित हंसी गूंजी। मैंने झील से ध्यान हटाकर देखा तो, गोपाल जी, एक काजू की थैली खोल रहे थे। कहने लगे, बन्ना जी, काफी देर हो गई कुछ टाइम पास ही कर लें। काजू देखकर मैं चौंका अरे.. आपने यह कब ले लिए..। कहने लगे जब हम कोर्णाक मंदिर से ऑटो की तरफ आ रहे थे तब आप आगे आ आए और हमने काजू खरीद लिए। मैंने सवालिया दृष्टि से धर्मपत्नी की तरफ देखा. शायद वह मेरा इशारा समझ गई थी। बिना कुछ कहे ही उसने सिर हिला दिया, जैसे उसने मेरी और मैंने उसकी भाषा समझ ली हो। अचानक एक साथ एक शब्द गूंजा.. धोखा.. मैंने कहा होना ही था। गोपाल जी, बोले बन्ना जी आज तो खरीददारी महंगी पड़ गई। काजू वाले ने धोखाधड़ी कर ली। अच्छे काजू दिखाकर खराब काजू दे दिए। उनका जवाब सुनकर मैं सिर्फ इतना ही कह पाया कि मैंने तो पहले ही मना किया था। खैर, काजू वाकई खराब थे। एक किलो के पैकेट में मुश्किल से कोई पावभर काजू ठीक होंगे, बाकी काले एवं छोटे-छोटे टुकड़ों में थे। हमारी धर्मपत्नी ने डेढ़ किलो ही लिए थे, लेकिन गोपाल जी ने तो बड़ी मात्रा में खरीद लिए थे। इसी चक्कर में खरीदे कि ओडिशा में काजू खूब होता है, इसलिए सस्ता मिलता है। इधर भिलाई में काजू पांच सौ रुपए प्रति किलो से ऊपर मिलता है लेकिन वहां उन्होंने इसको आधी कीमत पर खरीदा, नतीजा सबके सामने था। सब के मन में व लबों पर ... जारी है।
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